मुंबई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर एक बार फिर से हमला करते हुये शिवसेना ने आज कहा कि महाराष्ट्र में रैलियों के लिये वह दिल्ली में अपना काम छोड़ रहे हैं । साथ ही उसने सवाल किया कि प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य के लिए उन्होंने क्या काम किया ।
सेना ने अपनी पूर्ववर्ती सहयोगी भाजपा पर भी निशाना साधते हुए कहा प्रधानमंत्री के अक्सर दौरों से राज्य के खजाने पर असर पड़ रहा है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा ‘‘प्रधानमंत्री दिल्ली में अपना काम छोड़ कर महाराष्ट्र में रैली करने में व्यस्त हैं। मोदी भाजपा के कद्दावर नेता हैं लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा का कोई जाना पहचाना चेहरा नहीं होने के कारण राज्य में उन्हें प्रचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।’’
इसमें कहा गया है कि अगर मोदी ‘सुपरस्टार प्रचारक ’ हैं जैसा भाजपा ने प्रदर्शित किया है तो उन्हें नयी दिल्ली में रहते हुए पार्टी के लिये मत देने की अपील राज्य के लोगों से करनी चाहिये थी ।
मुखपत्र में कहा गया , ‘‘ अगर मोदी की जनता में इतनी ही लोकप्रियता है , जैसा भाजपा ने प्रदर्शित किया है , तो उन्हें (मोदी) महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में 25-30 रैली करने के बजाय दिल्ली में ही रहकर मतदान करने की अपील करनी चाहिए थी और लोग निश्चित रूप से उनकी बात सुनते ।’’
इसमें कहा गया है कि जब कुछ असमाजिक तत्वों ने वार्षिक अमरनाथ यात्रा को बाधित करने की धमकी दी थी तब मुंबई में बैठे ही बालासाहेब ठाकरे ने उन्हें चुनौती दी थी और वे फिर तीर्थयात्रियों को नुकसान पहुंचाने का दुस्साहस नहीं कर सके ।
मुखपत्र में कहा गया है कि राकांपा प्रमुख शरद पवार और मनसे प्रमुख राज ठाकरे प्रधानमंत्री होते हुए भी मोदी के गुजरात से लगाव पर सवाल उठा रहे हैं और उन्होंने वही कहा है जो शिवसेना महसूस करती है ।
संपादकीय में कहा गया है ‘‘किसी प्रधानमंत्री को वोट मांगने के लिए गांव-गांव जाना शोभा नहीं देता, प्रधानमंत्री के पद की गरिमा बनी रहनी चाहिए।’’
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के लिए महाराष्ट्र के लिए किये गये कामों पर भी शिव सेना ने सवाल उठाया और कटाक्ष करते हुये कहा कि अचानक उसका :भाजपा: शिवाजी के प्रति प्रेम उमड़ आया है ।
उसने कहा कि यात्राओं से राज्य के कोष पर असर पड़ा है।
इसमें कहा गया है , ‘‘जब कभी भी प्रधानमंत्री को रैली करने के लिए आमंत्रित किया जाता है तो कई चीजों का ध्यान रखने की जरूरत होती है । सुरक्षा और अन्य इंतजामों के लिए धन की जरूरत होती है और आखिरकार राज्य के कोष पर इसका भार पड़ता है। पूर्व में जब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने राज्य के तंत्र का इस्तेमाल किया तो उनकी काफी आलोचना हुई थी ।’’