कभी शाहरुख खान के साथ झगड़े को लेकर सुर्खियों में आए फिल्म निर्देशक शिरीष कुंदर इन दिनों ज्यादा चर्चा में नहीं हैं। आजकल वह मुंबई स्थित अपने घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलते हैं, लेकिन टि्वटर के जरिए हर मुद्दे पर अपनी राय जरूर रखते हैं। ’56 इंच की विदेश नीति’, काले धन का जुमला, श्रीश्री रविशंकर जैसे हर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर वह अपनी बेबाक राय देते रहते हैं। कई बार तो उन्हें टि्वटर यूजर्स ने निशाने पर भी लिया, लेकिन शिरीष ने राजनीतिक मामलों पर ट्वीट करना बंद नहीं किया। यही कारण है कि टि्वटर पर उनके ढाई लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। शिरीष इस समय अपनी ऑनलाइन फिल्म को अंतिम स्वरूप देने में व्यस्त हैं, जिसका नाम है- कृति। उनके साथ हाल में बातचीत की इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार स्मिता नायर ने।
सवाल: टि्वटर से इतना लगाव कैसे हुआ?
जवाब: फिल्म इंडस्ट्री में रहते हुए आप बाकी दुनिया से कट जाते हैं। निर्भया गैंगरेप के दौरान मैंने टि्वटर के जरिए कमेंट करना शुरू किया और तभी से यह मेरी आदत में शुमार हो गया।
सवाल: आपका टि्वटर स्टाइल क्या है और ट्वीट करने में आप कितना समय खर्च करते हैं
जवाब: मैं तभी ट्वीट करता हूं, जब मुझे गुस्सा आता है। मैं ह्यूमर के जरिए भड़ास निकालता हूं। मैं उसी मंशा के साथ ट्वीट करता हूं, जिसके साथ आरके लक्ष्मण कार्टून बनाया करते थे। मैं उनसे बेहद प्रभावित हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि सभी व्यंग्यकार गुस्से वाले होते हैं।
सवाल: आप पीएम और बीजेपी पर सीधे हमला करते हैं?
जवाब: हर कोई मनमोहन सिंह की भी खुलकर आलोचना करता था। क्या तब यह बड़ी बात नहीं थी? मैंने उनकी भी आलोचना की। उस समय मेरी टाइम लाइन मनमोहन सिंह पर बने जोक्स से भरी रहती थी और लोग रीट्वीट्स करते रहते थे। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की आलोचना करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन मोदी पर ट्वीट करने में दिक्कत है? तब पीएम को सम्मान क्यों नहीं दिया गया? इन दिनों डर है, लोग टि्वटर पर पीछे पड़ जाते हैं। कुछ लोग हैं, जो डर पैदा करते हैं। कांग्रेस के राज में कोई आकर हमला नहीं करता था। मैंने राहुल गांधी के बारे में काफी ट्वीट किए और जोक्स भी लिख, लेकिन मुझ पर कोई ऑनलाइन हमला नहीं हुआ।
सवाल: ABVP के बारे में क्या कहेंगे?
जवाब: एबीवीपी के विरोध में मेरे जो ट्वीट्स उनके पीछे की एक पृष्ठभूमि है। मैं कर्नाटक में जब इंजीनियर फर्स्ट ईयर का छात्र था, तब सीनियर हमारी रैगिंग करने आए थे। उसी दौरान कुछ अंजान लोग भी वहां आ गए। उन्होंने फर्स्ट ईयर के छात्रों को ट्रक में धकेल दिया। हमें पता नहीं था, वे कहां ले जा रहे थे। इसके बाद उन्होंने हमें फर्जी पहचान पत्र दिए और बीजेपी के लिए वोट डालने को कहा। उस वक्त स्थानीय निकाय के चुनाव चल रहे थे। जब हम वोट डालकर वापस लौटे तो उन्होंने हमारी अंगुली से स्याही हटाई और फिर से वोट डालने को कहा। हम अंदर गए जरूर, लेकिन बीजेपी को वोट नहीं दिया और उस साल वो हार गई थी। शायद उन्होंने सोचा होगा कि इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स में दिमाग नहीं होता।