पिछले 15 साल की शादीशुदा जिंदगी में, शायरा के लिए सबसे बुरा लम्हा वह है जब उनके पति रिजवान अहमद ने तीन बार ‘तलाक’ कहा। पिछले साल अक्टूबर में जब शायरा अपने उत्तराखंड के काशीपुर जिले में अपने मां-बाप के घर पर थीं, तो उनका डर सच साबित हुआ। रिजवान ने उन्हें इलाहाबाद से तलाक-नामा भेजा था।
परिवार की सलाह पर 35 साल की शायरा अपने केस को आधार बनाकर तीन बार तलाक कहने (तलाक-ए-बिदात), बहुविवाह और हलाला (एक प्रथा जिसमें तलाकशुदा महिलाएं अगर अपने पति के पास लौटना चाहती हैं तो उन्हें दूसरी शादी खत्म करनी पड़ती है।) के खिलाफ लड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी याचिका में कहीं भी विवादास्पद यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र नहीं है, ना ही मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों के बारे में पूछा गया है। उन्होंने कानून के सामने बराबरी और लिंग व धर्म के आधार पर हुए भेदभाव से सुरक्षा की मांग की है।
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शायदा कहती हैं, “शादी के तुरंत बाद ही उन्होंने एक चार पहिया तथा ज्यादा पैसों की मांग शुरू कर दी, लेकिन सिर्फ वही एक समस्या नहीं थी। शुरुआत से ही, मेरे शौहर मेरी हर गलती पर मुझे तलाक की धमकी देते। शादी के पहले दो साल तक जब मुझे बच्चा नहीं हुआ तो मेरी सास ने उनपर मुझे तलाक देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया।” शायरा अब एक 14 साल के लड़के और 12 साल की लड़की की मां हैं, दोनों की कस्टडी उनके शौहर के पास है।
शायरा कहती हैं कि रिजवान से शादी के एक साल बाद, उन्हें इलाहाबाद में अपनी बहन की शादी में जाने नहीं दिया गया। पिछले 14 सालों में, उन्हें अपनी बहन के घर जाने की इजाजत नहीं मिली जोकि उनके इलाहाबाद वाले घर से सिर्फ आधे घंटे की दूरी पर रहती हैं।
शायरा भूल चुकी हैं कि रिजवान ने उन्हें कितनी बार गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया। वह कहती हैं, “शायद 6 या 7 मर्तबा। मैं उनसे अपनी नसंबदी कराने के लिए गिड़गिड़ाती मगर उन्होंने मुझे कभी ऐसा नहीं करने दिया।”
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उनकी मां फिरोजा बेगम कहती हैं कि भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा ने शायरा को जड़ बना दिया है। पिछले साल से पहले, उनकी बेटी ने कभी अपना दर्द बयां नहीं किया था, तब भी नहीं जब रिजवान ने उनका गला दबाने की कोशिश की थी। फिराेजा बताती हैं, “दिमाग खराब हो गया था शायरा का टेंशन ले ले कर। यहां आकर हमने इलाज कराया।”
पिछले साल अप्रैल में जब शायरा की तबियत बिगड़ी तो उनके मुताबिक रिजवान ने उनसे एक छोटा बैग पैक करने को कहा। रिजवान ने शायरा के पिता को उन दोनों से मुरादाबाद के रास्ते में कहीं मिलने को बुलाया, जहां से वे शायरा को घर ले जा सकते। शायरा से कहा गया था कि वह पूरी तरह ठीक होने के बाद ही घर लौट सकती है। शायरा कहती हैं, “जब मेरी हालत में सुधार हुआ, तो मैं उन्हें फोन करती और कहती कि मुझे वापस ले जाओ। लेकिन वह मुझे वापस नहीं आने देना चाहते थे और मेरे बच्चों से बात करने भी नहीं देते थे।” शायरा ने बेचैनी से छह महीने तक इंतजार किया और फिर तलाक-नामा आ गया।
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रिजवान शायरा को पीटने की बात से इनकार करते हैं मगर यह मानते हैं कि उन्होंने उनके रिश्तेदारों से दूरी बनाए रखी। पुरुष और महिला नसबंदी को रिजवान “बहुत हराम” मानते हैं। रिजवान कहते हैं, “मैंने उसे शरियत और हदीस के मुताबिक तलाक दिया है। मैं उसे वापस नहीं ले सकता, यह शरियत के खिलाफ होगा। मजहब ने जो बताया है, उसके खिलाफ जाना अच्छा नहीं है।”
शायरा का परिवार सुप्रीम कोर्ट के वकील बालाजी श्रीनिवासन से मिला। तब तक रिजवान तलाक-नामा भिजवा चुके थे जो शायरा की रिट याचिका का आधार बना। अपनी याचिका में उन्होंने अचानक तीन बार तलाक बोलने पर निकाह खत्म करने के खिलाफ आवाज उठाई है, उन्हें तीन बार तलाक देकर शादी खत्म करने से कोई दिक्कत नहीं है बशर्ते तलाक सोच-समझकर दिया गया हो, ना कि आवेश में। कुरान में कहा गया है कि 90 दिनों के भीतर 3 बार तलाक बोलने पर निकाह खत्म हो जाता है।
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शायरा का मामला पहला ऐसा मामला है जहां एक मुस्लिम महिला ने भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मूल अधिकारों का हवाला देते हुए एक निजी प्रथा को चुनौती दी है। शायरा के इस मामले में धर्मगुरुओं का कहना है कि तलाक देने का सही तरीका यह है कि एक मुसलमान मर्द एक बार तलाक बोले, फिर औरत को अपना व्यवहार बदलने के लिए कुछ समय दे, फिर तलाक कहे, तीसरी बार तलाक बोलने से पहले फिर औरत को समय दे। हालांकि अगर एक ही बार में तीन बार तलाक बोला जाए तो भी वह जायज है। 25 साल से कस्बे के इमाम अताउर रहमान कहते हैं, “कमी औरतों की भी होती है। बिना वजह कोई आदमी तलाक नहीं देता।”
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट, 1937 भारतीय मुसलमानों को शरियत के हिसाब से चलने की इजाजत देता है। मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 का विघटन महिलाओं को अदालत के जरिए तलाक लेने का अधिकार देता है।