Shashi Tharoor Interview: कांग्रेस नेता शशि थरूर केरल की तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को हराकर सांसद बन गए हैं। संसद के बजट सत्र के दौरान चार बार के सांसद थरूर ने सदन में बदलते हुए परिवेश, राहुल गांधी की नई भूमिका, परिसीमन समेत कई सारे मुद्दों पर द इंडियन एक्सप्रेस से बात की है।

क्या आपको लगता है कि 18वीं लोकसभा के गठन के बाद से संसद के कामकाज में कुछ बदलाव आया है?

इसका जवाब देते हुए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि मैं कहूंगा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कोई बड़ा बदलाव हुआ है। हालांकि सरकार ने अपना प्रचंड बहुमत खो दिया है। लेकिन हमने मंत्रिमंडल में पूरी तरह से बदलाव देखा है। अध्यक्ष वही हैं, और अब तक अध्यक्ष और मंत्रियों की किसी भी शैली में कोई बदलाव नहीं देखा है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि स्टैंडिग कमेटी का सही से आवंटन किया जाता है या नहीं। सरकार ने कई सारी परंपराओं को छोड़ दिया था। कांग्रेस के समय में एक मजाक हुआ करता था कि संसदीय कार्य मंत्री अपने पक्ष की तुलना में विपक्ष की बेंच पर ज्यादा समय बिताते थे। बीजेपी के 10 सालों के दौरान ऐसा कभी नहीं हुआ। अचानक पिछले कुछ दिनों में मैंने देखा कि (संसदीय कार्य मंत्री) किरेन रिजिजू हमारे पक्ष में आ गए हैं। लेकिन क्या यह जारी रहेगा और क्या विपक्ष से सहयोग देने की कोई कोशिश होगी, यह कहना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगी।

राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद कोई बदलाव आया?

कांग्रेस सांसद ने कहा कि मैं कहूंगा कि बदलाव की शुरुआत दो भारत जोड़ो यात्राओं से हुई। तब ही से राहुल गांधी ने सड़कों पर उतरना शुरू किया। मैं कहूंगा कि चुनाव से डेढ़ साल पहले ही बदलाव शुरू हो चुका था। लोकसभा इलेक्शन के नतीजों के बाद वे काफी बिजी हैं। हालांकि, वे विपक्ष के नेता के तौर पर भी काफी सक्रिय हैं, वे संसद में काफी बार हिस्सा ले रहे हैं। वे हर एक चीज में अपनी भागीदारी को बढ़ा रहे हैं। इससे आत्मविश्वास की भावना का पता चल जाता है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और काम करने का तरीका पार्टी के अंदर, साथियों और बीजेपी को बहुत मजबूत संदेश दे रहा है कि वे प्रभारी हैं और बीजेपी से मुकाबला करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।

पिछले कार्यकाल से नोंकझोंक किस तरह अलग है?

कांग्रेस नेता ने कहा कि हम पिछली बार के मुकाबले अब दोगुनी ताकत के साथ में चुनाव लड़ रहे हैं। इससे काफी असर पड़ता है। बुलडोजर हमेशा से बीजेपी की पॉलिटिक्स का हिस्सा रहा है और साथ ही लोगों के घरों पर जो कुछ भी हो रहा है, यह उसका निशान भी रहा है। पिछली बार जब विपक्ष ने शोर मचाया था, तब भी उन्होंने विधेयक पारित कर दिए थे। अब ऐसा करना मुश्किल होगा।

पीएम मोदी के भाषण में बाधा डाली गई?

शशि थरूर ने कहा कि यह एक अलग मुद्दा है। मेरे साथियों ने मुझे इस बारे में समझाया कि उन्होंने प्रधानमंत्री के जवाब से पहले मणिपुर के दूसरे सांसद को बोलने के लिए तीन मिनट का समय देने के लिए अध्यक्ष से विनती की थी। यह एक बड़ा मुद्दा था जिससे बीजेपी मणिपुर मुद्दे पर बच निकली। अध्यक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा तीन मिनट का समय देने से इनकार करने से उन्हें तीन मिनट से ज्यादा का नुकसान हुआ। मेरा अपना विचार है कि कई संसदें ऐसी हैं जहां विपक्ष को किसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पूरा दिन दिया जाता है। लेकिन हमारे पास में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। इसलिए सत्ताधारी पार्टी के लिए विपक्ष को जगह देने की कोशिश करना ज्यादा जरूरी है।

मल्लिकार्जुन खड़गे के अब तक के कार्यकाल को आप किस तरह देखते हैं?

इस पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बहुत ही अच्छा काम किया है और उसका काफी ज्यादा असर हमें देखने को भी मिला है।

परिसीमन को लेकर दक्षिण राज्यों ने जताई चिंता

कांग्रेस नेता ने कहा कि मेरी चिंता यह है कि आप इन राज्यों को वोट देने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हैं। केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। अगर 2021 में जनगणना होती, तो उनकी जनसंख्या कम हो जाती। अगर 2031 में जनगणना होती, तो आंध्र प्रदेश की जनसंख्या भी कम हो जाती। कई सारे प्रवासी मजदूर स्थानीय स्तर पर वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराते हैं।

भारतीय राजनीति मे हिंदी पट्टी राज्य दो तिहाई बहुमत देता है और यह गैर हिंदी भाषी राज्यों को पूरी तरह से शक्तिहीन कर देता है। इतना ही नहीं थरूर ने यह भी कहा कि मैं इस तर्क को मानता हूं कि लोकतंत्र में एक व्यक्ति के वोट की एक ही कीमत होनी चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर पूरी तरह से दोबारा से जनगणना करवाई जाए और मान लें कि हिंदी पट्टी को दो-तिहाई बहुमत मिलता है, तो कल कोई कह सकता है कि हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएंगे और तमिलनाडु कहेगा कि हम ऐसे देश में क्यों रहें।

हर कोई मानता है कि अमीरों को गरीबों को सब्सिडी देनी चाहिए। लेकिन अगर अमीर गरीबों को सब्सिडी दे रहे हैं और उनके पास कोई राजनीतिक ताकत नहीं है क्योंकि उन्हें वंचित किया गया है, तो यह एक उपनिवेश जैसा लगेगा।