NCP में इस समय बवाल मचा हुआ है। पार्टी पर कब्जे को लेकर चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच संग्राम चल रहा है। अजित पवार महाराष्ट्र की एनडीए सरकार में मंत्री बन गए हैं और पार्टी के विधायकों का एक बड़ा धड़ा उनके साथ है। उनके गुट की तरफ से यह दावा किया गया है कि अजित पवार ही अब एनसीपी के अध्यक्ष हैं जबकि शरद पवार का दावा है कि पार्टी का नाम और सिंबल उनके साथ ही रहेगा। राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर मानते हैं कि यह समय शरद पवार के राजनीतिक करियर का सबसे कठिन क्षण हो सकता है।

किसान परिवार में हुआ जन्म- शरद पवार का जन्म साल 1940 में बारामती के स्थानीय किसान नेताओं के एक परिवार में हुआ। बारामती पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर है। यह एरिया गन्ने की फसल के लिए पहचाना जाता है। शरद पवार के पिता गोविंदराव ने क्षेत्र में सहकारी चीनी मिलें स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कांग्रेस के साथ शुरू किया सियासी सफर- शरद पवार ने साल 1958 में कांग्रेस पार्टी की यूथ विंग के साथ अपना सियासी करियर शुरू किया। 60 के दशक के मध्य तक उनकी गिनती महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी के तेज-तर्रार नेताओं में होने लगी। साल 1967 में शरद पवार ने पहली बार बारामती से विधानसभा का चुनाव लड़ा। उस समय राज्य में कांग्रेस की कमान यशवंतराव चव्हाण के हाथों में थी। वो राज्य के सीएम थे और उस समय महाराष्ट्र कांग्रेस में सबसे बड़े कद के नेता माने जाते थे।

सबसे कम उम्र में बने महाराष्ट्र के सीएम

साल 1969 में कांग्रेस पार्टी में टूट हुई, इस दौरान शरद पवार अपने गुरु के साथ इंदिरा गांधी के धड़े में गए। 70 के दशक में पार्टी के भीतर उनका कद और बढ़ा। साल 1975 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई, पार्टी को एकबार फिर से टूट का सामना करना पड़ा। इस बार शरद पवार इंदिरा के विरोध में थे। साल 1978 में वह महाराष्ट्र के इतिहास के सबसे युवा मख्यमंत्री बने। उन्होंने कांग्रेस (U) और जनता पर्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। हालांकि उनकी सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी, साल 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को डिसमिस कर दिया।

शरद पवार साल 1986 में एकबार फिर से कांग्रेस में लौटे और अगले एक दशक में उनकी गिनती देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में होने लगी। शरद पवार साल 1999 तक कांग्रेस पार्टी में रहे लेकिन करीब एक दशक पहले से उनके और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच में खटपट शुरू हो गई थी। साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में लीडरशीप वैक्यूम पैदा हो गया। राजीव उस समय सिर्फ 46 साल के थे और माना जाता है कि वह आने वाले लंबे समय तक कांग्रेस का नेतृत्व करते।

कांग्रेस पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शरद पवार ने खुलकर पीएम पद के लिए अपनी महत्वकाक्षाएं रखीं। उनका मानना था कि लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र राज्य में कांग्रेस को मिली भारी सफलता को देखते हुए पीएम पद पर उनका दावा सबसे ज्यादा वाजिब है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए अनुभवी पीवी नरसिम्हा राव को चुनाव।

‘वो लंबी रेस का घोड़ा होगा’

अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘Life on My Terms – From the Grassroots to the Corridors of Power’ में शरद पवार ने इसके लिए सोनिया गांधी को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने लिखा है, “10 जनपथ के स्वयंभू वफादारों ने आपसी बातचीत में यह कहना शुरू कर दिया कि शरद पवार अगर पीएम चुने जाते हैं तो उनकी कम उम्र की वजह से फर्स्ट फैमली के हितों को नुकसान होगा। उनका तर्क था कि वो ‘वो लम्बी रेस का घोड़ा होगा’।”

हालांकि सोनिया गांधी से शरद पवार के मतभेद कांग्रेस के कमजोर होने की एकमात्र वजह नहीं थी। उस दौरान कांग्रेस पार्टी पर अंदरूनी कलह और गुटबाजी भी भारी पड़ रही थी। साल 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं। इससे शरद पवार सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता नाराज हो गए।

इस बारे में देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी जीवनी में लिखा है। वह राष्ट्रपति बनने से पहले कांग्रेस पार्टी में थे। उन्होंने अपनी किताब में इशारा किया है कि शरद पवार पार्टी में अलग-थलग महसूस कर रहे थे। साल 1999 में देश लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ रहा था, उन दिनों शरद पवार ने कांग्रेस के सीनियर नेता पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मामले को उठाया और दावा किया कि उनकी जगह किसी और द्वारा नेतृत्व करना समझदारी होगी। इसके बाद सोनिया गांधी ने तुरंत इस्तीफे की पेशकश कर दी, जिससे पार्टी के भीतर से सहानुभूति और समर्थन की बाढ़ आ गई।

जून 1999 की NCP की स्थापना

कांग्रेस से होने के बाद शरद पवार ने 10 जून 1999 को एनसीपी की स्थापना की। गौर करने वाली बात ये है कि इसके कुछ ही समय बाद शरद पवार और उनकी पार्टी ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया। इस सरकार में अजित पवार, छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल जैसे नेता मंत्री बने। यह गठबंधन साल 2014 तक राज्य की सत्ता में रहा।

मनमोहन सरकार में बने कृषि मंत्री

शरद पवार साल 2004 में मनमोहन सरकार में मंत्री बनाए गए। उन्होंने 2004 से 2010 तक कृषि मंत्रालय संभाला। इस समय काल में एनसीपी लगातार बढ़ती गई, उसने महाराष्ट्र की ग्रामीण बेल्ट में अच्छी पकड़ बनाई। इस दौरान शरद पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। वह BCCI अध्यक्ष पद पर भी रहे। इस दौरान उनके आलोचकों ने उनपर मिनिस्ट्री से ज्यादा क्रिकेट पर फोकस करने का आरोप लगाया।

मोदी युग के आरंभ होने के बाद गई सत्ता

साल 2014 में मोदी युग शुरू होने के साथ ही एनसीपी केंद्र और महाराष्ट्र दोनों की सत्ता से बाहर हो गई। हालांकि इस दौरान एनसीपी ने कुछ समय के बीजेपी की अल्पमत की सरकार को बाहर से समर्थन दिया, जब एनसीपी ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनसीपी ने 34 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे सिर्फ 5 पर ही विजय हासिल हुई। हालांकि 2019 में बीजेपी-शिवसेना के बीच अनबन होने के बाद MVA की सरकार बनी। इसके सूत्रधारा शरद पवार ही बताए जाते हैं।