महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षत्रप शरद पवार (Sharad Pawar) ने ऐलान किया है कि अब वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का अध्यक्ष नहीं रहना चाहते। 2 मई, 2023 को मुंबई में उनकी आत्मकथा के अपडेटेड वर्जन का विमोचन था। तभी उनका यह ऐलान आया। एनसीपी शरद पवार की ही बनाई पार्टी है और एनसीपी मतलब शरद पवार ही समझा जाता है। लेकिन, इन दिनों कई नेता उनके फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। कई नेता मानते हैं कि एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के बजाय भाजपा से गठबंधन करना चाहिए था।
2019 में एनसीपी के नेता अजित पवार, शरद पवार की जानकारी के बिना ही भाजपा के साथ चले गए थे और देवेंद्र फड़णवीस की सरकार में शामिल हो गए थे। एनसीपी के कई नेता मानते हैं कि जो अजित पवार ने तब किया था, वही शरद पवार को करना चाहिए था। ऐसे में शरद पवार की अध्यक्षता छोड़ने की घोषणा पार्टी पर पकड़ मजबूत करने के लिए चला गया एक दावं है या बढ़ती उम्र (83) के मद्देनजर लिया गया सही फैसला, यह खुद पवार ही बता सकते हैं। बहरहाल, पार्टी के नेता-कार्यकर्ता शरद पवार से इस्तीफा वापस लेने के लिए कह रहे हैं।
पवार का सफर
शरद गोविंदराव पवार 24 साल से एनसीपी के अध्यक्ष हैं। 10 जून, 1999 को उन्होंने एनसीपी बनाई थी। तब से वह पार्टी के सर्वेसर्वा रहे। आज वह 83 साल के हैं। पहली बार विधायक बने तो केवल 27 साल के थे। 1968 में बारामती से कांग्रेस के टिकट पर वह पहली बार लड़े और विधायक बन गए। फिर 1990 तक बनते ही रहे।
जब वह 1978 में सीएम बने तो महाराष्ट्र में सबसे कम उम्र (38) के सीएम थे। बाद में भी वह तीन बार मुख्यमंत्री बने। यह भी एक रिकॉर्ड है। हालांकि, यह बात अलग है कि पूरे पांच साल सीएम नहीं रह सके।
1990 के बाद वह केंद्रीय राजनीति में आए। पीवी नरसिंह राव सरकार में बतौर रक्षा मंत्री। 1991 से 1996 तक वह इस पद पर रहे। 1998-99 में कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष की भी भूमिका निभाई। लेकिन, जब 1999 में सोनिया गांधी राजनीति में आईं तो पवार ने ‘विदेशी मूल’ के नाम पर विरोध का झंडा बुलंद कर दिया। उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया। तब पी.ए. संगमा और तारिक अनवर के साथ उन्होंने एनसीपी बनाई। एक ही साल में उन्होंने एनसीपी को राष्ट्रीय पार्टी बना दिया था।
किताब में लिखा- मेरा नाम लेकर विधायकों को ले जाया गया था राजभवन
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में बताया कि 2019 में जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिल कर देवेंद्र फड़णवीस की सरकार में शपथ ले ली थी तो उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। इसकी जानकारी मिलते ही वह अवाक रह गए थे और उन्हें झटका लगा था। वह उस वक्त उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाने की कोशिश कर रहे थे। पवार ने किताब में इस बात का भी जिक्र किया है कि बीजेपी शिवसेना को खत्म कर देना चाहती थी।
सुबह साढ़े छह बजे आए फोन से पता चली अजित पवारी की गद्दारी की खबर
शरद पवार की मराठी में छपी आत्मकथा ‘लोक माझे संगति’ कई साल पहले प्रकाशित हो चुकी थी। अब इसमें शरद पवार ने कुछ और पन्ने जोड़े हैं। वह लिखते हैं- 23 नवंबर, 2019 को सुबह करीब साढ़े छह बजे मेरे पास कॉल आई कि अजित एनसीपी के कुछ विधायकों के साथ राजभवन में हैं और फड़णवीस (देवेंद्र) के साथ अजित भी शपथ लेने वाले हैं। यह जान कर मुझे झटका लगा। मैंने राजभवन में कुछ विधायकों को फोन लगाया। मुझे पता चला कि वहां केवल दस विधायक पहुंचे हुए थे। उनमें से एक विधायक ने बताया कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इस कदम को उनका (शरद पवार) समर्थन है। लेकिन असल में यह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का प्लान था, ताकि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) बनने से रोका जा सके। मैंने उद्धव ठाकरे को तुरंत फोन किया और कहा कि अजित पवार गलत कर रहे हैं। उनके इस कदम को न मेरा और न ही एनसीपी का समर्थन है। मेरे नाम का इस्तेमाल कर एनसीपी विधायकों को राजभवन ले जाया गया है। मैंने उद्धव ठाकरे से 11 बजे की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल होने का अनुरोध किया।
हालांकि, अजित पवार और एनसीपी विधायकों को अपने खेमे में करने में नाकाम रहे थे और जल्द ही खुद भी एनसीपी खेमे में लौट गए थे। शरद पवार ने ऐसे समय में यह बात बताई है जब एक बार फिर अजित पवार के भाजपा खेमे में जाने की अटकलें लग रही हैं। हालांकि, अजित पवार कह चुके हैं कि वह अंतिम सांस तक एनसीपी में ही रहेंगे।
बीजेपी ने ऐसा बनाया था शिवसेना को खत्म करने का प्लान
आत्मकथा में शरद पवार ने एक और बात बताई है। उनका कहना है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी पूर्व सहयोगी शिवसेना को खत्म करने का प्लान बना लिया था। शिवेसना उम्मीदवारों के खिलाफ कई सीटों पर भाजपा ने बागी उम्मीदवार उतारे थे। बता दें कि 2019 में शिवसेना और भाजपा मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ी थीं। चुनाव नतीजे आने के बाद उनके बीच मतभेद हुए थे और करीब तीस साल पुरानी दोस्ती टूट गई थी। बीजेपी से दोस्ती टूटने के बाद उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया था और सीएम पद की शपथ ली थी।
शरद पवार ने लिखा- 2019 विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना नेताओं में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा भर गया था। बीजेपी ने नारायण राणे की स्वाभिमान पार्टी का विलय करा कर शिवसेना के जख्मों पर नमक भी छिड़क दिया। राणे को शिवसेना गद्दार के तौर पर देखती थी। शरद पवार ने किताब में दावा किया है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 50 सीटों पर शिवसेना के खिलाफ बागी उम्मीदवार उतारे थे। इसका मकसद था कि विधानसभा में शिवसेना विधायकों की संख्या कम हो और सत्ता पर भाजपा का एकाधिकार हो।