वाकया 2019 का है। आम चुनाव के दौरान आजम खान पर हेट स्पीच का केस दर्ज हुआ। ये पहली बार था जब वो किसी मुकदमे में फंसे थे। लेकिन उसके बाद से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। आलम ये है कि आजम और उनके बेटे अब्दुल्ला पर 124 केस दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें से 83 आजम खाम पर दर्ज हैं जबकि 41 उनके बेटे अब्दुल्ला आजम पर। चार दशकों में ये पहली बार है कि आजम खान परिवार का कोई भी सदस्य संसद या यूपी असेंबली में नहीं दिखने जा रहा। आजम के साथ उनके बेटे को 15 साल पुराने मामले में मुरादाबाद की अदालत ने सजा सुनाई है। सजा दो-दो साल की है। जाहिर है कि नियमों के मुताबिक अब अब्दुल्ला आजम यूपी असेंबली के सदस्य नहीं रह पाएंगे। आजम पहले ही विधायकी खो चुके हैं।
फिलहाल आजम परिवार के लिए अपने वजूद को बचाने का सवाल उठ खड़ा हुआ है। 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से आजम खान पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। हेटस्पीच के मामले में उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई तो वो उनकी विधायकी भी चली गई। चुनाव आयोग ने उनकी सीट पर उप चुनाव कराया। आजम ने जीतोड़ कोशिश की कि सीट उनके किसी चहेते के पास रहे। लेकिन बीजेपी के आकाश सक्सेना ने उनके नुमाइंदे को हरा कर रामपुर की सीट पर कब्जा कर लिया। अब्दुल्ला आजम स्वार सीट से भारी मतों से जीतकर आए थे।
जिस तरह के हालात बन पड़े हैं उसमें अब्दुल्ला की विधायकी जाना भी तय है। उसके बाद जो उप चुनाव होगा उसमें स्वार सीट पर फिर से अपना परचम आजम परिवार लहरा भी पाता है या नहीं ये बड़ा सवाल है। हालात देखकर लगता नहीं कि बीजेपी उनके यूं ही स्वार से जीतने देगी। हालांकि सपा के एक नेता कहते हैं कि आजम का समय खराब चल रहा है। लेकन इसका ये मतलब नहीं कि वो खत्म हो गए। आजम और उनका परिवार फिर से बाउंस बैक करेगा। ये सब राजनीति है और आजम को बखूबी पता है कि किस तरह से फिर से अपना वजूद कायम किया जाता है।
हालांकि जिस तरह से बीजेपी की सरकार उनको आड़े हाथ लेने पर तुली है उसमें लगता है कि आजम की लड़ाई उतनी आसान नहीं है। योगी सरकार ने आजम के परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं छोड़ा है। उनकी पत्नी तंजीन फातिमा को भी जेल की हवा खानी पड़ गई थी। मोहम्मद अली जौहर विवि पर पहले से ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अपने भी साथ छोड़ने में पीछे नहीं हैं। उनके खासमखास फसाहत अली खान जैसे लोग भी उनका दामन छोड़ते जा रहे हैं। 27 महीने तक लगातार जेल में रहने से आजम खान का दबदबा रामपुर में काफी कम हुआ है। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति के माहिर खिलाड़ी चौसर पर कैसे गोट आगे बढ़ाते हैं। उनके नजदीकी लोग मानते हैं कि वो कमजोर हुए हैं पर खत्म नहीं हुए।