विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को बरकरार रखने की सिफारिश की है। विधि आयोग ने कहा कि उसका मानना है कि राजद्रोह से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को बरकरार रखने की आवश्यकता है, लेकिन इसके इस्तेमाल के संबंध में अधिक स्पष्टता लाने के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।

सरकार को सौंपी अपनी रपट में आयोग ने कहा कि धारा 124ए के दुरुपयोग संबंधी विचार पर गौर करते हुए वह यह सिफारिश करता है कि केंद्र द्वारा दुरुपयोगों पर लगाम लगाते हुए आदर्श दिशानिर्देश जारी किया जाए। 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे पत्र में कहा कि इस संदर्भ में वैकल्पिक रूप से यह भी सुझाव दिया जाता है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 196 (3) के अनुरूप एक प्रावधान शामिल किया जा सकता है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत किसी अपराध के संबंध में प्राथमिकी दर्ज किए जाने से पहले अपेक्षित प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करेगा।

धारा 124ए राजद्रोह को इस प्रकार परिभाषित करती है: ‘जो कोई, शब्दों से, या तो लिखित वक्ता, या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा, घृणा या अवमानना लाने का प्रयास करता है, या उत्तेजित करता है या उसके द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है।’

आयोग ने यह भी कहा कि ‘औपनिवेशिक विरासत’ होने के आधार पर राजद्रोह को निरस्त करना उचित नहीं है। आयोग ने कहा कि महज इस आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, यह अनिवार्य रूप से भारत की मौजूदा जमीनी हकीकत के प्रति आंख मूंदना है।

पांच साल में 548 गिरफ्तार, सिर्फ 12 दोषी

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, पांच साल देश में राजद्रोह की धाराओं के 356 मामले दर्ज किए गए। 548 लोगों को गिरफ्तारी की गई। सिर्फ 12 लोगों को दोषी साबित किया जा सका। एक मई को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त तक के लिए टाल दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2022 को राजद्रोह कानून पर रोक लगाई थी, जिसे 31 अक्तूबर 2022 तक बढ़ा दिया गया था। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया जाए और पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून यानी 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न किया जाए।

अगर किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मामला एक बार दर्ज हो गया तो वह सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता।आइपीसी की धारा 124ए गैर जमानती अपराध है। इस कानून के तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

क्या है कानून

धारा 124ए राजद्रोह को इस प्रकार परिभाषित करती है: ‘जो कोई, शब्दों से, या तो लिखित वक्ता, या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा, घृणा या अवमानना लाने का प्रयास करता है, या उत्तेजित करता है या उसके द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है।’