कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले योग गुरु स्वामी रामदेव ने जी न्यूज से बातचीत में कहा था कि देश को कोरोना से काढ़े ने बचाया। ये उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो स्वदेशी से नफरत करते हैं। रामदेव ने कहा था, ‘जो ड्रग माफिया हैं। जो देश में मेडिकल टेररिज्म फैलाने का काम करते हैं और मेडिकल एनारकी लाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे काम से उनके पेट में दर्द होने लगा है। आगे भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन का ऑफिस हो हमें इस दिशा में जाने की जरूरत है।’

रामदेव ने कहा, ‘ एलोपैथी से बड़ा हमारा योग और आयुर्वेद है। करोड़ों लोगों ने कोरोनिल दवाई खाई है। लोगों ने काढ़ा पिया। 25 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी पाई गई। भारत में रिकवरी रेट इसलिए ज्यादा है क्योंकि लोगों ने मुझ पर,पीएम पर अपने संस्कारों और संस्कृति पर भरोसा किया है। काढ़े से देश बचा है और आगे भी बचा रहेगा। जिन लोगों को स्वेदशी से नफरत है उनके लिए ये करारा तमाचा है।’

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2,67,334 नए संक्रमणों के साथ COVID-19 मामलों की कुल संख्या बढ़कर 2,54,96,330 हो गई है, जबकि कोरोना से ठीक होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 2,19,86,363 हो गई है। 4,529 नई मौतों के साथ मृत्यु संख्या बढ़कर 2,83,248 हो गई।

इस बीच, मुंबई में कोरोना वायरस का आंकड़ा 10 सप्ताह से अधिक के बाद 1,000 मामलों से नीचे आ गया है। मुंबई अप्रैल में कोविड संक्रमण की खतरनाक दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित हो गई थी। मंगलवार को यहां सिर्फ 953 मामले दर्ज किए गए, जो 2 मार्च के बाद से सबसे कम है। हालांकि, अप्रैल के स्तर की तुलना में टेस्टिंग में भी तेजी से गिरावट आई है।

शहर में मंगलवार को एक दिन में 44 मौतें हुईं। मुंबई में पॉजिटिविटी रेट 5.31 प्रतिशत है – जो अप्रैल के आंकड़ों से कम है। शहर की रिकवरी रेट भी सुधर कर 93 फीसदी हो गई है। कोरोना के मामले दोगुने होने का आंकड़ा 255 दिनों पर टिका हुआ है। मुंबई में 2 मार्च को 849 मामले दर्ज किए गए थे, हालांकि, अगले कुछ सप्ताह बेहद चुनौतीपूर्ण थे क्योंकि शहर एक अभूतपूर्व उछाल की चपेट में था। इससे शहर का स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया था।

हाल ही में जारी एक मीडिया बयान में, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि उसने भारत में लोगों की कीमत पर कभी भी टीकों का निर्यात नहीं किया है और देश में टीकाकरण अभियान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। संस्थान ने कहा है,“इतनी बड़ी आबादी के लिए एक टीकाकरण अभियान 2-3 महीनों के भीतर पूरा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसमें कई कारक और चुनौतियाँ शामिल हैं। पूरी दुनिया की आबादी को पूरी तरह से टीका लगने में 2-3 साल लगेंगे।”