रामानुज पाठक

शैवाल जड़, तना और पत्ती विहीन ऐसी वनस्पति हैं, जो पृथ्वी पर नब्बे फीसद प्रकाश संश्लेषण करते यानी सबसे ज्यादा आक्सीजन पैदा करते हैं। वैज्ञानिकों ने शैवालों को इक्कीसवीं सदी का चिकित्सीय भोजन माना है। भारत सरकार ने 2021 फरवरी में समुद्री शैवाल (सी-वीड) मिशन की शुरुआत की थी। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य समुद्री उत्पादन में विविधता लाने और मछुआरों की आय बढ़ाने के लिए समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देना है।

उद्योगों की एक विस्तृत शृंखला में समुद्री शैवाल और सूक्ष्म शैवाल के कई उपयोग हैं। समुद्री शैवाल फाइबर, आयोडीन और विटामिन से भरपूर होते हैं। हजारों वर्षों से तटीय समुदायों के लिए भोजन, पशु चारा और उर्वरक का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहे हैं। कोंबू और नोरी जैसे समुद्री शैवाल पूर्वी एशिया में एक अभिन्न और पारंपरिक खाद्य स्रोत हैं, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन विश्व स्तर पर सबसे अधिक समुद्री शैवाल का उपभोग करते हैं।

समुद्री शैवाल का वैश्विक उत्पादन 320 लाख टन से भी अधिक है। इसका मूल्य लगभग बारह अरब अमेरिकी डालर है। इसके कुल वैश्विक उत्पादन का 57 फीसद हिस्सा अकेले चीन पैदा करता है। वहीं 28 फीसद हिस्सा इंडोनेशिया तथा तीसरे स्थान पर दक्षिण कोरिया है, जबकि भारत वैश्विक समुद्री शैवाल का मात्र 0.01 से 0.02 फीसद उत्पादन करता है। खाद्य समुद्री शैवाल और सूक्ष्म शैवाल अब दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।

जैसे-जैसे समुद्री शैवाल और सूक्ष्म शैवाल की वैश्विक मांग बढ़ रही है, यह महत्त्वपूर्ण है कि उनकी निरंतर कटाई और खेती की जाए और प्राकृतिक पर्यावरण पर प्रभाव न्यूनतम किया जाए। अच्छे प्रबंधन के बिना, समुद्री शैवाल की खेती में पानी की गुणवत्ता में बदलाव और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान सहित कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, एमएससी और एक्वाकल्चर स्टीवर्डशिप काउंसिल (एएससी) ने संयुक्त समुद्री शैवाल मानक बनाया है, जो टिकाऊ और सामाजिक रूप से जिम्मेदार समुद्री शैवाल उत्पादन को मान्यता देता और सुधार के लिए एक वैश्विक मानक प्रदान करता है। सूक्ष्म शैवाल बड़ी मात्रा में तेल का भी उत्पादन करते हैं, जिसका उपयोग जैव ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

एक अनुमान के अनुसार अगर ‘सी-वीड’ की खेती भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के सौ लाख हेक्टेयर या पांच फीसद क्षेत्र में की जाती है, तो पांच करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है। इससे एक नया समुद्री शैवाल (सी-वीड) उद्योग स्थापित हो सकता है। यह राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ा योगदान, समुद्री उत्पादों में वृद्धि, लाखों टन कार्बन डाईआक्साइड को अवशोषित और 6.6 अरब टन जैव ईंधन का उत्पादन कर सकता है।

कई समुद्री शैवालों में प्रतिशोथ (एंटी-इंफ्लेमेटरी) और जीवाणुरोधी (एंटी-माइक्रोबियल) तत्त्व मौजूद होते हैं। कुछ समुद्री शैवालों में कैंसर से लड़ने वाले शक्तिशाली तत्त्व भी पाए जाते हैं, इसलिए शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि ये लोगों में घातक ट्यूमर और ल्यूकेमिया के उपचार में प्रभावी साबित होंगे।

समुद्री शैवाल समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले अधिकांश भारी धातुओं को अवशोषित कर लेता है। ये अपने शरीर के हर हिस्से से आक्सीजन छोड़ते हैं। ये अन्य समुद्री जीवों को भी जैविक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करते हैं। पानी के नीचे जंगलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें केल्प फारेस्ट कहा जाता है। ये जंगल मछली, घोंघे आदि के लिए नर्सरी का काम करते हैं।

तमिलनाडु में समुद्री शैवाल की खेती के लिए एक विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाया गया है। अभी हाल में गुजरात के कच्छ क्षेत्र में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। उसका उद्देश्य समुद्री शैवाल की खेती को अखिल भारतीय स्तर पर लागू करना और बढ़ावा देना था। इसमें समुद्री शैवाल उत्पादन से रोजगार सृजन का एक विकल्प तैयार करने पर बल दिया गया।

जापान में सारगासम तथा सोडे को मिलाकर गोंद जैसा पदार्थ प्राप्त किया जाता है, जिससे कृत्रिम रेशम बनाई जाती है। पोरफाइरा की तरह लाल शैवाल यूरोप तथा जापान में साबुन बनाने में उपयोग किया जाता है। व्यापारिक वस्तुओं के निर्माण में कोंदूस नामक लाल शैवाल और कैराजोनियम की विभिन्न प्रजातियों से एक श्लेष्मिक पदार्थ प्राप्त किया जाता है।

यह रंग, शैंपू, टूथपेस्ट, चमड़े की सफाई, दुग्ध उद्योग, डबलरोटी उद्योग, जूतों की पालिस, ब्रश तथा दूध की ‘बंकलेट’ आदि बनाने में प्रयुक्त होता है। इसके अलावा इसे सौंदर्य प्रसाधनों, फलों की जेली, खाद्य सामग्री, औषधियों में प्रयुक्त किया जाता है। आयोडीन उद्योगों में पूरी तरह से शैवालों का ही उपयोग किया जाता है। समुद्री शैवाल को अनेक देशों में भूसे या चारे की तरह पशुओं को खिलाया जाता है। समुद्री शैवाल मिश्रित भोजन देने पर पशुओं के दूध में वसा अधिक पाया गया।

आज भारत में भी समुद्री शैवालों का मिश्रण बाजारों में उपलब्ध कराया जाता है। समुद्री शैवाल से बने जैव उर्वरक कृषि उत्पादन में वरदान साबित हो रहे हैं। भारत में लगभग 844 समुद्री शैवाल प्रजातियां पाई जाती हैं। 7500 किलोमीटर का विशाल तटीय क्षेत्र भारत में है। समुद्री शैवाल की खेती के अनेक लाभों के बावजूद, भारत में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के समान व्यावसायिक खेती नहीं की जाती है। समुद्री शैवाल की खेती के लिए गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओड़ीशा, कर्नाटक के तटवर्ती इलाके आदर्श माने जा सकते हैं।

भारत समुद्री शैवाल की बड़े पैमाने पर खेती के लिए नर्सरी की स्थापना कर खाद्य समुद्री शैवाल के लिए प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी की स्थापना कर सकता और समुद्री ‘शैवाल क्लस्टर’ का विकास कर इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित कर और लगभग तीन करोड़ से अधिक लोगों के लिए रोजगार का सृजन कर सकता है। इससे समुद्री उत्पादकता में वृद्धि होगी, शैवाल प्रस्फुटन को कम किया जा सकेगा और महासागरों को स्वस्थ रखकर लाखों टन कार्बन डाईआक्साइड का अवशोषण किया जा सकेगा। साथ ही पर्यावरण हितैषी जैव र्इंधन, जैव एथेनाल का उत्पादन किया जा सकेगा।

समुद्री शैवाल मिशन का उद्देश्य मूल्य संवर्द्धन के लिए समुद्री शैवाल की खेती तथा उसका वाणिज्यीकरण करना ही है। इसका लक्ष्य भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर कृषि को विस्तृत करना है। गौरतलब है कि समुद्री शैवाल उत्पादों का वाणिज्यीकरण शुरू हो चुका है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर), केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआइ) ने दो समुद्री शैवाल आधारित ‘न्यूट्रास्युटिकल’ उत्पादों, कैडलमिन टीएम, इम्यूनलगिन अर्क (कैडलमिन टीएम/एमई) और कैडलमिन टीएम उच्च कोलेस्ट्रालरोधी अर्क (कैडलमिन टीएमआइएमई) का सफलतापूर्वक वाणिज्यीकरण किया है।

समुद्री शैवाल के उपयोग अनंत हैं, जिसमें लैक्सेटिव, फार्मास्युटिकल कैप्सूल, घेंघा/ थायराइड उपचार, कैंसर चिकित्सा, अस्थि प्रतिस्थापन और हृदय संबंधी सर्जरी भी शामिल हैं। पर्यावरण अनुकूल ‘हरित’ प्रौद्योगिकी से विकसित इन उत्पादों का उद्देश्य विषाणुरोधी (एंटी-वायरल) प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना तथा कोलेस्ट्राल के असंतुलन की रोकथाम करना है। तमिलनाडु में स्थित बहुउद्देश्यीय समुद्री शैवाल पार्क समुद्री शैवाल के महत्त्व को उजागर करता है।