सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी मामले में कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को शुक्रवार को जमानत दे दी। अदालत ने कहा कि वो पांच वर्ष से हिरासत में हैं। लिहाजा उनको जमानत पर रिहा किया जाना ठीक है। दोनों की जमानत को अदालत ने मंजूर कर दिया।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने निर्देश दिया कि गोंजाल्विस तथा फरेरा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे। पुलिस के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराएंगे। कोर्ट ने कहा कि दोनों आरोपी एक-एक मोबाइल का इस्तेमाल करेंगे और मामले की जांच कर रही एनआईए को अपना पता बताएंगे। एजेंसी को उनका सही पता मालूम होगा तो वो उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख सकेगी। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि दोनों के खिलाफ लगे आरोप काफी संगीन हैं। लेकिन ये भी देखना होगा कि वो पांच सालों से हिरासत में हैं। उन्हें इस तरह से कैद तो नहीं रखा जा सकता।

वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका बंबई उच्च न्यायालय से खारिज हो गई थी। उसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। यह मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम से जुड़ा है। पुणे पुलिस का कहना है कि इसके लिए पैसा माओवादियों ने उपलब्ध कराया था। पुलिस का आरोप है कि कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक में हिंसा भड़की थी।

2018 में सामने आया था भीमा कोरेगांव मामला

भीमाकोरेगांव मामला 2018 में सामने आया था। एनआईए का आरोप है कि इस मामले से जुड़े लोगों के निशाने पर पीएम मोदी थे। उनकी हत्या की साजिश ये लोग रच रहे थे। पुलिस को इस संबंध में एक ईमेल भी मिला था। उसके बाद कई लोगों को हिरासत में लिया गया था। गोंजाल्विस और अरुण फरेरा 2018 से महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद थे। दोनों ने जमानत के लिए अर्जी दाखिल की थी लेकिन पहले लोकल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत का कहना था कि दोनों को ऐसे मामले में जमानत पर नहीं छोड़ सकते।