सद्विद्या प्रतिष्ठानम् ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान एक बड़ी पहल की है। जिस संस्कृत भाषा को सभी भूल चुके हैं, उसे लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। इस कार्यक्रम का एक ही उदेश्य था- प्राचीन भाषा को सभी तक पहुंचाना। अब इस काम को सफल करने के लिए आयोजकों ने एक ही छत के नीचे संस्कृत शिक्षक, भाषाविद्यालयों और उनके प्रशंसको को साथ लाने का काम किया।
इस कार्यक्रम में केरल के काली से ब्रह्राश्री रमेष द्रविड श्रार्चाय ने हिस्सा लिया और उनकी तरफ से युवा पीढ़ी को संस्कृत से परिचित करवाया गया औक उन्होंने अपने कई प्राचीन श्कोल के जरिए महिला सम्मान का भी जिक्र किया। जोर देकर कहा गया कि शक्ति की महत्व को संस्कृत के प्रसार से ही समझा जा सकता है। इसी कड़ी में दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व वरिष्ठ संस्कृत शिक्षिका डॉक्टर श्रीमती धर्मा ने भी संस्कृत भाषा को लेकर काफी कुछ बताया। उन्होंने वैदिक ज्ञान के जरिए लोगों तक पर्यावरण संज्ञान का महत्व पहुंचाया।
इसी तरह एक और अतिथि आए डॉक्टर शंकर दत्त ने संस्कृत को योग से जोड़ने का काम किया। उन्होंने कहा कि योग की सफल प्रैक्टिस भी तभी संभव है जब लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान पूरा मिलेगा। अब कार्यक्रम के दौरान एक और संस्कृत विशेषज्ञ आईं वाघधीश्वरी विघ्नेश ने बताया कि संस्कृत के जरिए ही संगीत के उत्थान की प्रक्रिया शुरू हुई, उनके मुताबिक संस्कृत लेखों से ही संगीत की उत्पति की खोज हुई।
वैसे इस कार्यक्रम में मेहमानों ने अपनी राय तो रखी ही, इसके अलावा वहां मौजूद लोगों को एक खूबसूरत नाटक भी दिखाया गया। उस नाटक को संस्कृत स्वाध्याय मंडलम के बच्चों ने पेश किया था। वो नाटक कांची कामकोटि पीठ के महा पेरियावा पर आधारित था।