Sambhal Jama Masjid Controversy: उत्तर प्रदेश में हाल ही में संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान जबरदस्त हिंसा हुई। हिंसा में चार युवकों की मौत हो गई। मरने वालों के नाम नईम गाजी, बिलाल अंसारी, अयान अब्बासी और कैफ अल्वी हैं। संभल हिंसा को लेकर उत्तर प्रदेश में सरकार की अगुवाई कर रही बीजेपी और विपक्षी दलों- सपा, कांग्रेस के बीच जबरदस्त भिड़ंत हो चुकी है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि संभल में दंगा और हिंसा जानबूझकर कर भड़काई गई जबकि बीजेपी की ओर से कहा गया कि सपा अपराधियों को संरक्षण दे रही है। समाजवादी पार्टी ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया था।

अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर दावा

संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर हुई हिंसा के बीच ही कई और मस्जिदों के सर्वे की मांग की बात भी सामने आई। जैसे- प्राचीन अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा अदालत में किया गया और अदालत में याचिका दायर की गयी। पिछले कुछ दिनों में बदायूं में शम्सी शाही मस्जिद और जौनपुर की अटाला मस्जिद को लेकर भी दावे किए गए हैं और अदालत में याचिकाएं दायर की गई हैं।

Ajmer Sharif Dargah: संभल, अजमेर दरगाह ऐसे तमाम विवादों में क्यों होता है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का जिक्र, बाबरी मस्जिद मामले को इससे क्यों रखा गया था बाहर?

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नरसिम्हा राव सरकार लाई थी विधेयक। (Source-PTI)

इस तरह के विवादों को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह के और भी मामले सामने आ सकते हैं और इनका सीधा असर विधानसभा चुनाव पर होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

बाबरी मस्जिद विवाद का असर

इससे पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे वक्त तक शोरगुल रहा है। या यूं कहना चाहिए कि न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश की राजनीति को इस घटना ने प्रभावित किया है। इसके अलावा वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर भी अदालत में याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 को चुनौती

मंदिर-मस्जिद को लेकर होने वाले ऐसे तमाम दावों और विवादों के बीच प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 (Places of worship act, 1991) की भी चर्चा हुई। यह एक्ट कहता है कि किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही रहना चाहिए जैसा यह 15 अगस्त, 1947 को था। इस एक्ट का सेक्शन 3 कहता है कि किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में नहीं बदला जाएगा। लेकिन इस एक्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है।

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अजमेर शरीफ दरगाह का क्या इतिहास है? (Source-PTI)

सपा और बीजेपी के बीच होगी सीधी लड़ाई

उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से यह साफ है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होने जा रही है। यह भी तय है कि यह लड़ाई बहुत आक्रामक होगी।

2024 में यूपी में हुआ बीजेपी को बड़ा नुकसान

राजनीतिक दल 2024 में मिली सीटें2019 में मिली सीटें
बीजेपी 3362
सपा 375
कांग्रेस61
बीएसपी 010
रालोद2
अपना दल (एस)12
आजाद समाज पार्टी(कांशीराम)1

आक्रामक हिंदुत्व के रास्ते पर योगी

यह भी ध्यान रखना होगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति का रास्ता अख्तियार किया है। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा देकर हिंदू समुदाय से एकजुट होने की अपील की है।

‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का यह नारा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में काफी चर्चा में रहा था। चुनाव नतीजों के लिहाज से देखें तो झारखंड में भले ही यह नारा नहीं चला था लेकिन महाराष्ट्र में इस नारे ने काफी असर दिखाया था और यहां पर बीजेपी की अगुवाई में महायुति गठबंधन ने प्रचंड जीत हासिल की थी।

विपक्ष का पीडीए कार्ड, जाति जनगणना वाला दांव

दूसरी ओर, अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए कार्ड के जरिए 2027 के चुनाव में जीत की उम्मीद कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को पछाड़ दिया था लेकिन हाल ही में नौ विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए अच्छे रहे थे। सात सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को जीत मिली थी।

निश्चित रूप से जिस तरह का माहौल उत्तर प्रदेश की राजनीति में है, उसमें यह साफ दिख रहा है कि ऐसा ही माहौल अगर बना रहा तो 2027 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त ध्रुवीकरण हो सकता है।

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हिंदू सेना की याचिका को लेकर हो रहा विवाद। (Source- @narendramodi/X)

महाकुंभ के आयोजन को लेकर बड़ी तैयारी

साल 2025 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ होने जा रहा है। महाकुंभ को हिंदू धर्म और इसकी आस्थाओं को मानने वालों का एक बड़ा सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है। महाकुंभ को सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उनकी पूरी सरकार, बीजेपी संगठन, पार्टी पदाधिकारियों के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोग भी सक्रिय हैं। बीजेपी और संघ परिवार की कोशिश है कि महाकुंभ के जरिए हिंदू जातियों के बीच एकजुटता का संदेश दिया जा सके।

बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व के बड़े चेहरे के साथ ही विकास के चेहरे के तौर पर भी आगे किया है। बीजेपी इस बात को जानती है कि विपक्षी गठबंधन लगातार जाति जनगणना कराए जाने की मांग कर रहा है, ऐसे में उसे आक्रामक हिंदुत्व के रास्ते पर तो आगे बढ़ना ही होगा, विकास के कामों को भी सामने रखना होगा।

हालांकि आरएसएस ने इस तरह के विवादों से खुद को दूर रखने की पूरी कोशिश की है। आरएसएस की ओर से यह स्पष्ट संदेश है कि अदालत में इस तरह की याचिकाएं दायर करने वाले लोगों का संघ परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन दूसरी ओर बीजेपी और योगी सरकार का भी संदेश साफ है कि अगर अदालत के आदेश के विरोध में कोई हिंसा करेगा तो सरकार ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटेगी।

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस ने जाति जनगणना, पीडीए कार्ड के साथ ही बीजेपी पर संविधान और आरक्षण का विरोधी होने को मुद्दा बनाया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान इन मुद्दों का विपक्षी गठबंधन को फायदा हुआ था लेकिन देखना होगा कि क्या उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले चुनाव में भी ऐसा होगा?

यह माना जा रहा है कि बीजेपी अब उत्तर प्रदेश में आक्रामक हिंदुत्व के रास्ते पर और आगे बढ़ेगी और 2027 के विधानसभा चुनाव तक मंदिर-मस्जिद विवाद वाले मामले काफी तूल पकड़ सकते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश का 2027 का चुनाव बहुत ही जोरदार टक्कर वाला होगा और इसमें 25 करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश की हर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।

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