वैश्विक व्यापार के ऐतिहासिक मार्ग का अहम ठिकाना रहे उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में विश्व राजनय के नए समीकरण गढ़े जाने के संकेत मिले हैं। कूटनीति के स्तर पर हाल में वहां हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के कई महत्त्वपूर्ण सामरिक मायने निकाले जा रहे हैं। एक क्षेत्रीय संगठन के तौर पर एससीओ और उसके सदस्यों के अपने अंदरूनी और आपसी मसले भी हो सकते हैं और तमाम पेचीदगियां भी।

बावजूद इसके सम्मेलन के आखिर में कई प्रस्ताव पारित किए जा सके, जिनका क्षेत्रीय स्तर पर सकारात्मक असर होगा। भारत ने कई द्विपक्षीय लाभ हासिल किए। हालांकि, कुछ अप्रिय मुद्दे भी उभरे। अगले दो साल में भारत को अहम अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां मिलने वाली हैं। पश्चिमी देशों के साथ बने कई अहम संगठनों में भारत अहम भूमिका में है। एससीओ में रूस, ईरान, तुर्की और चीन का भारत को लेकर नरम रवैया दिखा।

भारत को क्या हासिल

बहुपक्षीय स्तर पर भारत को आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, कारोबार संबंध को लेकर काफी कुछ हासिल हुआ। आतंकवाद को लेकर भारत के इस प्रस्ताव को लेकर सहमति बनी कि एसीओ क्षेत्र के आतंकियों की समेकित सूची तैयार की जाए। जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को लेकर प्रस्ताव पर सभी सहमत हुए। आपसी सहयोग को लेकर 2023-27 के लिए कार्ययोजना पर सहमति बनी।

भारत को स्टार्टअप पर साझा कार्यदल की अध्यक्षता मिली। वाराणसी को एससीओ ने वर्ष 2022-2023 के लिए अपना पर्यटन और सांस्कृतिक शहर घोषित किया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय वार्ता में यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठा। ईरान पहली बार शामिल हुआ। वहां के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के साथ चाबहार और ऊर्जा करार को लेकर बात हुई।

तुर्की के राष्ट्रपति रेसप तैयब एर्दोगान के साथ द्विपक्षी कारोबार और पर्यटन विकास पर बातचीत हुई। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर तुर्की अक्सर पाकिस्तान का साथ देता है। एससीओ में तुर्की के इस रवैए में नरमी आई है। उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शोवकत मिर्जीयोयेव के साथ प्रधानमंत्री ने कारोबार, आटी और चाबहार होकर संपर्क पर बात की।

सहमति का सवाल

जानकारों के मुताबिक, एससीओ और रूस समेत इसके तमाम सदस्य देशों के लिए यूक्रेन के सिवा जमाने में और भी गम हैं। एससीओ को तानाशाहों की बैठकी तक का नाम दिया गया। लेकिन यह स्पष्ट है कि दुनिया की तीन महाशक्तियां- चीन, रूस, और भारत और उनके साथी एससीओ सदस्य देशों के लिए हर बात पर सहमति ना कभी थी और ना कभी रहेगी।

वजह यह है कि इन देशों के व्यापक हितों, चिंताओं, और नीति-संबंधी मामलों में समानताएं तो हैं लेकिन अपनी अलग-अलग वरीयताएं, मूल्य, और ऐतिहासिक कारक भी रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री रूसी राष्ट्रपति से मिले, लेकिन चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से नहीं। दूसरे, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि चीन और रूस के बीच यूक्रेन को लेकर पूरी तरह सहमति नहीं है।

पुतिन ने साथ ही यह भी कहा कि रूस यूक्रेन पर चीन के संतुलित रुख का आदर करता है। यह संतुलित रुख उन तमाम अटकलों पर सवालिया निशान लगाता है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि रूस और चीन मिलकर एक नए शीत युद्ध की तैयारी कर रहे हैं। दूसरा दिलचस्प बयान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया। पुतिन के साथ बातचीत के दौरान मोदी का यह कहना कि आज के दौर में युद्ध की कोई जगह नहीं है, पश्चिमी मीडिया को चौंकाने वाला लगा होगा, लेकिन यह भारत की बहुध्रुवीय नीति का अभिन्न हिस्सा है।

भारत की भूमिका

विश्व में कूटनीति के स्तर पर भारत का कद और बड़ा होता दिख रहा है। भारत अगले साल जहां एससीओ की बैठक करने जा रहा है वहीं वो कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और धड़ों की भी अध्यक्षता करने जा रहा है। एससीओ के अलावा भारत को दुनिया के 20 ताकतवर देशों के समूह जी-20 की अध्यक्षता का कार्यभार भी इसी साल मिलने जा रहा है। अगले साल इसकी शिखर बैठक भारत में आयोजित होगी।

इसे भी कूटनीति के क्षेत्र में अहम घटना के तौर पर देखा जा रहा है। इसके अलावा दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले इस समूह की अध्यक्षता भारत को एक दिसंबर 2022 को मिलेगी जो अगले साल 30 नवंबर तक उसके पास रहेगी। अगर कोई देश जी-20 की अध्यक्षता कर रहा हो तो उसके पास यह अधिकार होता है कि वो किसी देश को अतिथि के तौर पर इसमें भाग लेने की अनुमति दे।

भारत जी-20 में अतिथि देश के तौर पर बांग्लादेश, मिस्र, मारिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को न्योता भेजेगा। दुनिया के नक्शे पर अगर इन देशों की भौगोलिक मौजूदगी को देखा जाए तो भारत ने बहुत सोच समझकर यह फैसला लिया है। बांग्लादेश जहां भारत का पड़ोसी देश है, वहीं इस सूची में अरब, यूरोप, अफ्रीका और पूर्वी एशिया के देश शामिल हैं।

क्या चुनौतियां उभरीं

एससीओ के सदस्य देशों में अपने-अपने दूसरे गठबंधनों के साथ तालमेल का तनाव दिखा। खासकर भारत के सामने अमेरिका, यूरोपीय संघ और क्वाड जैसे अपने पश्चिमी सहयोगियों के साथ समन्वय की चुनौती रही। एक ओर निरंकुश नेताओं को साधने की चुनौती, दूसरी ओर लोकतांत्रिक गठबंधनों से राब्ता। जिन देशों पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखे हैं, मसलन- रूस, ईरान, बेलारूस, चीन- इनसे संबंधों को जारी रखना होगा।

एससीओ के सदस्य देशों में भारत-चीन और भारत -पाकिस्तान ऐसे हैं, जिनमें टकराव चल रहा है। एससीओ इसका रास्ता नहीं खोज सका। सम्मेलन के मौके पर चीनी राष्ट्रपति और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री- दोनों के साथ प्रधानमंत्री मोदी नहीं मिले। यह तनाव जगजाहिर रहा। आतंकवाद पर बात तो हुई, लेकिन चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान साजिद मीर को आतंकी घोषित करने की कवायद रोक दी।

क्या कहते हैं जानकार

विश्व में भारत की भूमिका बीते कुछ साल में तेजी से महत्वपूर्ण हो चुकी है और एससीओ, जी-20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिलना संकेत देता है कि भारत भविष्य में किस तरह की भूमिका निभाने जा रहा है।

  • हर्षवर्धन शृंगला,पूर्व विदेश सचिव

पश्चिमी देशों का यह एक रवैया रहा है, वो चाहें जो बना लें। दूसरे लोग अगर कुछ बनाएं तो वह पश्चिम-विरोधी हो जाता है। यह उनकी पुरानी चिंता है जो अब खत्म हो जानी चाहिए। दुनिया बदल गई है। एससीओ कोई अमेरिका-विरोधी गुट नहीं है।

  • पिनाक रंजन चक्रवर्ती,पूर्व राजनयिक