BJP RSS Relations: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बीजेपी के लिए खराब होने के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से नाराजगी भरे बयान आए थे। संघ की नाराजगी की चर्चाओं के बीच बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का एक बयान काफी चर्चा में रहा था। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में नड्डा ने कहा था, ‘शुरू में हम थोड़ा कम थे तब हमें संघ की जरूरत पड़ती थी, आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम हैं तो बीजेपी अपने आप को चलाती है।’ नड्डा के बयान को लेकर बीजेपी और संघ के रिश्तों पर खूब सारी बातें हुई थी और कहा गया था कि संघ इस बयान से नाराज है।

अब संघ की ओर से इस मामले में बयान दिया गया है। संघ के मीडिया चेहरे और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में जेपी नड्डा के बयान को लेकर कहा कि फैमिली मैटर्स को फैमिली मैटर्स की तरह ही सुलझाया जाता है। जब आंबेकर से यह सवाल पूछा गया कि क्या संघ के कार्यकर्ताओं में इस बयान को लेकर कोई नाराजगी है तो उन्होंने फिर से यही कहा कि फैमिली मैटर्स को फैमिली मैटर्स की तरह ही सुलझाया जाता है ना कि सार्वजनिक मंचों पर।

सुनील आंबेकर चूंकि अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख जैसे बड़े पद पर हैं इसलिए उनकी राय का बड़ा महत्व है।

बहुमत से दूर रह गई बीजेपी

बताना होगा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिली। पार्टी ने अकेले 370 और एनडीए के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन बीजेपी अकेले बहुमत भी नहीं ला सकी। चुनाव नतीजों में बीजेपी को सिर्फ 240 सीटें ही मिली और एनडीए को 292।

नड्डा के बयान पर केजरीवाल ने घेरा था बीजेपी को

याद दिलाना होगा कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कुछ दिन पहले नड्डा के बयान को आधार बनाते हुए बीजेपी को घेरा था। केजरीवाल ने कहा था कि संघ बीजेपी की मां की तरह है लेकिन आज बीजेपी अपनी मां को आंखें दिखा रही है। केजरीवाल ने संघ प्रमुख से पूछा था कि क्या उन्हें जेपी नड्डा की टिप्पणी पर दुख नहीं हुआ, क्या संघ के कार्यकर्ताओं को इससे पीड़ा नहीं हुई?

बीजेपी और संघ के संबंधों को भी समझना जरूरी है। संघ को समझने वाले और संघ के कामकाज को देखने वाले लोग जानते हैं कि संघ का समर्थन हमेशा से ही बीजेपी के साथ रहा है। लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा चुनाव या फिर स्थानीय निकाय के चुनाव तक में संघ बीजेपी के उम्मीदवारों का समर्थन करता है।

सुनील आंबेकर के ताजा बयान के बाद सवाल यह उठता है कि क्या लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बीजेपी और संघ के रिश्तों में जो बर्फ जमी होने की बात कही जा रही थी क्या वह पिघल गई है? इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद संघ के नेताओं की ओर से कैसे बयान आए थे, यह भी समझना होगा।

विचारक रतन शारदा ने दिए थे तीखे बयान

सबसे पहले संघ के विचारक रतन शारदा ने संघ की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में लेख लिखकर कहा था कि नतीजों ने अति आत्मविश्वासी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आइना दिखा दिया है। रतन शारदा ने यह भी कहा था कि आरएसएस के कैडर को अहमियत नहीं दी गई। उन्होंने कहा था कि बीजेपी में पुराने कार्यकर्ताओं को अहमियत नहीं दी गई और पार्टी के खराब प्रदर्शन के पीछे बड़ी वजह दलबदलुओं को टिकट देना है।

रतन शारदा ने कहा था कि जेपी नड्डा को इस तरह का बयान लोकसभा चुनाव के दौरान नहीं देना चाहिए था। रतन शारदा संघ की राष्ट्रीय मीडिया टीम के सदस्य हैं इसलिए उनके बयानों की अहमियत जरूर है।

इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता। उन्होंने मणिपुर मुद्दे पर कहा था कि पूर्वोत्तर का यह राज्य एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से चर्चा होनी चाहिए। हालांकि भागवत ने सीधे तौर पर किसी का नाम नहीं लिया था।

केंद्र ने हटा दिया था प्रतिबंध

अब बात करते हैं कि ऐसा क्यों लगता है कि बीजेपी और संघ के रिश्तों में जमी बर्फ पिघल रही है। इस साल जुलाई के आखिरी दिनों में केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था। तब इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर में कहा गया था कि बीजेपी को इस बात का भरोसा दिया गया है कि संघ के नेता सार्वजनिक रूप से उसकी या उसके नेतृत्व की आलोचना नहीं करेंगे। बैन को हटाने के बाद कहा गया था कि बीजेपी और संघ के बीच नाराजगी अब धीरे-धीरे कम हो रही है और संघ ने भी केंद्र सरकार के इस कदम की सराहना की थी।

पहले भी बताया फैमिली मैटर्स

इस महीने की शुरुआत में भी संघ ने बीजेपी के साथ उसकी नाराजगी की चर्चाओं को फैमिली मैटर्स या परिवार का मामला ही बताया था और कहा था कि इसे बातचीत के जरिये सुलझा लिया जाएगा। तब भी सुनील आंबेकर ने कहा था कि यह महत्वपूर्ण है कि बीजेपी और आरएसएस अपनी मूल मान्यताओं और लक्ष्यों के मामले में एक राय हों।

केरल के पलक्कड़ में हुई तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक में जेपी नड्डा भी शामिल हुए थे और उन्होंने संघ के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी।

1925 में हुई थी संघ की स्थापना

संघ की स्थापना 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। हेडगेवार 1925 से 1930 तक और 1931 से 1940 तक सर संघचालक के पद पर रहे। संघ के प्रमुख को सरसंघचालक कहा जाता है। मौजूदा वक्त में मोहन भागवत इस पद को संभाल रहे हैं। संघ का मुख्यालय नागपुर में है। सरसंघचालक के नीचे सरकार्यवाह या महासचिव होते हैं। सरकार्यवाह के नीचे सह सरकार्यवाह यानी संयुक्त महासचिव काम करते हैं। संघ किस तरह काम करता है इस पर सरकार्यवाह नजर बनाए रखते हैं।

सह सरकार्यवाह के नीचे सेवा प्रमुख, भौतिक प्रमुख, प्रचारक प्रमुख, सह सेवा प्रमुख, सह बौद्धिक प्रमुख, सह प्रचार प्रमुख काम करते हैं। उनके नीचे संपर्क प्रमुख, शारीरिक प्रमुख, सह संपर्क प्रमुख, सह शारीरिक प्रमुख, प्रचार प्रमुख, व्यवस्था प्रमुख, सह प्रचार प्रमुख और सह व्यवस्था प्रमुख अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं।

वाजपेयी, आडवाणी, मोदी रहे हैं संघ के स्वयंसेवक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति में आने से पहले संघ के प्रचारक ही थे। उसी तरह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ के प्रचारक रहे थे। नरेंद्र मोदी इस बात को खुलकर स्वीकार कर चुके हैं कि वह संघ के स्वयंसेवक हैं। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा था कि अगर उनके भीतर कोई गुण है तो वह इसका श्रेय संघ को ही देते हैं।