Mohan Bhagwat News: पिछले कुछ दिनों से अपने बयानों के चलते चर्चा में रहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने संघ में लाठी चलाना सिखाने को लेकर बड़ा बयान दिया और बताया है कि लाठी सीखने से वीरता आती है। उन्होंने कहा कि यह किसी भी तरह के प्रदर्शन के लिए नहीं है।
इंदौर में ‘स्वर शतकम् मालवा’ कार्यक्रम के दौरान RSS चीफ मोहन भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय संगीत और पारंपरिक वादन तालमेल, सद्भाव और अनुशासन सिखाता है और मनुष्य को व्यर्थ के आकर्षणों से मुक्त करके सत्कर्मों की राह पर ले जाता है।
संघ में क्यों दी जाती है लाठी चलाने की ट्रेनिंग
संघ प्रमुख ने कहा कि संघ की शाखाओं में लाठी चलाना भी सिखाया जाता है, लेकिन इस शिक्षा के पीछे का मकसद अन्य लोगों के सामने इस कला का प्रदर्शन या झगड़ा करना नहीं है। उन्होंने कहा कि लाठी चलाने वाले मनुष्य में वीर वृत्ति (वीरता का भाव) पैदा होता है और वह डरता नहीं है।
मोहन भागवत ने कहा कि लाठी चलाने का प्रशिक्षण संकटों में अडिग रहना सिखाता है और संकल्प के पथ पर धैर्य और सामर्थ्य के साथ बिना रुके चलने की प्रेरणा देता है। संघ इस साल अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करने जा रहा है। संघ प्रमुख ने आम लोगों से अपील की कि वे इस संगठन के स्वयंसेवकों के साथ राष्ट्र के नव निर्माण के अभियान में शामिल हों।
मोहन भागवत की चेतावनी को RSS की पत्रिका किया इग्नोर?
भारतीय संगीत को लेकर क्या बोले RSS चीफ
इस कार्यक्रम में संघ के 870 स्वयंसेवकों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों का सामूहिक वादन किया। संघ प्रमुख ने कार्यक्रम में कहा कि भारतीय संगीत और पारंपरिक वादन एक साथ मिलकर चलना, सद्भाव और अनुशासन सिखाता है। भागवत ने कहा कि दुनिया का संगीत चित्त की वृत्तियों को उत्तेजित करके उल्लासित करता है, जबकि भारतीय संगीत चित्त की वृत्तियों को शांत बनाकर आनंद पैदा करता है।
भारतीय संगीत सुनकर मनुष्य में इधर-उधर के आकर्षणों से मुक्त होकर आनंद देने वाले सत्कर्मों की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों ने देश भक्ति से प्रेरित होकर अलग-अलग वाद्य यंत्रों से भारतीय शैलियों की धुनों और युद्ध में बजने वाले संगीत की रचना की और इसके पीछे उनके मन में भाव था कि दुनिया में जो कला सबके पास है, उसका देश में अभाव नहीं होना चाहिए।
भागवत ने कहा कि हमारा भारत पीछे रहने वाला या दरिद्र देश नहीं है। हम भी दुनिया के सारे देशों की मंडली की अग्र पंक्ति में बैठकर बता सकते हैं कि हमारे पास अलग-अलग कलाएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संघ के स्वयंसेवक इस संगठन की शाखाओं में अलग-अलग कलाएं लोगों को दिखाने के लिए नहीं सीखते। मोहन भागवत से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।