बांग्लादेश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने कहा कि वह म्यांमा को रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस लेने के लिए राजी करने के वास्ते और प्रभावी कदम उठाए। रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने अपने देश म्यांमा में उत्पीड़न से बचने के लिए काफी संख्या में बांग्लादेश में शरण ली है। भारत में भी रोहिंग्या रह रहे हैं। बांग्लादेश के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास के एक प्रवक्ता ने बताया भारतीय उच्चायुक्त प्रणय कुमार वर्मा ने बीते मंगलवार को बंगभवन में मुलाकात की। तब राष्ट्रपति ने यह मुद्दा उठाया। 73 वर्षीय शहाबुद्दीन ने देश के 22वें राष्ट्रपति के रूप में 24 अप्रैल को शपथ ली थी।
शहाबुद्दीन ने अब्दुल हामिद का स्थान लिया, जिनका कार्यकाल 23 अप्रैल को समाप्त हो गया था।इस मुलाकात को लेकर भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया कि वर्मा ने राष्ट्रपति शहाबुद्दीन से शिष्टाचार मुलाकात की और उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से हार्दिक बधाई दी और हाल के द्विपक्षीय घटनाक्रमों पर चर्चा की। शहाबुद्दीन ने बैठक में आतंकवाद समेत बढ़ते सुरक्षा खतरों का जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश ने मानवीय कारणों से रोहिंग्या समुदाय को आश्रय दिया था, लेकिन लंबे समय से उनके यहां रहने के कारण न केवल दक्षिण एशियाई देश, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए समस्याएं पैदा हो रही हैं। म्यांमा की सेना की कार्रवाई के कारण वर्ष 2017 में रखाइन प्रांत से करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान वहां से भाग कर बांग्लादेश के काक्स बाजार में शिविरों में रह रहे हैं। भारत ने म्यांमा के रखाइन प्रांत के विस्थापितों की स्थायी और शीघ्र वापसी का हमेशा आह्वान किया है और इस मुद्दे को हल करने के लिए बांग्लादेश और म्यांमा के साथ मिलकर काम किया है।
राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने कहा कि बांग्लादेश भारत के साथ अपने संबंधों को अत्यधिक महत्व देता है, जो भौगोलिक निकटता, साझा इतिहास और बलिदान के कारण अत्यंत निकट हैं। उन्होंने मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत और अनूठा करार दिया। शहाबुद्दीन ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भी भाग लिया था। उन्होंने मुक्ति संग्राम के दौरान 1971 में भारत में प्राप्त प्रशिक्षण को भी याद किया।