नरेंद्र मोदी की सरकार ने आर्थिक रूप से गरीब सर्वणों को 10 फीसद तक आरक्षण देने का फैसला किया है। इस बाबत लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक भी लाया गया है। इस विधेयक पर मंगलवार (8 जनवरी) को लोकसभा में जोरदार बहस हुई। इसमें सत्‍ता पक्ष के साथ ही विपक्षी दलों के सदस्‍यों ने भी हिस्‍सा लिया। एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी इस बहस में हिस्‍सा लिया।

उन्‍होंने विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि कुल 60 फीसद के आरक्षण के प्रावधान को निजी क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए, ताकि दलित, आदिवासी, अन्‍य पिछड़ी जाति और आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को निजी क्षेत्र में उचित मौका मिल सके। रामविलास पासवान ने न्‍यायिक सेवा में भी हर जाति और धर्म को बराबर स्‍थान देने की वकालत की।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने बहस के दौरान कहा कि कल तक आरक्षण का विरोध करने वालों को भी 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा है तो इसमें गलत क्‍या है? बकौल लोजपा प्रमुख, इससे किसी का हक नहीं मारा जा रहा है। हालांकि, उन्‍होंने जोर देकर कहा कि अब निजी क्षेत्र में आरक्षण देने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री ने केंद्र सरकार को सलाह भी दी कि गरीब सवर्णों के आरक्षण से जुड़े विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल देना चाहिए, ताकि न्‍यायपालिका इस मामले में हस्‍तक्षेप न करने पाए।पासवान ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इससे पहले एससी-एसटी कानून को लेकर दलित समाज की शंकाओं का समाधान किया, ओबीसी आयोग बनाया, पदोन्नति में आरक्षण लागू किया और अब सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

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पासवान ने दावा किया कि इन सारे कदमों के कारण मोदी सरकार फिर से सत्ता में आएगी। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में मीडिया में एक साक्षात्कार में कहा था कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय का इंतजार किया जाएगा और उसके बाद देखेंगे, प्रधानमंत्री के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए। बता दें कि मोदी सरकार ने ऐसे समय में आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को 10 फीसद तक आरक्षण देने का फैसला किया है, जब आने वाले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।