अगर आपको नींद ठीक से नहीं आती है तो ये आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) के लक्षण हो सकते हैं। इससे दिमाग के सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। भारत में 10 में एक व्यक्ति ऐसी समस्या से प्रभावित है और उम्र बढ़ने पर ये व्यक्ति के दिमाग की कार्य क्षमता पर असर डालता है। यह दावा एक शोध में किया गया है।
इस शोध का नेतृत्व अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में न्यूरोलाजी (तंत्रिका) विभाग के प्रमुख रह चुके और पदमश्री से सम्मानित डॉ कामेश्वर प्रसाद ने किया। भारत के कई स्वास्थ्य संस्थानों के अलावा नीदरलैंड्स के इरामस मेडिकल सेंटर के एपिडेमियोलाजी विभाग और अमेरिका के हार्वर्ड टीएच चेन स्कूल के पब्लिक हेल्थ के सोशल और बिहेवियरल साइंसेज के चिकित्सकों ने मिलकर इस विषय पर अध्ययन किया।
डॉ कामेश्वर प्रसाद बताते हैं कि भारत में ये पहली तरह का शोध है, जिसमें जीनोमिक्स, न्यूरोइमेजिंग और नींद से जुड़े कई पैमानों का अध्ययन किया गया। इसमें महिला और पुरुषों की संख्या लगभग बराबर थी। शोध का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि कई देशों की तरह भारत में लोगों की आयु सीमा के साथ -साथ बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। समय बीतने पर इनकी संख्या में बढ़ोतरी होती जाएगी।
डॉ कामेश्वर प्रसाद के अनुसार, उम्र बढ़ने पर मुख्य बड़ी बीमारियां सामने आती हैं। ये शोध मुख्यतौर पर उन समस्याओं पर केंद्रित था। इस शोध में लोगों से नींद के बारे में कई सवाल पूछे गए, जिसमें नींद ठीक से न आना, आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) आदि के बारे में पूछा गया और ये जाना गया कि उनके दिमाग की कार्य क्षमता जैसे चीजें याद रखना, योजना, डिजाइन बनाने आदि दोनों बातों में कितना संबंध है? डॉ कामेश्वर प्रसाद कहते हैं, शोध में पाया गया कि जिन लोगों को खराब नींद आती है या ओएसए है, उनके दिमाग की कार्य क्षमता उन लोगों के मुकाबले उतनी अच्छी नहीं है, जिन्हें नींद को लेकर कोई परेशानी पेश नहीं आती है।
नेशनल लाइब्ररेरी आफ मेडिसिन में छपी जानकारी के अनुसार, ओएसए एक डिसआर्डर होता है, जिसमें एक व्यक्ति की सांस नींद के दौरान लगातार रुकती रहती है। डाक्टर जेसी सूरी इसे विस्तार से समझाते हुए बताते हैं कि दिन में एक व्यक्ति आराम से सांस लेता और छोड़ता है और इसमें कोई रुकावट नहीं आती, लेकिन रात को सोते वक्त हमारी मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं। डाक्टर जेसी सूरी बताते हैं कि नींद के दौरान हमारी जीभ गले की ओर पीछे की तरफ गिर जाती है और इससे रास्ता बंद हो जाता है और सांस रुक जाती है।
रात में जब किसी व्यक्ति की सांस रुक जाती है तो वो बार-बार उठता है। पूरी रात ये सिलसिला चलता रहता है। इसे ‘आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया’ कहा जाता है। ऐसे में जब आप सांस नहीं ले रहे होते हैं तो आक्सीजन का स्तर गिर जाता है और कार्बान डाइआक्साइड बढ़ जाती है। सांस का रास्ता तभी खुलता है, जब नींद टूटती है। ऐसे में जिन लोगों को ‘स्लीप एपनिया’ की बीमारी होती है, उन व्यक्तियों की एक घंटे में 15, 25 या 50 बार नींद टूटती है क्योंकि उन्हें सांस का रास्ता खोलने के लिए उठना पड़ता है। डाक्टरों के मुताबिक, नींद पूरी न होने पर शरीर पर इसका काफी असर पड़ता है। इसके कारण लोगों में एकाग्रता की कमी,याददाश्त पर असर समेत अन्य बीमारी पकड़ लेती है।
भारत में 10 में एक व्यक्ति आब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) से प्रभावित है और उम्र बढ़ने पर यह बीमारी व्यक्ति के दिमाग की कार्य क्षमता पर असर डालती है। यह दावा एक शोध में किया गया है। इस शोध का नेतृत्व अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में न्यूरोलाजी (तंत्रिका) विभाग के प्रमुख रह चुके और पदमश्री से सम्मानित डॉ कामेश्वर प्रसाद ने किया है।