रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा पांच दिसंबर को समाप्त हो गई। इसके साथ ही अब नई दिल्ली कूटनीतिक संतुलन बनाते हुए अगले कदमों की तैयारी कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस को पता चला है कि आने वाले महीनों में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की की संभावित भारत यात्रा की योजना बनाने की तैयारी चल रही है। यह यात्रा जनवरी 2026 की शुरुआत में हो सकती है।
जेलेंस्की की यह यात्रा भारत के उस संतुलित रुख को और मजबूत करेगी, जिसमें वह रूस और यूक्रेन दोनों से बातचीत बनाए रखता है। जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस जाकर पुतिन से मुलाकात की थी। इसके एक महीने बाद, अगस्त में उन्होंने यूक्रेन का दौरा किया।
सूत्रों ने बताया कि भारतीय और यूक्रेनी अधिकारियों के बीच कई सप्ताह से चर्चा चल रही है और पुतिन के भारत पहुंचने से पहले ही नई दिल्ली , ज़ेलेंस्की के कार्यालय के संपर्क में थी।
जेलेंस्की की प्रस्तावित यात्रा कब और कैसे होगी, यह कई बातों पर निर्भर करेगा। इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शांति योजना कैसी होती है और युद्ध के मैदान में क्या बदलता है ये दोनों चीज़ें शामिल हैं। इसके अलावा, यूक्रेन की घरेलू राजनीति भी असर डाल सकती है, क्योंकि इस समय ज़ेलेंस्की की सरकार एक बड़े भ्रष्टाचार मामले में फंसी हुई है और उस पर काफी दबाव है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति अब तक भारत सिर्फ तीन बार आए हैं—1992, 2002 और 2012 में।
पुतिन की यात्रा पर यूरोप की गहरी नजर थी। कई यूरोपीय दूतों ने भारत से आग्रह किया था कि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके मास्को को युद्ध समाप्त करने के लिए प्रेरित करे। हालांकि, भारत ने लगातार यह कहा है कि बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ने का एकमात्र व्यावहारिक रास्ता है, और मोदी ने इसे इस रूप में प्रस्तुत किया है: “भारत तटस्थ नहीं है, भारत शांति के पक्ष में है।”
फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से भारत पुतिन और जेलेंस्की दोनों के संपर्क में रहा है। मोदी ने जेलेंस्की से कम से कम आठ बार फोन पर बात की है और दोनों नेताओं के बीच कम से कम चार मौकों पर मुलाकात हुई है।
उनकी सबसे ताजा बातचीत 30 अगस्त को हुई थी, जब मोदी शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के लिए चीन के तियानजिन पहुंचे थे और वहां पुतिन से मुलाकात करने वाले थे। सूत्रों ने बताया कि तब से भारत, ट्रंप के नवीनतम प्रस्ताव सहित, शांति पहलों को लेकर कीव और मॉस्को दोनों के संपर्क में है।
इस युद्ध का भारत पर भी सीधा असर पड़ने लगा है। रूसी तेल खरीदने पर ट्रंप द्वारा लगाए गए 25 प्रतिशत दंडात्मक शुल्कों के कारण, भारत को सितंबर से रूसी कच्चे तेल के आयात में कटौती करनी पड़ी है, क्योंकि द्वितीयक प्रतिबंध और शुल्क दबाव भी शुरू हो गए हैं।
पुतिन को दिए गए मोदी के ताजा बयान अगस्त 2024 में यूक्रेन यात्रा के दौरान इस्तेमाल की गई उनकी भाषा की याद दिलाते हैं, जब उन्होंने ज़ेलेंस्की से कहा था: “हम युद्ध से दूर रहे हैं, लेकिन हम तटस्थ नहीं हैं, हम शांति के पक्षधर हैं। हम बुद्ध और (महात्मा) गांधी की धरती से शांति का संदेश लेकर आए हैं।”
पुतिन ने अपनी ओर से उनकी चर्चाओं के बारे में बहुत कम जानकारी दी, तथा केवल इतना कहा कि उन्होंने “यूक्रेन की स्थिति पर विस्तार से” तथा “इस संकट के संभावित शांतिपूर्ण समाधान” के लिए अमेरिका द्वारा शुरू की गई वार्ता पर बात की।
अधिकारियों ने इस वर्ष 30 अगस्त को मोदी-ज़ेलेंस्की की बातचीत के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी बयान की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया था कि मोदी ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत की दृढ़ और सुसंगत स्थिति और सभी संभव सहायता प्रदान करने की अपनी तत्परता की पुष्टि की थी।
मोदी ने 5 दिसंबर को पुतिन से मुलाकात के बाद उस प्रस्ताव को दोहराया और कहा: “भारत ने हमेशा यूक्रेन के संबंध में शांति की वकालत की है। हम इस मुद्दे के शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों का स्वागत करते हैं। भारत हमेशा योगदान देने के लिए तैयार रहा है और आगे भी ऐसा करता रहेगा।” यह बात ध्यान देने योग्य है कि दोनों नेताओं ने “युद्ध” या “संघर्ष” शब्द का उल्लेख नहीं किया, तथा यूक्रेन की स्थिति को “संकट” कहा।
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यह उस बात से अलग था जो मोदी ने सितंबर 2022 में, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के कुछ महीनों बाद, पुतिन से कही थी कि “यह युद्ध का युग नहीं है”। और जुलाई 2024 में जब वे मास्को में मिले, तो मोदी ने पुतिन से कहा था कि “समाधान युद्ध के मैदान में नहीं खोजे जा सकते।”
दिलचस्प है कि उस संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन-रूस युद्ध का कोई जिक्र नहीं था। सूत्रों के अनुसार, भारत के अधिकारी पहले अंद्री यरमक,जो ज़ेलेंस्की के विश्वासपात्र और चीफ ऑफ स्टाफ थे, उनसे संपर्क में थे। लेकिन यरमक इस हफ़्ते भ्रष्टाचार घोटाले के कारण इस्तीफ़ा दे चुके हैं। अब, नई दिल्ली ने ज़ेलेंस्की के कार्यालय में नए अधिकारियों से मिलकर बातचीत शुरू की है, ताकि एक ऐसा समय तय किया जा सके जिससे दोनों ओर के लिए सुविधाजनक हो।
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