भारतीय सेना की अग्निपथ भर्ती योजना पर अब नेपाल में सवाल उठने लगे हैं। नेपाल की शेर बहादुर देउबा सरकार नेपाल में भर्ती रोक दी। अग्निपथ योजना को जब 14 जून को शुरू किया गया था, तब भारतीय सेना ने भारतीय दूतावास के जरिए नेपाल के विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा था और भर्ती की अनुमति मांगी थी। भारतीय सेना ने इस भर्ती के दौरान स्थानीय प्रशासन का सुरक्षा सहयोग भी मांगा था।

नेपाल सरकार ने जब भारतीय पक्ष को कोई जवाब नहीं दिया तो भारतीय सेना ने भर्ती की तिथि को सार्वजनिक करना बंद कर दिया। 25 अगस्त को नेपाल के बुटवल और एक सितंबर को धरान में भर्ती रैली की तैयारियां थीं, लेकिन नेपाल सरकार ने हरी झंडी नहीं दी। नेपाल सरकार के अधिकारियों का तर्क है कि इस पूरे मामले पर अभी भी विचार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार ने इस अग्निपथ योजना को शुरू करने से पहले नेपाल सरकार से न तो राय ली थी और न ही सूचित किया था।

गोरखा रेजिमेंट के प्रावधान

भारत सरकार के द्वारा तय किए गए नियमों के मुताबिक, अग्निपथ योजना के सभी प्रावधान गोरखा रेजिमेंट पर भी लागू होंगे। भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में केवल नेपाली नागरिकों और नेपाली बोलने वाले युवकों को भर्ती किया जाता है। नेपाल में अग्निवीर योजना का विरोध हो रहा है। चार साल के लिए भर्ती और फिर 25 फीसद जवानों का नौकरी के लिए चयन योजना पर आपत्ति जताई जा रही है।

नेपाल के लोगों का कहना है कि अग्निपथ योजना ब्रिटेन, भारत और नेपाल के बीच साल 1947 में हुई संधि का उल्लंघन है। इस संधि के तहत नेपाली युवकों की भारतीय सेना में भर्ती की जाती है और उन्हें भारतीय सैनिकों की तरह से समान वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। नेपाल की माओवादी पार्टियों ने मांग की है कि इस पूरे मामले को भारत सरकार के साथ उठाया जाए और हल नहीं होने पर नेपाली युवकों की भर्ती को बंद कर दिया जाए।

नेपाली सैनिक भारत की स्वतंत्रता से पहले से ही भारतीय सेना में तैनात हैं। नेपाली नागरिकों को हर साल अरबों रुपए पेंशन के रूप में भारतीय सेना से मिलता है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में ही 44 अरब 73 करोड़ रुपए पेंशन भारत ने दिया था। वर्तमान समय में 34 हजार नेपाली युवा भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में तैनात हैं।

नेपाल की आपत्ति क्या

नेपाल में 25 अगस्त से अग्निवीरों की भर्ती के लिए रैली होनी थी, जो अगले एक महीने तक अलग-अलग शहरों में चलनी थी। नेपाल सरकार ने अग्निपथ स्कीम के अंतर्गत भर्ती रैली कराने से मना कर दिया। नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने नेपाल में भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव को बताया कि अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली गोरखा भर्ती 1947 समझौते के अनुरूप नहीं है।

खड़का के मुताबिक, इस पर सरकार सारी पर्टियों से और बाकी लोगों से बात करके फैसला लेगी। भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक खड़का ने नवीन श्रीवास्तव को बताया कि 1947 का समझौता अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली भर्ती को मान्यता नहीं देता। लिहाजा, नेपाल सरकार को इस नई स्कीम के प्रभाव का आकलन करना होगा। छह हफ्ते पहले भारत सरकार ने नेपाल सरकार से अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाली भर्ती के लिए अनुमति और सहयोग मांगा था। नेपाल सरकार ने चार साल की नौकरी के बाद गोरखाओं को सेवानिवृत्त करने की बात पर चिंता जताई थी और कहा था कि समाज पर इसका गलत असर पड़ेगा।

कैसे होती है गोरखाओं की भर्ती

गोरखाओं की भर्ती भारतीय सेना की कुल सात गोरखा रेजिमेंट्स में होती है। ये सात रेजिमेंट मिलकर 43 बटालियन बनाती हैं। गोरखा भर्ती के लिए दो गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो बनाए गए हैं। ये दो डिपो, दार्जलिंग (वेस्ट बंगाल) और गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं। इन 43 बटालियनों में जो गोरखा भर्ती किए जाते हैं, वे भारत और नेपाल दोनों देशों से होते हैं।

भारत से जो गोरखा भर्ती किये जाते हैं वे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दार्जिलिंग, असम और मेघालय जैसे राज्यों के होते हैं। इनकी भर्ती इन राज्यों में बने आर्मी रिक्रूटमेंट आफिस से की जाती है। नेपाली गोरखाओं की भर्ती के लिए भारत, नेपाल और इंग्लैंड मिलकर भर्ती रैली के लिए तारीख तय करते हैं। फिर उस तारीख पर नेपाल में तीनों देश लिखित परीक्षा और शारीरिक परीक्षण कराते हैं। पास करने वाले उम्मीदवार को तीनों देशों की सेना में भर्ती किया जाता है।

त्रिपक्षीय संधि की समीक्षा की मांग

भारत और ब्रिटेन की नेपाल से जो त्रिपक्षीय संधि है, वैसी संधि चीन और पाकिस्तान के साथ नहीं है। 1947 में हुई इसी संधि के कारण नेपाली गोरखा भारत और ब्रिटेन की सेना में भर्ती होते हैं। दूसरी ओर, सिंगापुर और ब्रुनेई के साथ भी नेपाल की कोई संधि नहीं है और वहां की सेना में भी नेपाली गोरखा जा रहे हैं। भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की नियुक्ति नेपाली नागरिक के तौर पर होती है। आजादी के बाद पाकिस्तान ने गोरखाओं को अपनी सेना में शामिल होने की पेशकश की थी।

1962 के युद्ध के बाद चीन ने भी पेशकश की, लेकिन नेपाल ने तब स्पष्ट मना कर दिया था। अब अग्निवीर स्कीम आने के बाद नेपाल में इन देशों के साथ जुड़ने की वकालत की जा रही है। भारत पर योजना की समीक्षा के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

क्या कहते हैं जानकार

नेपाली गोरखाओं के लिए अग्निपथ विषय पर दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 25 जुलाई को एक सेमिनार हुआ था। इसमें नेपाल से आए कई सैन्य अधिकारी शामिल हुए। सबने एक सुर में कहा कि अग्निपथ से भारतीय सेना में अभियानगत क्षमता कम होगी। भारत और नेपाल संबंधों में नेपाली गोरखा राजनयिक सेतु का काम करते हैं और यह सेतु कमजोर होगा।

  • मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक कुमार मेहता, गोरखा रेजिमेंट के पूर्व अधिकारी

गोरखा भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। नेपाली गोरखाओं को इस्तेमाल करने के लिए चीन और पाकिस्तान तैयार बैठे हैं। गोरखाओं के समर्पण को तवज्जो नहीं दी गई तो भारत के लिए ही मुश्किल स्थिति खड़ी होगी।

  • मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) गोपाल गुरुंग, गोरखा रेजिमेंट के पूर्व अधिकारी