केंद्र की मोदी सरकार अपनी नीतियों को लेकर फिर से फजीहत में है। एक मीडिया रिपोर्ट में RTI के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए चुनावी बॉन्ड सिस्टम को लागू किया। जबकि, केंद्रीय बैंक ने चुनावी बॉन्ड के जरिए काले धन को इस मद में खपाने की आशंका जाहिर की थी। सोमवार को “हफिंगटन पोस्ट” (Huffpost India) ने अपनी एक रिपोर्ट में दस्तावेजों के हवाले से खुलासा किया कि रिजर्व बैंक की मनाही के बावजूद मोदी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलोक्टोरल बॉन्ड को हरी झंडी दी।

‘हफिंगटन पोस्ट’ के मुताबिक 1 फरवरी, 2017 को अपने एक भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ‘इलोक्टोरल बॉन्ड’ को लागू करने की बात सामने लाई। इस व्यवस्था के तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम और गोपनीय चंदा मिलने की स्वीकृति दी जानी थी। लेकिन इसमें सबसे बड़ी अड़चन आरबीआई के द्वारा दी जानी वाली स्वीकृति थी।

इसके पहले 28 जनवरी, 2017 को एक अधिकारी ने वित्त मंत्रालय में अपने सीनियर अधिकारियों को एक नोट लिखा, जिसमें गुमनाम डोनेशन को वैध बनाने के लिए आरबीआई अधिनियम में संशोधन को जरूरी बताया। इसके बाद उसने संशोधन से संबंधित एक ड्राफ्ट तैयार किया और अपने वरिष्ठ अधिकारियों के अनुमोदन के लिए भेज दिया। इसके बाद वित्त मंत्रालय की तरफ से आरबीआई को एक पांच लाइन की ई-मेल भेजी गई और प्रस्तावित संशोधन पर राय मांगी गई।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने जवाब में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड और RBI अधिनयम में संशोधन से एक खराब चलन की शुरुआत हो जाएगी। इससे मनी लॉन्ड्रिंग और भारतीय बैंक नोट के प्रति अविश्वास बढ़ जाएगा। यह कदम केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूल सिद्धातों को नष्ट कर देगा। इस दौरान आरबीआई ने सरकार को चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि इलोक्टोरल बॉन्ड प्रभावी रूप से एक “बियरर बॉन्ड” होगा। इसमें अपारदर्शी और गोपनीय धन के मालिक के श्रोत का अता-पता बिल्कुल नहीं होगा। रिजर्व बैंक ने आशंका जताई कि इलोक्टोरल बॉन्ड से बैंक द्वारा जारी नोट करेंसी की कीमत कम हो सकती है।

लेकिन, आरबीआई के आगाह करने के बावजूद मोदी सरकार मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लागू करने का पहले ही मन बना रखा था। उस दौरान राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने आरबीआई की चिंताओं को संक्षेप में खारिज कर दिया। अधिया ने तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव और वित्त मंत्री को एक पत्र लिखा और कहा, “यह (आरबीआई द्वारा) सलाह उस समय काफी देर से आई है जब वित्त विधेयक पहले ही छप चुका है। इसलिए, हम अपने प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ सकते हैं।” इसके बाद फाइल बिजली की रफ्तार से आगे बढ़ी और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस पर तुरंत साइन कर दिया।

हफिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट पब्लिश होते ही भारतीय राजनीति में कोहराम मच गया। सोमवार को कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार को आड़े हाथों लेने में कोई देरी नहीं की। पार्टी की पूरी लीडरशिप ने एक सुर में इस रिपोर्ट के हवाले से बीजेपी पर हमला बोल दिया। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर आरोप लगाया, “आरबीआई को दरकिनार कर और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड को मंजूरी दी गई ताकि भाजपा के पास कालाधन पहुंच सके।”

प्रियंका ने कहा, “ऐसा लगता है कि भाजपा को कालाधान खत्म करने के नाम पर चुना गया था, लेकिन यह उसी से अपना खजाना भरने में लग गई। यह भारत की जनता के साथ शर्मनाक विश्वासघात है।”