Ratan Tata: टाट ग्रुप के सर्वेसर्वा और देश के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर देश में उनके प्रशंसक स्तब्ध हैं, क्योंकि ये वही रतन टाटा हैं जिन्होंने देश के आम आदमी के लिए 1 लाख रुपये में कार बनाने का सपना देखा था। हालांकि उन्हें इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
रतन टाटा को अपना टाटा मोटर्स का प्लांट पश्चिम बंगाल से गुजरात शिफ्ट करना पड़ा था, क्योंकि जो जमीन उन्हें बंगाल सरकार द्वारा प्रोजेक्ट के लिए दी गई थी, उसको लेकर काफी सियासी विवाद हुआ था।
दरअसल, रतन टाटा ने 18 मई 2006 में ऐलान किया था कि वे पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के संगरूर में एक लाख रुपये में मिलने वाली नैनो कार का प्लांट लगाएंगे। उस वक्त राज्य में लेफ्ट की सरकार थी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने इस प्रोजेक्ट को राज्य के ओद्योगिक विकास में सबसे अहम बताया था, लेकिन इस प्रोजेक्ट को लेकर उस वक्त विपक्ष में बैठी टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया था।
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रतन टाटा के नैनो प्रोजेक्ट को लेकर सिंगूर में एक हजार करोड़ एकड़ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन विपक्ष के नेता के रूप में ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया को लेकर विरोध दर्ज किया था और कोलकाता को आमरण अनशन पर बैठ गईं थीं।
इतना ही नहीं, ममता बनर्जी ने 24 अगस्त 2008 को प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित 1000 एकड़ जमीन में से 400 एकड़ की वापसी की मांग की थी और दुर्गापुर एक्सप्रेस हाईवे तक जाम कर दिया था।
इसके चलते तीन अक्टूबर 2008 को राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक दो दिन पहले रतन टाटा ने प्रेस कॉन्फ्रेसं की और ऐलान किया कि वे अपनी लखटकिया कार वाले प्रोजेक्ट को सिंगूर से कही और ले जाएंगे। इस विफलता के लिए उन्होंने पूरी तरह से ममता बनर्जी और टीएमसी के आंदोलन का जिम्मेदार ठहराया था।
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नरेंद्र मोदी ने की थी मदद, गुजरात शिफ्ट हुआ था टाटा का प्लांट
एक तरफ जहां रतन टाटा को पश्चिम बंगाल में इस प्रोजेक्ट के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था, तो दूसरी ओर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखाई थी और गुजरात सरकार ने रतन टाटा को जमीन भी दी थी। इसके चलते रतन टाटा का नैनो प्रोजेक्ट के तहत टाटा का प्लांट पश्चिम बंगाल से गुजरात के साणंद शिफ्ट किया गया था।
बता दें कि बंगाल में यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक भी गया था और 31 अगस्त 2016 को कोर्ट द्वारा आदेश के चलते वह जमीन किसानों को लौटा दी गई। टाटा ग्रुप ने नुकसान को लेकर पश्चिम बंगाल के उद्योग, वाणिज्य, और उद्यम विभाग की प्रमुख नोडल एजेंसी WBIDC में मुआवजे के जरिए भरपाई का दावा पेश किया था।
इस मामले में टाटा ग्रुप को जीत मिली थी। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के औद्योगिक विकास निगम को टाटा ग्रुप को 765.78 करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर देने का आदेश दिया था।