ओड़िशा के एक डिस्ट्रिक्ट जज ने रेप केस के आरोपी को सात साल की सजा दे डाली। जबकि कानूनन रेप केस में कम से कम सजा दस साल की तय की गई है। हाईकोर्ट को जब मामले का पता चला तो उसका पारा चढ़ गया। सिंगल बेंच के जस्टिस ने डिस्ट्रिक्ट जज से कम सदा देने की वजह पूछी है।
जस्टिस संगम कुमार साहू एक क्रिमिनल अपील की सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया कि संबंधित जज को ईमेल के जरिये हमारी बात पहुंचा दी जाए। वो 19 जुलाई को या उससे पहले सील बंद लिफाफे में कम सजा सुनाने की वजह हाईकोर्ट को बताएंगे। उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि जज को स्पष्टीकरण देने दो कि उसने रेप के मामले में सात साल की सजा किस वजह से सुनाई।
अप्रैल 2018 में लागू हो गया था क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट
भारत में 2018 से पहले रेप केसेज में न्यूनतम सजा सात साल की थी। लेकिन 21 अप्रैल 2018 से लागू हुए नए क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट में रेप के मामलों में न्यूनतम सजा को दस साल कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में साफ निर्देश दिया है कि किसी भी मामले में जो सजा दी जाए वो न्यूनतम सजा से कम न हो। टॉप कोर्ट का यहां तक कहना था कि अदालतों को इस सिस्टम के तहत ही फैसले करने चाहिए।
2020 में अंजाम दी गई थी रेप की वारदात
जस्टिस साहू ने कहा कि जिस मामले में रेप के आरोपी को सात साल की सजा सुनाई गई वो 15 और 16 मार्च 2020 का वाकया था। जाहिर है कि क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट उससे पहले ही लागू हो चुका था। ऐसे में जज को क्या सूझा कि उन्होंने आरोपी को सात साल की सजा दे डाली। जबकि 2018 का एक्ट कहता है कि रेप जैसे मामलों में कम से कम 10 साल की सजा दी जानी चाहिए। इसे उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है।