2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में से किसी में भी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नरेंद्र मोदी का प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं था। बावजूद इसके दोनों ही चुनावों में उन्हें भारी जीत हासिल हुई। जब पीएम मोदी ने बुधवार को मंदिर का भूमि पूजन किया तो समारोह में उन्हें प्रमुख वास्तुकार के रूप में चिह्नित किया गया, जिन्होंने भाजपा की मूल वैचारिक परियोजना को साकार किया।
संघ परिवार के कई लोगों का मानना है कि साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की हार बीजेपी की वैचारिक समझौते की वजह से हुई जो उन्होंने गठबंधन धर्म के नाम पर किए थे। इसके ठीक उलट नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 और राम मंदिर दोनों मुद्दों पर यह रेखांकित करने की कोशिश की है कि चुनावी शक्ति से क्या हासिल हो सकता है। उन्होंने यह संदेश संघ परिवार को भी दिया है, जो आज तक कोई भी बीजेपी नेता नहीं कर सका था।
पीएम नरेंद्र मोदी ने यह सबकुछ अपनी शर्तों पर किया है। हालांकि, मोदी पर भी राम मंदिर निर्माण को लेकर संघ के एक धड़े का दबाव था। संघ परिवार का एक धड़ा मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का दबाव बना रहा था जिसका मोदी ने विरोध किया था। पीएम मोदी ने तब अदालती फैसला आने तक धैर्य रखने की अपील की थी। पिछले साल नवंबर में जब सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की खंडपीठ ने 5-0 से मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तब इसे बड़ा तूफान समझा जाने लगा, जिसका इंतजार लंबे समय से हो रहा था।
आज जब देश की लगभग आधी आबादी जो बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पैदा हुई है, उनके लिए राम मंदिर कितना प्रभावी होगा, यह एक बहस के लिए खुला मुद्दा है। 1980 और 90 के दशक में हिन्दुत्व एक बड़ा मुद्दा होता था। अब उस पर एक नई परत बिछाई जा चुकी है। इसका ज्वलंत उदाहरण नया नागरिकता कानून है।
मोदी ने राम मंदिर को सांस्कृतिक मुक्ति का एक प्रतीक बताया है और संभवत: पूरा देश और पूरी दुनिया को यही बताने की कोशिश की है। उन्होंने हिन्दू बहुमत वाले देश में मंदिर के वादे को मूर्त रूप में ढालने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने अपने संबोधन में यह समझाने की कोशिश भी की कि राम सबके हैं। वह हमारे मन मस्तिष्क और रोम-रोम में हैं। उन्होंने कहा, “राम भारत के विश्वास में हैं, राम भारत के आदर्शों में हैं। राम भारत के देवत्व और दर्शन में हैं।”