भाजपा ने रविवार को राज्य सभा के लिए 12 उम्मीदवारों के नामों का एलान किया। इसके तहत राजस्थान की चार सीटों के लिए भी प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी। इन नामों में केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर जैसे दिग्गजों के साथ हर्षवर्द्धन सिंह व राम कुमार वर्मा जैसे अनजान चेहरे शामिल हैं। सबसे चौंकाऊ नाम रहा राम कुमार वर्मा का। वर्मा पिछले साल ही रिजर्व बैंक के मैनेजर पद से रिटायर हुए थे। वे अंबेडकर मेमोरियल ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं। वह पहली बार राजनीति में आए हैं। वे भाजपा के सदस्य भी नहीं थे। उन्होंने बताया कि वे पीएम और सीएम के काम से प्रभावित तो थे लेकिन उन्हें टिकट की उम्मीद नहीं थी। बताया जा रहा है कि दलितों में जनाधार बनाए रखने के लिए वर्मा का नाम चुना गया।
माथुर के लिए वसुंधरा की अनदेखी: ओम माथुर की उम्मीदवारी के खिलाफ बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एतराज भी जताया था लेकिन पार्टी हाईकमान नहीं माना। बताया जा रहा है कि माथुर की जगह किसी और को टिकट देने की मांग को लेकर वसुंधरा राजे दो दिन से दिल्ली में थी। इसके तहत उन्होंने चार में से तीन सीटें केंद्रीय मंत्रियों को देने की पेशकश भी की थी। गौरतलब है कि ओम माथुर और वसुंधरा राजे विरोधी खेमों में हैं। पिछले साल ललित मोदी के विवाद के समय ओम माथुर के समर्थकों ने उनके सीएम बनने की मांग भी की थी। ओम माथुर राजस्थान के ही रहने वाले हैं। 2008 में भी वे राजस्थान से ही राज्यसभा गए थे। इसके बाद 2014 में उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया गया था। वे मोदी के करीबी माने जाते हैं। वर्तमान में वे यूपी चुनावों के इंचार्ज भी हैं।
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अन्य उम्मीदवारों में हर्षवर्द्धन सिंह राजपूत समाज से आते हैं और डुंगरपुर राजघराने से हैं। उनके दादा लक्ष्मण सिंह राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष थे। वहीं भारतीय क्रिकेट बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डुंगरपुर उनके चाचा थे। सिंह ने 2013 विधानसभा चुनावों के समय वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के समय पार्टी के लिए काम किया था। डुंगरपुर और बांसवाड़ा आदिवासी बहुल जिले हैं। यहां की लोकसभा और विधानसभा सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। भाजपा यहां से सामान्य वर्ग के व्यक्ति को राजनीति में लाना चाहती थी। साथ ही जातिगत समीकरण बराबर रखने के लिए टिकट राजपूत को दिया जाना तय था। दोनों मामलों में हर्षवर्द्धन फिट बैठे।
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