राज्‍यसभा चुनावों से पहले भाजपा को उत्‍तर प्रदेश में विधान परिषद् के चुनावों ने जहां झटका दिया लेकिन उसके लिए आस भी जगा दी। शुक्रवार को विधान परिषद् में भाजपा का दूसरा उम्‍मीदवार विधान परिषद् नहीं पहुंच पाया जबकि उसे कुछ पहली वरीयता के वोट भी मिल गए थे। इन चुनावों के दौरान बड़े स्‍तर पर क्रॉस वोटिंग हुई। जीतने वालों में सपा के आठ, बसपा के तीन और कांग्रेस- भाजपा का एक-एक नेता रहा।

विधान परिषद् की 13 सीटों के लिए 14 उम्‍मीदवार मैदान में थे। वोट देने के लिए 404 विधायकों में से दो ने मत नहीं डाला जबकि तीन वोट खारिज हो गए। इसके चलते एक उम्‍मीदवार को जीतने के लिए 28.51 मतों की जरूरत थी। पहली वरीयता के मतों के आधार पर केवल 7 उम्‍मीदवार जीत सकते थे। इस पर बसपा और सपा के तीन-तीन और भाजपा का एक उम्‍मीदवार जीत गया। साथ ही भाजपा के दूसरे प्रत्‍याशी दया शंकर सिंह हारने के बावजूद 10 से ज्‍यादा पहली वरीयता के वोट मिले। ये वोट उन्‍हें दूसरी पार्टियों से मिले। बसपा के तीन उम्‍मीदवारों को भी दूसरी पार्टियों से सात पहली वरीयता के वोट मिले।

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इन नतीजों ने सपा और कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। निर्दलीयों और छोटी पार्टियों से साथ मिलने के बाद भी कांग्रेस और सपा पहली वरीयता के पर्याप्‍त वोट नहीं जुटा सके। नतीजों के बाद भाजपा के दया शंकर सिंह ने कहा, ”मेरी पार्टी ने अपने अतिरिक्‍त 11 वोट मुझे दिए थे। मुझे पहली वरीयता के 20 वोट मिले इसका मतलब है कि दूसरी पार्टियों के विधायकों ने मुझमें विश्‍वास जताया।” चुनाव से पहले कौमी एकता दल, राष्‍ट्रीय लोकदल और पीस पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन देने का एलान किया था। हालांकि 29 विधायक होने पर भी उसे पहली वरीयता के केवल 26 वोट ही मिले।

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सात राज्यों से राज्यसभा की सीटों के लिए शनिवार को होने वाले चुनाव में कुछ सीटों पर मुकाबला रोचक हो सकता है।