तेलगुदेशम पार्टी को भाजपा ने ऊहापोह में फंसा रखा है। चंद्रबाबू नायडू पहले राजग में थे। 2018 में यूपीए में शामिल हो गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका सूपड़ा साफ हो गया। फिर राजग की ओर रुख करने को मजबूर हुए। भाजपा को भी तेलंगाना में उनकी जरूरत महसूस हुई थी। लेकिन आंध्र के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने टंगड़ी मार दी।

भाजपा जगनमोहन को भी नाराज नहीं करना चाहती थी। वजह थी राज्यसभा में सरकार को जारी उनका बिना शर्त समर्थन। बहरहाल राजग के चक्कर में नायडू ने ‘इंडिया’ से भी खुद को अलग रखा। अब नायडू को आंध्र की सरकार ने कौशल विकास घोटाले में जेल भेज दिया तो उनके तेवर ढीले पड़ गए। हालांकि इसमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

इसी बीच भाजपा को तेलंगाना में अपनी हालत कमजोर दिखी तो यहां सहारे की जरूरत महसूस हो गई। विधानसभा चुनाव में बीआरएस उसके साथ तालमेल को तैयार नहीं। ऊपर से चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में सामने आ गया कि मुकाबला बीआरएस और कांग्रेस के बीच है। भाजपा तेलंगाना में है ही नहीं। डूबते को तिनके का सहारा कहावत पर गौर कर भाजपा ने तेलंगाना में तेलगुदेशम से मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना बेहतर समझा।

तभी तो जेल में बंद नायडू के बेटे द्वारा लोकेश को मुलाकात के लिए अचानक दिल्ली बुलाया अमित शाह ने। प्रचार तो यही किया कि इस मुलाकात का मकसद अमित शाह द्वारा यह स्पष्ट करना था कि नायडू की गिरफ्तारी से केंद्र सरकार का कोई लेनादेना नहीं। लोकेश ने भी शाह से सूबे की जगनमोहन सरकार की ज्यादतियों की शिकायत की।

बकौल लोकेश गृहमंत्री ने उनके पिता की कुशलक्षेम पूछी और हौसला बनाए रखने की सलाह भी दी। बात इतनी सी होती तो इस बैठक में आंध्र की भाजपा सूबेदार पुरंदेश्वरी देवी और तेलंगाना के भाजपा सूबेदार जी किशन रेड्डी क्यों मौजूद रहते? सियासी हलकों में तो यही चर्चा है कि तेलगुदेशम भी जल्द राजग में शामिल हो जाएगी।

सूची का सच

राजस्थान में भाजपा के भीतर सब कुछ सहज नहीं है। उम्मीदवारों की पहली सूची सामने आते ही असंतोष और गुटबाजी खुलकर सतह पर आ गए। चुनाव में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं होगा, यह तो पार्टी आलाकमान ने पहले ही साफ कर दिया था। जिससे पार्टी की सूबे की सबसे कद्दावर नेता और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे के चेहरे पर मायूसी साफ झलकी थी।

लेकिन उम्मीदवारों की पहली सूची में जिस तरह वसुंधरा समर्थकों के पार्टी ने टिकट काट दिए उससे यह बात भी स्पष्ट हो गई कि आलाकमान अब वसुंधरा राजे की नाराजगी को ज्यादा तवज्जो न देने की नीति अपना चुका है। पहली सूची में लोकसभा के सात सदस्यों की उम्मीदवारी से यह संकेत भी मिल गया कि एक तीर से दो शिकार की रणनीति अपनाई गई है। जीते तो भविष्य उज्ज्वल और हारे तो लोकसभा से भी पत्ता साफ।

हालांकि घोषित एजंडा सत्तारूढ़ कांगे्रस के उम्मीदवारों के खिलाफ मजबूती से लड़ना और नाकारा विधायकों से जनता की नाराजगी के कोप से बचाव बताया गया है। बहरहाल वसुंधरा तो अभी खामोश हैं पर उनके समर्थक जरूर बगावत पर उतर गए हैं। मसलन राजपाल शेखावत, दानाराम चौधरी और अनिता नागर जैसे नेताओं के निर्दलीय ही मैदान में उतरने की संभावना है। जगह-जगह पार्टी के खिलाफ असंतुष्टों ने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं।

यहां तक कि पार्टी के झंडे तक जलाने की घटनाएं सामने आई हैं। आलाकमान सफाई दे रहा है कि श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ के बीच चयन करना हो तो श्रेष्ठ की नाराजगी स्वाभाविक है पर कोई बगावत नहीं होगी। बात इतनी ही सपाट होती तो दिल्ली से सूबे के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी रात में ही जयपुर क्यों भागते।

क्यों बागियों की मिन्नत करने के लिए केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की अध्यक्षता में आलाकमान को 11 सदस्यीय समिति बनानी पड़ती और क्यों उम्मीदवारों की बाकी सूची जारी होने में देर लगती। राजस्थान का घमासान इस बार भाजपा के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती बन रहा है। खास कर जिस अनुशासन के पार्टी कसीदे पढ़ती है, वह यहां तार-तार हो रहा है। हर रोज बदलते माहौल के बीच देखना है कि भाजपा कांग्रेस के खिलाफ क्या तुरुप का पत्ता निकालती है।

स्त्री, दलित सरोकारों पर प्रियंगा के सवाल

पुडुचेरी की इकलौती महिला मंत्री एस चंदिरा प्रियंगा का इस्तीफा नया विवाद दे गया है। वहां आल इंडिया एनआर कांगे्रस और भाजपा की साझा सरकार है। चंदिरा प्रियंगा परिवहन मंत्री थीं। वे दलित समुदाय से नाता रखती हैं। उन्होंने अपने त्यागपत्र में आरोप लगाया है कि दलित होने के कारण मुख्यमंत्री ने उनके साथ सौतेला व्यवहार किया। ऊपर से अकेली महिला मंत्री होने के कारण भी उन्हें लगातार अपमानित किया गया।

जैसे वे एकदम अयोग्य हों। अपना इस्तीफा उन्होंने मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी को भेजा और कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो सोशल मीडिया पर उसकी घोषणा कर दी। पुडुचेरी के इतिहास में वे पहली महिला मंत्री थीं। अपने खिलाफ साजिश किए जाने और दौलत की ताकत से नहीं भिड़ पाने की पीड़ा भी खुलकर जता दी।

विपक्ष ने भाजपा पर कटाक्ष करने में देर नहीं लगाई कि महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की भाजपा की असलियत सामने आ गई है। भाजपा का वैसे तो दूसरी पार्टी की मंत्री से सीधे कोई लेनादेना नहीं पर उपराज्यपाल तमिलिसाइ सुंदरराजन ने यह कहकर विवाद पैदा कर दिया कि चंदिरा को तो मुख्यमंत्री की सलाह पर उन्होंने उनके त्यागपत्र से पहले ही पद से हटा दिया था।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)