उत्तर प्रदेश की जौनपुर सीट से भाजपा के उम्मीदवार बनाए गए कृपाशंकर सिंह फिर सुर्खियों में हैं। मुंबई में रहते हैं पर मूल रूप से जौनपुर के निवासी हैं। अपनी सियासी पारी के चार दशक उन्होंने कांग्रेस में बिताए थे। 2019 में उसी पार्टी को छोड़ दिया जिसने उन्हें एमएलसी, एमएलए और राज्य सरकार में मंत्री ही नहीं मुंबई प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया था।
हालांकि भाजपा में वे 2021 में शामिल हुए थे और पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश का उपाध्यक्ष भी बनाया था। विवादों से कृपाशंकर सिंह का पुराना नाता रहा है। जौनपुर से मुंबई 1971 में वे रोजगार की तलाश में गए थे। राजनीति में 1977 में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के बाद मुंबई में सड़क जाम करके कूदे। घोषित आय से अधिक संपत्ति का मामला भी उन पर दर्ज हुआ था। इस चक्कर में उन्हें मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा था। पहले वे खुद को स्नातक बताते थे। लेकिन बाद में खुद ही हाईस्कूल लिखना शुरू कर दिया।
ईडी को उनकी और उनके परिवार की हैसियत अरबों रुपए की होने की जानकारी मिली थी। लेकिन भाजपा में आने के बाद महाराष्ट्र में उनकी दाल ज्यादा नहीं गल पा रही थी। यहां तक कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने पिछले साल उन्हें कार्यकारिणी में भी जगह नहीं दी थी। पिछली दफा जौनपुर सीट बसपा के श्याम सिंह यादव ने जीती थी। भाजपा को भरोसा है कि राजपूत कृपाशंकर सिंह उसे यह सीट जीतकर देंगे।
चिराग को न्योता
बिहार में भाजपा के लिए सीटों के बंटवारे में नया यह है कि इस बार भाजपा को दो नए सहयोगियों उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के लिए भी सीट छोड़नी पड़ेगी। उधर लोजपा अब दो धड़ों में बंट चुकी है। चिराग पासवान अपने गुट में अकेले हैं तो उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के गुट में पांच सांसद हैं। दोनों गुट ही छह-छह सीटों पर दावा ठोक रहे हैं।
भाजपा दोनों का मिलाप भी नहीं करवा पा रही। ऊपर से कुशवाहा और मांझी को दी जाने वाली सीटें वह जद (एकी) के कोटे से घटाना चाहती है। चिराग चाहते हैं कि भाजपा उनके चाचा को कतई अहमियत न दे। भाजपा के लिए यह संभव नहीं। उधर तेजस्वी यादव ने चिराग को न्योता दे दिया है कि राजग में अपना कद घटाने की जगह वे अगर महागठबंधन में आ जाएं तो उन्हें लोकसभा की सात सीटें मिल जाएंगी। बिहार में कहानी अभी बाकी है।
दिल्ली में चुनौती है बड़ी
भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के लिए पांच चेहरों की घोषणाा की है। इन चेहरों में चार नए और एक पुराना चेहरा शामिल है। पार्टी की लहर के बीच हर तरफ दावा किया जा रहा है कि राम मंदिर, प्रधानमंत्री और केंद्र के काम के आधार पर उम्मीदवारों की नैया आसानी से पार लग जाएगी। इस लहर के बीच भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की बैचेनी नए प्रावधान से बढ़ा दी है।
पार्टी ने कहा है कि सभी उम्मीदवारों को कम से कम पांच लाख के अंतर से जीतना होगा। यह इस बार भाजपा के उम्मीदवारों के लिए बड़ी चुनौती होगी। पार्टी नेताओं का मानना है कि इस जीत का असर दिल्ली में आने वाले अगले चुनाव तक बना रहेगा। इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने यह नया मानक तय किया है।
राजग के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य भाजपा के गले की फांस बना
लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में अपने लिए 370 और राजग के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य भाजपा के गले की फांस बन गया है। सो लगातार विपक्ष के नेताओं में सेंधमारी जारी है। ओड़ीशा में नवीन पटनायक के बीजू जद के साथ पार्टी का चुनाव पूर्व गठबंधन तकरीबन तय है। ओड़ीशा की 21 सीटों में से भाजपा ने पिछली बार आठ और बीजू जद ने 12 जीती थी।
कांग्रेस को एक सीट से ही सब्र करना पड़ा था। ओड़ीशा में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ ही होते हैं। पिछली बार विधानसभा की 147 सीटों में से पटनायक की पार्टी ने 112 और भाजपा ने 23 जीती थी। पटनायक जनता दल से अलग होने के बाद 1998 में राजग में शामिल हुए थे। वे वाजपेयी सरकार में मंत्री थे।
गठबंधन की तरफ से 2000 में सूबे के मुख्यमंत्री बने। लगातार 24 साल से सत्ता पर काबिज हैं। भाजपा से नाता जरूर उन्होंने 2009 में तोड़ लिया था, पर संकट की हर घड़ी में उन्होंने मोदी सरकार का खुलकर साथ दिया। चर्चा है कि अगले पांच साल मुख्यमंत्री रहने के मोह में गठबंधन नवीन पटनायक भी चाहते हैं।
सीटों के बंटवारे में ज्यादा उलझन इसलिए नहीं होगी क्योंकि नवीन विधानसभा की दो तिहाई सीटें लेकर लोकसभा की दो तिहाई सीटें भाजपा को देने को राजी हैं। छठी बार मुख्यमंत्री बने तो अधिकतम समय तक किसी सूबे का मुख्यमंत्री रहने का सिक्किम के पवन चामलिंग का रिकार्ड तोड़ देंगे। यह लक्ष्य आकर्षक तो है ही नवीन पटनायक के लिए।
नागपुर का रहस्य
नितिन गडकरी को लेकर अटकलों का बाजार गरम है। उद्धव ठाकरे ने आग में घी डालने का काम कर दिया। गडकरी को भाजपा छोड़कर महाराष्ट्र विकास अघाड़ी यानि कांगे्रस-शिवसेना (उद्धव) और शरद पवार के गठबंधन से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे दिया। गडकरी मोदी सरकार में कामकाज के मामले में सर्वश्रेष्ठ मंत्री माने जाते हैं। भाजपा ने 195 उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की उसमें गडकरी का नाम नहीं था। यही अटकलों की वजह बन गया।
गडकरी नागपुर से लोकसभा के सदस्य हैं। वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। पर धीरे-धीरे बात बिगड़ती गई। उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर कर दिया गया। उनकी जगह पूर्व सांसद और हरियाणा की नेता सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में जगह मिल गई। गडकरी कुछ नहीं बोले। उद्धव ठाकरे के बयान पर देवेंद्र फडणवीस ने सफाई दी कि जिन सूबों में गठबंधन की सरकार हैं, वहां पार्टी ने कोई उम्मीदवार घोषित किया ही नहीं है तो गडकरी का टिकट काटने की बात निरर्थक है। गडकरी पार्टी के वरिष्ठ नेता ठहरे। लेकिन, नागपुर से अगर उनकी उम्मीदवारी भी पहली ही सूची में घोषित हो जाती तो किसी तरह का रहस्य पैदा ही क्यों होता।
संकलन : मृणाल वल्लरी