पूर्व केंद्रीय मंत्री और हजारीबाग के भाजपा सांसद जयंत सिन्हा को भाजपा ने पहले तो हजारीबाग से 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया और अब कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। नोटिस में कहने को तो निष्क्रियता और वोट न डालने का आरोप लगाया पर मंशा यह जताने की रही कि हजारीबाग से टिकट न मिलने के कारण उन्होंने न तो उम्मीदवार मनीष जायसवाल का प्रचार किया और न संगठन के काम में रूचि दिखाई। और तो और मतदान तक नहीं किया।

जयंत सिन्हा ने तपाक से जवाब भेज दिया कि सक्रिय नहीं रह पाने के कारण उन्होंने राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पहले ही बता दिया था। वे अपने निजी काम को फिर संभाल रहे हैं। उन्होंने पोस्टल बैलट से मतदान भी कर दिया था। सिन्हा के पिता यशवंत सिन्हा को पार्टी ने 2014 में ही मार्गदर्शक मंडल में भेज कर जयंत को हजारीबाग से लोकसभा से टिकट दिया था। नरेंद्र मोदी की 2014 में बनी सरकार में जयंत सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मंत्री थे।

उनके नाराज पिता ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए अखबार में लेख लिखा था तो उस लेख का खंडन करने वाला लेख भाजपा ने उन्हीं के बेटे जयंत सिन्हा से लिखवाकर उसी अखबार में छपवाया था। बेचारे जयंत विदेश से बड़े पैकेज की नौकरी छोड़ देश सेवा के लिए 2013 में राजनीति में कूदे थे। लेकिन 2019 में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अब तो लोकसभा का टिकट भी कट गया।

योगी के घर ‘आरक्षण’

धार्मिक आधार पर आरक्षण को चुनाव में मुद्दा बनाया है भाजपा ने। उसके सितारा प्रचारक लगातार कह रहे हैं कि वे मुसलमानों को आरक्षण का लाभ देने के इंडिया गठबंधन के मंसूबों को कतई पूरा नहीं होने देंगे। लेकिन, मुसलमानों की जो जातियां ओबीसी श्रेणी में हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ भाजपा शासित राज्यों में भी पहले से मिल रहा है। मसलन अकेले उत्तर प्रदेश में ही मुसलमानों की दो दर्जन से ज्यादा जातियों को 27 फीसद ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल रहा है। अब योगी सरकार ने सफाई दी है कि यह आरक्षण समाजवादी पार्टी की सरकार ने नियम विरुद्ध दे दिया था, जो बदस्तूर लागू है। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संकेत दिए हैं कि इसकी पड़ताल की जाएगी कि मुसलमानों को यह आरक्षण क्यों और कैसे दिया जा रहा है। पिछड़ा कल्याण बोर्ड को राज्य सरकार ने इस बारे में आंकड़े जुटाने का निर्देश भी दे दिया है।

फर्जी खबर पर बढ़ी परेशानी

राजनीतिक घमासान के बीच इन चुनावों में अफवाहों का बाजार भी गर्म है। हाल ही में भाजपा के ‘लेटर हेड’ पर एक आदेश जारी किया गया। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के आदेश से प्रशांत किशोर को पार्टी का मुख्य प्रवक्ता घोषित करने का दावा किया गया था। यह पत्र पार्टी नेता अरुण सिंह के आदेश से जारी किया गया था। अफवाह के बाजार में इस पत्र के आते ही भाजपा के नेताओं की परेशानी बढ़ी और उन्हें इसका खंडन जारी करना पड़ा। इस पत्र पर बकायदा फर्जी खबर का टैग लगाकर विपक्षी गठबंधन को घेरा गया है। प्रशांत कांग्रेस व भाजपा की चुनावी रणनीति को बेहतर बनाने के लिए अपनी कंपनी की सेवाएं देते रहे हैं, और इन दिनों काफी सक्रिय भी हैं।

पवन सिंह के मैदान में उतरने से उपेंद्र कुशवाहा की नींद उड़ी

पावर स्टार’ के नाम से प्रसिद्ध पवन सिंह ने पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नींद उड़ा दी है। सिंह ने 2014 में भाजपा का दामन थामा था। बिहार के आरा जिले से नाता रखने वाले पवन सिंह राजपूत हैं। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों की मार्च में घोषित अपनी पहली सूची में ही पवन सिंह को पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से उम्मीदवार बनाया। पर पवन सिंह ने अपने किसी विवादास्पद संगीत वीडियो का वास्ता देते हुए अगले ही दिन आसनसोल से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

आसनसोल से पहले भाजपा के बाबुल सुप्रियो जीते थे और मोदी सरकार में मंत्री बने थे। बाद में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर तृणमूल कांगे्रस का दामन थाम लिया। आसनसोल से ममता दीदी ने शत्रुघ्न सिन्हा को लोकसभा भेज दिया। पवन सिंह बिहार की काराकाट सीट से टिकट मांग रहे थे। गठबंधन में यह सीट राष्टÑीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा को मिल गई।

राजग की तरफ से उपेंद्र कुशवाहा हैं तो महागठबंधन की तरफ से भाकपा माले के राजाराम कुशवाहा मैदान में हैं। टिकट नहीं मिला तो पवन सिंह निर्दर्लीय कूद पड़े। चुनाव में जाति का पहलू असर दिखा रहा है इस नाते क्षेत्र के राजपूत मतदाता पवन सिंह का साथ दे रहे हैं, सो उपेंद्र कुशवाहा परेशान हैं। उनके दबाव में भाजपा आलाकमान ने पवन सिंह को पार्टी से तो निकाल दिया पर चुनाव मैदान से हटने के लिए राजी नहीं कर पाया। पवन सिंह की चुनावी सभाओं में खूब जुट रही है भीड़।

करनाल में मनोहर लाल की किरकिरी

साढ़े नौ साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को करनाल में इस बार दिन में तारे नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव पहली बार जो लड़ रहे हैं। तपती धूप तो पसीना निकाल ही रही है, जगह-जगह लोगों के विरोध प्रदर्शन का भी सामना करना पड़ रहा है। सत्तर की उम्र पूरी कर चुके मनोहर लाल को कांग्रेस के तीस साल के दिव्यांशु बुद्धिराजा चुनौती दे रहे हैं। जो हरियाणा प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष हैं।

करनाल सीट पर 2004 और 2009 में कांग्रेस के अरविंद शर्मा जीते थे। 2014 में पत्रकार अश्वनी चोपड़ा यहां से विजयी हुए थे। लेकिन, 2019 में मनोहर लाल ने अपने खासमखास संजय भाटिया को टिकट दिलाया था और वे जीत भी गए थे। लेकिन मनोहर लाल को खुद खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। मतदाताओं को लुभाने के लिए परशुराम जयंती पर हुए ब्राह्मण सम्मेलन में तो बिन बुलाए ही पहुंच गए। अभी प्रचार शुरू ही किया था कि श्रोताओं ने शोर मचा दिया कि यह सामाजिक कार्यक्रम है, राजनीतिक मंच नहीं। बेचारे मनोहर लाल को भाषण दिए बिना ही मायूस लौटना पड़ा सम्मेलन से।

संकलन : मृणाल वल्लरी