कभी डंका बजता था भाजपा में प्रमोद महाजन का। वित्तीय बंदोबस्त से लेकर विरोधियों के साथ तालमेल बिठाने का प्रमोद महाजन जैसा हुनर पार्टी के दूसरे किसी नेता के पास नहीं था। भाजपा का महाराष्ट्र में विस्तार प्रमोद और उनके बहनोई गोपीनाथ मुंडे ने ही किया था। प्रमोद ब्राह्मण थे तो उनके बहनोई मुंडे ओबीसी। महाराष्ट्र की पहली शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में मुंडे उपमुख्यमंत्री थे। लेकिन प्रमोद की मई 2006 में उनके छोटे भाई ने ही हत्या कर दी थी।
उनकी मौत के बाद पार्टी ने उनके बेटे राहुल महाजन को पिता की सियासी विरासत सौंपने का फैसला किया था। पर राहुल की राजनीति में रुचि थी ही नहीं। लिहाजा उनकी बहन पूनम महाजन को उतारा गया। जो 2009 में घाटकोपर सीट से विधानसभा चुनाव राज ठाकरे की पार्टी के उम्मीदवार से हार गई। हालांकि 2014 में पार्टी ने उन्हें मुंबई उत्तर मध्य सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाया।
वे 2014 ही नहीं 2019 में भी जीती। लगता है, अब तीसरी बार उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है पार्टी आलाकमान। हालांकि, पूनम ने अभी तक उम्मीद नहीं छोड़ी है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यहां से सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त को उतारने के इच्छुक हैं तो भाजपा ने माधुरी दीक्षित से संपर्क साधा है। प्रिया 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार की हैसियत से यहां जीती थी। पूनम को पार्टी ने आश्वासन दिया है कि उन्हें राज्यसभा भेज दिया जाएगा।
नदारद ओवैसी
आल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असद्दुदीन ओवैसी इस बार उत्तर प्रदेश के सियासी पटल से नदारद हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पहले दो चरणों की मुसलमान बहुल 16 सीटों पर उन्होंने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। अभी पिछले साल ही मेरठ में ओवैसी ने नगर निगम चुनाव में अपना मेयर उम्मीदवार खड़ा कर भाजपा की राह आसान बनाई थी और सपा को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया था।
ओवेसी खुद हैदराबाद की अपनी सीट पर उलझे हैं। भाजपा ने उनके मुकाबले इस बार एक फिल्म अभिनेत्री को उतारा है। ओवैसी हैदराबाद से 2004 से लगातार सांसद हैं। इससे पहले इसी सीट से उनके पिता सुल्तान सलाउद्दीन ओवेसी लगातार छह बार सांसद रहे। खुद ओवैसी पहली बार 2004 में लड़े और जीते थे। उसके बाद हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता गया। भाजपा दावा कर रही है कि इस बार ओवैसी हारेंगे।
तीन सीटों पर भी झटके का डर
दिल्ली के चुनावी दंगल में इस बार कांग्रेस केवल तीन ही सीट पर मैदान में है। इन सीटों में शुरुआत में पार्टी की स्क्रीनिंग कमिटी ने जिन चेहरों को जमीनी आधार पर टिकट देने की सिफारिश की थी, उनमें से एक भी नाम आलाकमान को पसंद नहीं आया। नए सिरे से तीनों सीटों पर चेहरे उतार दिए। इन पर पार्टी के अंदर की अंदुरूनी कलह सामने आई, जो प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
गठबंधन के तहत लड़े जा रहे चुनाव को लेकर भी नाराजगी है क्योंकि स्थानीय स्तर पर पार्टी के कई नेताओं का मानना था कि कांग्रेस को अपने दम पर ही चुनाव मैदान में आना चाहिए था। इन ताजा समीकरण से अभी से ही कांग्रेस व गठबंधन सहयोगियों की सीटों पर झटके का खतरा मंडरा रहा है।
देवगौड़ा का गम
देवगौड़ा जनता दल (सेकु) के अध्यक्ष हैं। वे काफी असमंजस में हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से गठबंधन किया है। भाजपा सूबे की 28 में से 25 सीटों पर लड़ रही है जबकि देवगौड़ा की पार्टी को उसने हासन, मांडया और कोलार तीन सीटें दी हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने 28 में से 25 सीटें जीती थी। हासन से देवगौड़ा ने अपने पौत्र प्रज्ज्वल रवन्ना को ही दूसरी बार उतारा है।
जबकि मांडया में उनके बेटे कुमारस्वामी गठबंधन उम्मीदवार हैं। बुधवार को खुद देवगौड़ा ने पत्रकारों से बातचीत में आरोप लगा दिया कि भाजपा के कुछ नेताओं ने मांडया और हासन में उन्हें सहयोग नहीं दिया। कर्नाटक में हालांकि बची 14 सीटों के लिए दूसरे चरण में शुक्रवार को मतदान संपन्न हो गया। पर, देवगौड़ा जैसे कद्दावर नेता का भाजपा के असहयोग की शिकायत करना चुनावी नतीजों को लेकर संदेह पैदा करता है।
पिछली बार देवगौड़ा खुद चुनाव हार गए थे। हासन में प्रज्ज्वल का मुकाबला पुत्तास्वामी गौड़ा के पौत्र से है। पुत्तास्वामी भी वोक्कालिगा हैं। उन्होंने 1999 में देवगौड़ा को हराया था। इस बार दोनों की तीसरी पीढ़ी लड़ रही है। देवगौड़ा ने जैसे ही भाजपा का सहयोग न मिलने की बात कही, कांगे्रस को मौका मिल गया। पार्टी ने तपाक से बयान दे दिया कि भाजपा उनकी पार्टी का खात्मा कर देगी। देवगौड़ा भूल गए कि उनके बेटे की सरकार को चार साल पहले भाजपा ने ही तो गिराया था। अब तो आगे नतीजे का इंतजार है।
चुनौती कबूल
आखिर कन्नौज से अखिलेश यादव खुद ही मैदान में उतर गए हैं। पहले वे यहां से अपने भतीजे और लालू यादव के दामाद तेजप्रताप यादव को चुनाव लड़ाना चाहते थे। मगर भाजपा ने जब तंज कसा कि अखिलेश यादव हार के डर से भाग रहे हैं तो उन्होंने चुनौती स्वीकार कर ली। चुनाव में यादव परिवार के अब कुल पांच उम्मीदवार हैं।
बदायूं से आदित्य यादव, मैनपुरी से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव और खुद अखिलेश कन्नौज से। कन्नौज अखिलेश के लिए नई सीट नहीं है। वे 2000 में हुए उपचुनाव में पहली बार यहां से जीते थे। फिर 2004 और 2009 में भी जीते। लेकिन, 2012 में मुख्यमंत्री बने तो इस्तीफा देना पड़ा।
उपचुनाव में उनकी पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध जीत गई। फिर 2014 में भी यहां से डिंपल ही जीती। उन्होंने भाजपा के सुब्रत पाठक को हराया। लेकिन 2019 में सुब्रत ने लगभग 13000 मतों से डिंपल को हराकर अपनी हार का बदला चुका लिया। जाहिर है कि अब मुकाबला अखिलेश और सुब्रत के बीच होगा। सुब्रत को अखिलेश 2009 में हरा चुके हैं।
संकलन : मृणाल वल्लरी