कश्मीर घाटी की तीन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारने के भाजपा के फैसले से संघ शासित क्षेत्र के पार्टी कार्यकर्ता हैरान हैं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ने यह फैसला क्यों लिया, कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे। भाजपा ने 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा-370 हटाई थी। साथ ही आतंकवाद में कमी, आर्थिक निवेश बढ़ने और पर्यटन के विकास का बढ़-चढ़कर दावा किया था।

लेकिन, पार्टी के सूबेदार रविंद्र रैना ने जब घोषणा की कि भाजपा श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग-राजौरी की सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी तो इन इलाकों के टिकटार्थियों को झटका लगना स्वाभाविक था। जम्मू कश्मीर 2019 से पहले जब पूर्ण राज्य था तो यहां लोकसभा की कुल छह सीटें थी। अब लद्दाख अलग संघ शासित क्षेत्र है और जम्मू कश्मीर अलग संघ शासित क्षेत्र।

जम्मू और ऊधमपुर की सीटें हैं तो लद्दाख की सीट अलग है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने अपना जो चुनाव पूर्व सर्वे कराया था उसमें घाटी की तीनों सीटों पर पार्टी की स्थिति लचर होने की जानकारी सामने आई थी। हारने से अच्छा पार्टी ने इन सीटों पर चुनाव न लड़ना समझा। महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी पूछ रही है कि भाजपा ने जो नया कश्मीर बनाने का दावा किया था, उसका क्या हुआ। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हिसाब से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा और विधानसभा चुनाव 30 सितंबर से पहले कराना जरूरी है।

भूले चार सौ पार

भाजपा की चुनावी सभाओं में ज्यादातर नेता चार सौ पार के नारे से बचते दिख रहे हैं। दो चरणों के मतदान के बाद पार्टी की रणनीति बदली है। पिछली दफा भाजपा को 303 सीटों के साथ बहुमत मिला था। भाजपा ने चार सौ पार का नारा दिया तो विपक्ष ने लोगों से पूछना शुरू कर दिया कि भाजपा इतनी सीटें क्यों चाहती है। खुद ही जवाब भी दे दिया कि संविधान बदलने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए।

संविधान बदलकर आरक्षण खत्म करने की मंशा जो ठहरी भाजपा की। भाजपा को खुफिया खबर लग गई कि चुनाव सांप्रदायिक या भावनात्मक मुद्दे पर नहीं हो रहा है। जात-पात, महंगाई और बेरोजगारी के अलावा आरक्षण पर मंडराता खतरा लोगों के दिल-दिमाग पर असर करने लगा है। पार्टी ने सफाई दी कि दलितों और पिछड़ों के आरक्षण को भाजपा मजहब के आधार पर नहीं बंटने देगी। चार सौ पार का नारा पीछे चला गया।

ठुमके वाला चुनाव प्रचार

चुनाव प्रचार के दृश्य देख कर लग रहा कि नेताओं का एक ही लक्ष्य है कि वोट के लिए कुछ भी करेंगे। उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के साथ कांग्रेस पार्टी चुनाव मैदान में है। वोट के लिए नेताओं को खुले मंच पर ठुमके तक लगाने पड़ रहे हैं। हाल ही में विपक्षी गठबंधन की एक सभा में यह नजारा देखने को मिला है।

विपक्षी गठबंधन की यह बैठक अलीगढ़ में हुई थी और इस मंच पर समाजवादी पार्टी का र्शीर्ष नेतृत्व तक मौजूद था। इस सभा में अलीगढ़ से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी चौधरी बिजेंद्र सिंह मंच पर वोट मांगने के लिए देहाती गानों पर ठुमके लगाते नजर आए। शायद मन में कह रहे हों कि पांच साल लोगों के सत्ता की धुन पर नचाने के लिए खुद नाचना भी पड़ता है।

अस्मिता का जाल

भाजपा ओड़ीशा में अस्मिता के जाल में फंस गई है। पहले उड़िया अस्मिता और भाषा पर संकट का हवाला दिया। निशाने पर पूर्व आइएएस कार्तिकेय पांडियन थे। नवीन पटनायक की लोकप्रियता के पीछे कार्तिकेय पांडियन की अहम भूमिका रही है। पांडियन मूल रूप से तमिल हैं और 2000 में आइएएस बने तो पंजाब कैडर मिला।

लेकिन उड़िया मूल की 2000 बैच की ही आइएएस सुजाता से विवाह करने के कारण पांडियन का कैडर भी बदल गया। ओड़ीशा में आइएएस के नाते वे जिस भी पद पर रहे, अपने काम की छाप छोड़ी। नवीन पटनायक को इस कदर भाए कि 2011 में अपना निजी सचिव बना लिया। बीजू जद के साथ चुनावी तालमेल नहीं हो पाने के लिए भाजपा पांडियन को ही जिम्मेदार ठहराती है।

इसलिए चुनाव में शोर मचाया जा रहा है कि ओड़ीशा के कर्ताधर्ता एक तमिल के होने से उड़िया अस्मिता खतरे में है। पांडियन अस्मिता के इस भाजपाई जाल में खुद तो नहीं फंसे पर भाजपा को खूब फंसाया। तोहमत लगाई है कि दस साल के केंद्र के राज के बावजूद न उड़िया भाषा और संगीत के लिए कुछ किया और न उड़िया अस्मिता के प्रतीक बीजू पटनायक को भारत रत्न दिया। इसके साथ ही कहा कि दुहाई एक भारत और श्रेष्ठ भारत की पर तमिल मूल के आदमी से चिढ़। दरअसल पुरी के प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ मंदिर का गलियारा ओड़ीशा सरकार ने बनाया है। इस नाते सूबे में भाजपा का राम-मंदिर का मुद्दा भी चल नहीं पाया।

अपनों में बेगाना

करनाल से लोकसभा के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को जगह-जगह लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। खास कर किसान भाजपा से नाराज हैं। खट्टर से किसान सवाल करना चाहते हैं, लेकिन पुलिस सुरक्षाबल उन्हें उनके पास नहीं पहुंचने देता है। करीब साढ़े नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे खट्टर को हटाकर भाजपा आलाकमान ने नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की कुर्सी इस उम्मीद से सौंपी थी कि एक तो पिछड़ों और अति पिछड़ों का समर्थन मिलेगा।

दूसरे खट्टर सरकार के प्रति नाराजगी का अंजाम भुगतने से पार्टी बच जाएगी। लेकिन, भाजपा की समस्या बाहरी ही नहीं अंदरूनी भी है। पार्टी बुरी तरह गुटबाजी में फंसी है। पूर्व गृहमंत्री अनिल विज अपनी अनदेखी से बागी तेवर अपनाए हैं। वे दुहाई तो पार्टी का वफादार कार्यकर्ता होने की दे रहे हैं पर खट्टर पर वार करने का कोई मौका चूक नहीं रहे। इसी बुधवार को अंबाला की एक सभा में फरमाया-माना कि कुछ लोगों ने मुझे मेरी ही पार्टी में बेगाना बना दिया, पर कई बार बेगाने अपनों से भी ज्यादा काम कर जाते हैं।

संकलन : मृणाल वल्लरी