रिश्ते की खोज

नीट परीक्षा 2024 में सामने आई अनियमितताओं के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी (एनटीए) के महानिदेशक को तो उनके पद से हटा दिया पर एनटीए के पदाधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की। दावा किया जा रहा है कि कार्रवाई नहीं होने की असली वजह उनका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ाव है। वे कालेज में प्रवक्ता रहने के दौरान आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सक्रिय रूप से जुड़े थे। कहा जा रहा कि उनकी वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी से निकटता जग जाहिर थी।

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग का पदाधिकारी भी बनाया। तब एक आरटीआइ कार्यकर्ता ने आरोप लगाया था कि उन्हें लोकसेवा आयोग में आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक की सिफारिश पर नियुक्ति मिली थी। मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग में उनके लिए जगह बना दी गई। छत्तीसगढ़ में उस समय रमण सिंह की सरकार थी। केंद्र में 2014 में भाजपा सरकार आई तो संघ लोकसेवा आयोग के सदस्य बना दिए गए। संघ लोकसेवा आयोग से कार्यकाल पूरा हुआ तो पिछले साल उन्हें केंद्र सरकार ने एनटीए का पदाधिकारी बना दिया। छत्तीसगढ़ में उनकी नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती भी मिल चुकी है।

फिर सेवा विस्तार?

दुर्गा शंकर मिश्रा उत्तर प्रदेश की नौकरशाही के मुखिया हैं। उत्तर प्रदेश कैडर के 1984 बैच के आइएएस मिश्रा को बतौर मुख्य सचिव तीसरी बार सेवा विस्तार मिल सकता है। मिश्रा मुख्य सचिव बनने से पहले केंद्र सरकार में प्रति नियुक्ति पर सचिव थे। उनकी सेवानिवृत्ति 31 दिसंबर 2021 को तय थी। लेकिन, दो दिन पहले ही उन्हें सूबे का मुख्य सचिव बना दिया गया। मुख्य सचिव पद पर एक साल के न्यूनतम कार्यकाल का प्रावधान होता है।

सो मिश्रा की नौकरी एक साल अपने आप बढ़ गई। यह कार्यकाल 31 दिसंबर 2022 को खत्म होता इससे पहले ही उन्हें एक वर्ष का सेवा विस्तार मिल गया। नसीब के धनी मिश्रा 31 दिसंबर 2023 को भी रिटायर नहीं हुए। लोकसभा चुनाव के कारण उन्हें फिर छह महीने का सेवा विस्तार मिला। यह अवधि 30 जून को खत्म हो जाएगी। अभी तक लग रहा वे नसीब के धनी बने रहेंगे।

अकाली दल पर भाजपा की नजर

पंजाब में भाजपा को सीट तो कोई नहीं मिली पर तीन जगह दूसरे नंबर पर आने से उम्मीद बंधी है। भाजपा दूसरे दलों से नेताओं को शामिल कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व सांसद रवनीत बिटटू पहले ही भाजपा में शामिल हो गए थे। अब शिरोमणि अकाली दल पर भी भाजपा की नजर है। पिछले हफ्ते जलंधर में हुई अकाली दल के कुछ असंतुष्ट नेताओं की बैठक को भाजपाई रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। बैठक परमिंदर सिंह ढींढसा ने बुलाई थी। बीबी जागीर कौर भी पहुंची थी। इसमें पार्टी की हार पर चिंता जताते हुए सुखबीर बादल के इस्तीफे की मांग की गई। सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर ने भाजपा पर महाराष्ट्र की तरह ‘आपरेशन लोटस’ का आरोप लगा दिया।

महारानी का तंज

राजस्थान में भाजपा सत्ता में आई तो वसुंधरा राजे को उम्मीद थी कि उन्हें तीसरी बार सूबे की मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिलेगा। पर, आलाकमान ने तो उनसे एक अनजान चेहरे भजन लाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव करा दिया विधायक दल की बैठक में। उनके किसी करीबी को मंत्री नहीं बनाया। लेकिन, वसुंधरा चुप्पी साधे रहीं। अब लोकसभा चुनाव में पार्टी को झटका लगा तो महारानी ने भी संकेतों में ही सही तेवर दिखा दिए। मौका था उदयपुर के सुखाड़िया सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम का। भाजपा के कद्दावर नेता रहे सुंदर सिंह भंडारी और जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि का।

वसुंधरा ने भंडारी को याद करते हुए कहा कि वफा का वो दौर अलग था। भंडारी और भैरो सिंह शेखावत से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। वे दोनों की ऋणी हैं। पर आज तो हालत यह है कि जो चलना सिखाते हैं, लोग उन्हीं की उंगलियां काटने की कोशिश करते हैं। वसुंधरा ने किसी का नाम तो नहीं लिया पर संकेत मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और उपमुख्यमंत्रियों दिव्या कुमारी व प्रेमचंद बैरवा की तरफ था। जो कभी उनके ईर्द-गिर्द घूमते थे। वसुंधरा को गुस्सा अपनी अनदेखी का ही नहीं है, अपने बेटे को केंद्र में मंत्री नहीं बनाने का दर्द भी कम नहीं होगा उन्हें। राजस्थान में एक तरफ तो भाजपा लोकसभा में 25 सीटों से घटकर 14 पर सिमटी है दूसरी तरफ इसी माहौल में उनके बेटे दुष्यंत ने झालावाड़ में लगातार पांचवी बार बड़े अंतर से जीत हासिल की है।

हुड्डा गुट का हल्ला बोल

चुनाव प्रचार के दौरान उठा संविधान का मुद्दा संसद तक गर्म है। लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के दौरान कई सदस्य संविधान की किताब हाथ में लेकर आए तो कई सदस्यों ने शपथ लेने के बाद ‘जय संविधान’ बोला। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की खीझ उस वक्त सामने आ गई जब उन्होंने शशि थरूर के शपथ लेने और ‘जय संविधान’ कहने के बाद कहा कि संविधान की शपथ तो ले ही रहे हैं। ओम बिरला की टिप्पणी का प्रतिवाद करते हुए दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि ‘जय संविधान’ कहने से आपको क्या परेशानी है तो अध्यक्ष ने उनसे तीखे स्वर में डपटने के अंदाज में बात की।

इसके बाद हुड्डा गुट ने इस मुद्दे को ‘एक्स’ पर वायरल करते हुए दीपेंद्र हुड्डा और ओम बिरला को मिले वोटों की तुलना करनी शुरू कर दी। आरोप लगाया कि एक सदस्य के ‘जय हिंदू राष्ट्र’ कहने से अध्यक्ष जी को कोई समस्या नहीं हुई पर ‘जय संविधान’ कहने से इन्हें समस्या हो रही है। ओम बिरला के पिछले कार्यकाल में एक ही सत्र में 146 सांसदों के निलंबन की मनमानी याद दिलाते हुए उनके परिवार से जुड़ी खबरों को ‘ट्रेंड’ करवा कर उनकी परेशानी बढ़ा दी।