संजय बालियान की आलोचना के कारण उनकी सुरक्षा हटा दी गई, जबकि हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा के नेतृत्व को लेकर गुटबाजी जारी है। भाजपा ने संकल्प पत्र के मंच पर बदलाव किया, और चंद्रबाबू नायडू अपने राजनीतिक रुतबे को बनाए रख रहे हैं। केरल में माकपा पी विजयन के उत्तराधिकारी की तलाश कर रही है, क्योंकि उनकी सत्ता और पार्टी की स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है।

परेशान बालियान

संजीव बालियान हेकड़ी दिखा परेशान हैं। केंद्र की पिछली सरकार में मंत्री थे मुजफ्फरनगर से 2014 और 2019 में लगातार लोकसभा चुनाव जीतने वाले बालियान। पिछला चुनाव सपा के हरेंद्र बालियान से हार गए थे। हार की तोहमत अपने संसदीय क्षेत्र के पूर्व विधायक संगीत सोम पर मढ़ी थी। संगीत सोम राजपूत ठहरे। पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे। फिर भी योगी आदित्यनाथ के राज में उनकी पूछ रही। बालियान ने उनके खिलाफ भीतरघात की शिकायत पार्टी आलाकमान से की थी। पर सोम का कुछ नहीं बिगड़ा। बालियान 12 जनवरी को एक जमीन के विवाद में मंसूरपुर थाने गए। अपनी बात नहीं मानने पर उन्होंने पत्रकारों के सामने पुलिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सोचा था कि मुख्यमंत्री उन पुलिस वालों पर कार्रवाई करेंगे। हो गया उलटा। उसी शाम जिले के पुलिस कप्तान ने बालियान की वाई श्रेणी की सुरक्षा हटा ली। अब अंतरराष्ट्रीय जाट संसद ने उनकी हिमायत में मुख्यमंत्री को चिट्ठी भेजी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपनी सरकार की अपनों द्वारा ही आलोचना करना कतई बर्दाश्त नहीं होता। अपने मुख्यमंत्री के मिजाज को नहीं समझ पाए। पछता रहे होंगे कि भ्रष्टाचार का आरोप क्यों लगा बैठे। इतना तो समझते ही होंगे कि मुख्यमंत्री की सहमति के बिना पूर्व केंद्रीय मंत्री की सुरक्षा वापसी का निर्णय अपने स्तर से कर नहीं सकता कोई पुलिस कप्तान।

हार के बाद भी हसरत

हरियाणा में हार के बाद भी कांग्रेस की गुटबाजी थम नहीं पाई है। सूबे में विधानसभा चुनाव अक्तूबर में हुए थे। तमाम विश्लेषकों ने सूबे में हार का ठीकरा हुड्डा के सिर फोड़ा था क्योंकि आलाकमान ने उन्हीं को पूरी छूट दी थी। अब पार्टी की उलझन विधायक दल के नेता के चयन ने बढ़ा रखी है। तीन महीने बीत चुके हैं पर पार्टी अभी तक अपने विधायक दल के नेता का फैसला नहीं कर पाई है। पार्टी के सूबेदार उदयभान ने सफाई दी है कि फैसला प्रदेश इकाई ने आलाकमान पर छोड़ा है। विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी गुजर गया। देरी की वजह हुड्डा की हठधर्मिता मानी जा रही है। वे पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। इस पद का मोह नहीं छोड़ पा रहे। आलाकमान युवा नेतृत्व को उभारना चाहता है। अशोक अरोड़ा और चंद्रमोहन भी दौड़ में बताए जा रहे हैं। पर मुश्किल यह है कि आलाकमान हुड्डा को नाराज नहीं करना चाहता।

‘संकल्प’ के लिए बदल डाला मंच

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी ने संकल्प पत्र जारी किया। इस संकल्प पत्र के लिए प्रदेश भाजपा की तरफ से जो व्यवस्था की गई थी वह केंद्र के नेताओं को पसंद नहीं आई। मंच पर केवल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए ही बड़ा आसन लगाया गया था। कुछ नेताओं के लिए कुर्सियां थीं। केंद्र के नेताओं की पहलकदमी के बाद सबसे पहले पुरानी कुर्सियों को बदला गया, वहीं दूसरी ओर मंच को भी बढ़ाया गया। इस मंच के जरिए उन सांसदों व केंद्र के नेताओं को जगह दी गई जिनके नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा है। मंच का बदलाव करने वाले मंत्री लंबे समय से दिल्ली संगठन से जुड़ी गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व के इशारे के साथ ही बड़ी तेजी से मंच का स्वरूप बदल गया।

राजनीतिक रुतबा

वाजपेयी सरकार में चंद्रबाबू नायडू का गजब का रुतबा था। तब वे राजग के संयोजक भी थे। वाजपेयी सरकार सहयोगियों के बूते ही चल रही थी, भाजपा की अपनी सीटें तो महज 182 थी। लिहाजा तेलगुदेशम का समर्थन अहम था। संयोजक नहीं होने के बावजूद रुतबा नायडू का मौजूदा मोदी सरकार में भी कम नहीं है। नायडू चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। केंद्र की राजनीति में उनकी न कभी पहले ज्यादा दिलचस्पी थी और न अब है। इस मसले पर विपक्ष के सारे कयास नाकाम साबित रहे। नायडू राजनीति के चतुर सुजान हैं। मोदी सरकार को समर्थन देने का सबसे ज्यादा फायदा वही उठा रहे हैं। जगनमोहन रेड्डी उनके राजनीतिक विरोधी हैं। इस नाते जब अमेरिका में अडाणी समूह पर जगनमोहन की मेहरबानी का खुलासा हुआ तो उम्मीद थी कि नायडू अडाणी के साथ रेड्डी द्वारा की गई बिजली खरीद की सौदेबाजी को रद्द कर देंगे। उन्होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। इस फैसले का मकसद कोई भी समझ सकता है। प्रधानमंत्री इसी हफ्ते आंध्र गए थे। नायडू के साथ विशाखापत्तनम में उन्होंने न केवल रोड शो किया बल्कि आंध्र के लिए दो लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं का एलान भी किया। अमरावती को सूबे की राजधानी बनाने के लिए केंद्र से 15 हजार करोड़ रुपए की मदद नायडू ने पहले ही ले ली थी। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी को खुश करने में कसर नहीं छोड़ी। फरमाया कि हमारे झंडे बेशक अलग-अलग हों पर हम हैं एक।

होगी विजयन की विदाई?

माकपा को अब केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के उत्तराधिकारी की तलाश है। अस्तित्व से जूझ रही पार्टी की केरल में इकलौती सरकार है। पार्टी जब 2016 में कांग्रेस को हराकर सूबे की सत्ता में आई थी तो सबसे बुजुर्ग नेता और मुख्यमंत्री रह चुके वीएस अच्युतानंदन की जगह पी विजयन को कमान सौंपी थी। इसमें असली भूमिका तबके पार्टी महासचिव प्रकाश करात की मानी गई थी। करात के समर्थन से मुख्यमंत्री बन विजयन ने पार्टी को 2021 में भी जीत दिलाई थी। सो ताज भी उन्हीं के सिर रहा। वे अब अस्सी वर्ष के हो चुके हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। करात जानते हैं कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में विजयन के खिलाफ जनता की नाराजगी पार्टी की ‘हैट्रिक’ में अड़ंगा डाल सकती है। माना जा रहा है कि पार्टी जल्द ही विजयन के उत्तराधिकारी को खोज लेगी और अगले चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करेगी। वैसे भी विजयन विवादों में घिरते रहे हैं। खासकर बेटी की भूमिका को लेकर विपक्ष उनके प्रति खासा आक्रामक है।