राजनीति में हलचल लगातार जारी है। कर्नाटक में डीके शिवकुमार की विधानसभा में आरएसएस प्रार्थना चर्चा का विषय बनी, जबकि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सबसे गरीब मुख्यमंत्री साबित हुई। बिहार में मृत मतदाताओं को लेकर कांग्रेस ने साक्षात्कार शुरू किए। यूपी में भाजपा के अंदरूनी मतभेद सामने आए और उमा भारती ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाग लेने की घोषणा कर दी।

डीके की ‘प्रार्थना’

कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार जब-तब विवादों में उलझ जाते हैं। वे सूबे के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। ऐसी महत्त्वाकांक्षा रखना कोई बुरी बात नहीं। कांग्रेस के संकट मोचक माने जाते हैं। लेकिन इसी गुरुवार को कर्नाटक विधानसभा के भीतर अचानक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना गुनगुनाने लगे। ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ से शुरू कर तीन पंक्तियां गा दीं। जबकि ऐसा करने का कोई अवसर नहीं था। सदन में चर्चा बंगलुरु में पिछले दिनों क्रिकेट स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ को लेकर चल रही थी। आरएसएस की प्रार्थना बोलने लगे तो भाजपाई बम-बम दिखे। उन्हें तो कांग्रेस की आलोचना का मौका दे दिया शिवकुमार ने। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री ने इस बार 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए आरएसएस की सराहना की थी। जिस पर कांग्रेस ने उनकी तीखी आलोचना की थी। खुद राहुल गांधी आरएसएस को अनेक मौकों पर सांप्रदायिक संगठन बता चुके हैं। प्रधानमंत्री के मुख से आरएसएस की प्रशंसा इस अंदाज में इसके पहले कभी नहीं सुनी किसी ने। इसका एक अर्थ यह भी निकाला गया कि प्रधानमंत्री नाराज चल रहे आरएसएस को खुश करना चाहते होंगे। बहरहाल अब शिवकुमार के कारण प

सबसे ‘गरीब’ मुख्यमंत्री

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी देश की सबसे ‘गरीब’ मुख्यमंत्री हैं। उनके पास न अपनी कोई अचल संपत्ति है और न लाखों-करोड़ों के गहने। यह जानकारी चुनाव के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एडीआर की रिपोर्ट से सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिकदेश के 31 मुख्यमंत्रियों में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जहां सबसे अमीर हैं वहीं ममता बनर्जी सबसे गरीब। चुनाव के समय उम्मीदवार को अपनी आर्थिक हैसियत का हलफनामे से खुलासा करना पड़ता है। एडीआर ने पिछले चुनाव के वक्त इन मुख्यमंत्रियों द्वारा घोषित की गई संपत्ति को ही अपने तुलनात्मक अध्ययन का आधार बनाया है। ममता बनर्जी ने पिछला उपचुनाव भवानीपुर सीट से लड़ा था। चंद्रबाबू नायडू ने अपनी कुल संपत्ति 931 करोड़ रुपए की घोषित की थी। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू 332 करोड़ की हैसियत के साथ दूसरे नंबर पर हैं।

‘मृतक’ से साक्षात्कार

बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर लड़ाई में विपक्ष डटा हुआ है। इस मुहिम को आम जनता को समझाने के लिए कांग्रेस सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है। बीते दिनों राहुल गांधी द्वारा मतदाता सूची पर आरोपों की झड़ी के बाद अब कांग्रेस पार्टी ऐसे चेहरों को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के सामने ला कर खड़ा कर रही है, जो सूची में मृत की श्रेणी में बताए गए हैं। इसके लिए छोटे-छोटे वीडियो जारी किए हैं। स्थानीय स्तर पर ऐसे मतदाताओं से बातचीत कर लोगों को गड़बड़ी समझाने की कोशिश कर रही है। बिहार के शंकर चौहान ऐसा ही एक नाम है जो मतदाता सूची में मृत श्रेणी में शामिल हैं। इनका पूरा साक्षात्कार कांग्रेस के सोशल मीडिया खाते से तेजी से घूम रहा है।

अदावती अंदाज

उत्तर प्रदेश में भाजपा के भीतर सब कुछ सहज नहीं चल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपने दोनों मुख्यमंत्रियों बृजेश पाठक और केशव मौर्य के साथ असहमतियां किसी से छिपी नहीं हैं। आलाकमान की शह न होती तो यह अदावत कब की खत्म हो चुकी होती। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के लिए आलाकमान ने योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली को ही जिम्मेवार माना था। लेकिन योगी ने संघ की मार्फत यह सफाई देकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि उम्मीदवारों के चयन में उनकी कोई सलाह नहीं ली गई। केंद्र के पसंदीदा ऊर्जा मंत्री अरविंद शर्मा भी मुख्यमंत्री को कतई नहीं भाते। कोरोना काल में आइएएस की नौकरी छोड़कर शर्मा गुजरात से अपने मूल प्रदेश की सियासत में कूदे थे। उम्मीद तो मुख्यमंत्री पद की लेकर आए थे पर योगी ने पांव जमने नहीं दिए। योगी के सिर पर आरएसएस का हाथ जो है। शर्मा ने पिछले दिनों अपनी पीड़ा यह कहकर व्यक्त की थी कि वे एक जेई तक का तबादला नहीं कर सकते। केंद्र के साथ रिश्ते मधुर होते तो उन्हें चार साल से कार्यवाहक डीजीपी से काम क्यों चलाना पड़ता। यही कहानी सूबे के मुख्य सचिव के मामले में सामने आई। मनोज कुमार का सेवा विस्तार चाहते थे योगी। केंद्र ने सहमति नहीं दी तो एसके गोयल को बनाना पड़ा मुख्य सचिव। पर गोयल भी एक पखवाड़े से पहले ही अवकाश पर चले गये। वह अवकाश पर क्यों गए, यह कारण किसी को नहीं पता।

साध्वी की तैयारी

उमा भारती सक्रिय राजनीति में लौट रही हैं। उन्होंने अगला लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। जब 2019 का चुनाव नहीं लड़ने का एलान किया था तो लगा था कि वे राजनीति से संन्यास ले लेंगी। मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रही और वहीं से लगातार पांच बार लोकसभा सदस्य रहने के बाद भी 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने उत्तर प्रदेश की झांसी सीट से लड़ा था और केंद्र में मंत्री बनी थी। 2012 में वे झांसी की ही चरखारी सीट से विधायक चुनी गई थी। भाजपा छोड़ने के बाद जब उन्होंने अपनी अलग भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई थी तो मध्यप्रदेश में शिवराज चौहान का दबदबा था।

नितिन गडकरी ने उन्हें भाजपा में वापस शामिल तो जरूर कर लिया पर चौहान ने मध्यप्रदेश में उनकी दाल नहीं गलने दी थी। सो उन्हें उत्तर प्रदेश का सहारा लेना पड़ा था। अब चौहान उनकी राह का रोड़ा नहीं बन पाएंगे। अभी तय नहीं है कि वे खुद उत्तर प्रदेश से लड़ना चाहेंगी या मध्यप्रदेश से। कल्याण सिंह के बाद वे देश में लोध जाति की सबसे कद्दावर नेता मानी जाती हैं। पिछले दिनों बरेली के आवला में अवंतीबाई लोधी की प्रतिमा का अनावरण हुआ तो उमा वहां मुख्य अतिथि थीं।

(संकलन: मृणाल वल्लरी)