राजस्‍थान में दो महिलाओं के काजी बनने के दावे के बाद मौलवी विरोध में खड़े हो गए हैं। सभी मौलवियों ने इन्‍हें काजी मानने से इनकार कर दिया है। साथ ही कहा कि ये दोनों पुरुष काजी की तरह धार्मिक कार्यक्रम नहीं करा सकती हैं। जयपुर की रहने वाली अफरोज बेगम और जहां आरा ने बताया कि उन्‍होंने मुंबई में दारुल उलूम निस्‍वां से दो साल की ट्रेनिंग पूरी की है। अब वे राजस्‍थान की पहली महिला काजी हैं। इसके तहत वे अब निकाह करा सकती हैं और तलाक पर फैसला दे सकती हैं।

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40 वर्षीय जहां आरा ने बताया कि,’ हम महिलाओं के साथ न्‍याय चाहती हैं। इसलिए हमने काजी बनने के लिए मुंबई में दाे साल का कोर्स किया। अल्‍लाह ने 1500 साल पहले मानवता के लिए जो अधिकार और समानताएं दी थीं वे अभी तक महिलाओं को नहीं मिली हैं। हमने निकाह, तलाक और मेहर का अध्‍ययन किया है। ये तीनों मामले मुस्लिम महिलाओं के लिए काफी अहम हैं।’ हालांकि राजस्‍थान के चीफ काजी खालिद उस्‍मानी इससे सहमत नहीं है। वे इस पूरे मामले को साजिश करार देते हैं। उन्‍होंने कहा कि,’ कुरान के अनुसार पुरुष की हाकिम महिला नहीं हो सकती। इसलिए एक महिला काजी नहीं बन सकती। इस्‍लामी इतिहास में ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता हो कि महिला काजी बन सकती है। अगर कोई काजी बन सकती थीं तो वह पैंगबर मुहम्‍मद की बेटी फातिमा थी। लेकिन वह भी काजी नहीं बनी।’

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हालांकि जहां आरा ने बताया कि इससे पहले भी महिलाएं काजी बन चुकी हैं। पटना की शबनम ने 700 से भी ज्‍यादा शादियां कराई थीं। अन्‍य काजी अफरोज बेगम कहती हैं कि,’ लोग हमारा विरोध कर रहे हैं। लेकिन कुरान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि महिला काजी नहीं बन सकती। हां, ऐसा लिखा है कि महिलाएं ईमाम नहीं बन सकती।’ इन महिलाओं की मदद भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन कर रहा है। आंदोलन की जयपुर प्रमुख निशत हुसैन के अनुसार, ‘ यह हमारे संगठन से 5-6 साल से जुड़ी हुई हैं। हमे ये काबिल लगी और इसलिए हमने इन्‍हें मुंबई ट्रेनिंग के लिए भेजा। जब भी महिला रूढि़वादी नियमों को तोड़ती है तो उसका विरोध होता ही है।’

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्‍य मौलाना खालिद फरंगी महली ने इस बारे में बताया कि, एक महिला निकाह में पुरुष काजी की मदद कर सकती हैं। लेकिन अकेले निकाह नहीं करा सकती। यह इस्‍लाम में नहीं हो सकता। इस्‍लाम में पुरुष को शासन से जुड़े मामले पुरुषों को दिए गए हैं। जबकि महिला काे घर की जिम्‍मेदारी दी गई है। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम वूमन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्‍यक्ष शाइस्‍ता खान ने कहा कि,’ पैगंबर मुहम्‍मद के समय भी काफी काबिल महिलाएं थीं। फिर भी उन्‍होंने काजी की भूमिका नहीं निभाई, तो मैं इस पर टिप्‍पणी नहीं कर सकती। हालांकि यह सच है पुरुष महिलाओं की परेशानियों को नहीं समझ सकते। इसलिए महिलाअों को दारुल कजा(इस्‍लामिक कोर्ट) में शामिल किया जाना चाहिए।’