जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा से कुछ किलोमीटर दूर बाघ देखे जाने की खबर ने सबका ध्यान खींचा है। सेना की रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) ने 6,000 फीट की ऊंचाई पर पीर पंजाल पहाड़ियों में बाघ की तस्वीर लेने का दावा किया है। हालांकि, इस घटना को लेकर सेना और जम्मू-कश्मीर वन विभाग के बीच विवाद पैदा हो गया है। वन विभाग का कहना है कि तस्वीर फोटोशॉप की गई है, क्योंकि महीनों तक किए गए सर्वेक्षण में बाघ की मौजूदगी का कोई सबूत नहीं मिला। वहीं, सेना ने तस्वीर को सही ठहराने से परहेज किया और मोबाइल डिवाइस की जांच की मांग को नकार दिया। इस विवाद ने बाघ की सच्चाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञ बोले- बाघ लंबी यात्रा कर सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक टिक नहीं सकते
इस पूरे मामले को नवंबर 2022 में उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व से गायब हुए एक बाघ के संदर्भ ने और भी रोचक बना दिया है। उस बाघ ने हरियाणा और हिमाचल के जंगलों से होकर लंबी दूरी तय की थी। क्या जम्मू के राजौरी में नियंत्रण रेखा के पास ‘देखा गया’ बाघ वही हो सकता है, जिसने दो वर्षों में उत्तर-पश्चिम दिशा में 500 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की हो? विशेषज्ञों का मानना है कि यह संभव है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ. बिवाश पांडव का कहना है कि बाघ इतनी लंबी यात्राएं कर सकते हैं, लेकिन जम्मू का इलाका उसके लंबे समय तक टिकने के लिए उपयुक्त नहीं है।
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राजौरी में देखे गए बाघ के संदर्भ में, स्थानीय वन विभाग ने मौके पर जांच की लेकिन बाघ की मौजूदगी का कोई ठोस प्रमाण, जैसे पैरों के निशान या मल, नहीं मिला। यहां तक कि चरवाहों ने भी किसी जानवर के नुकसान की सूचना नहीं दी।
वन्यजीव वार्डन अमित शर्मा ने कहा कि बाघ को आराम करते हुए देखने के बावजूद केवल एक ही तस्वीर ली गई, जो संदेह पैदा करती है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी घटना पर और सबूत मिलने चाहिए थे। शर्मा ने यह भी जोड़ा कि बिना किसी पुख्ता सबूत के इस मामले को अब बंद करने की अनुमति मांगी गई है।
सेना की ओर से इस विवाद पर टिप्पणी करते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सैनिकों के मोबाइल जांच के लिए नहीं दिए जा सकते। उनका कहना है कि फोटो से छेड़छाड़ का आरोप बेतुका है और विवाद को समाप्त करने के लिए सेना ने इस मामले को बंद मान लिया है।
जम्मू-कश्मीर का इलाका ऐतिहासिक रूप से बाघों का प्राकृतिक निवास नहीं रहा है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि वन्यजीवों का फैलाव नए क्षेत्रों में हो सकता है। हालांकि, इस घटना ने एक बार फिर देश में बाघों के संरक्षण और उनके रहने के लिए बेहतर जंगलों की जरूरत पर बहस छेड़ दी है। जंगलों के जुड़ाव को मजबूत करने और बाघों के लिए सुरक्षित गलियारे बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। सहारनपुर, कलेसर और सिंबलबारा जैसे जंगलों को अंतर-राज्यीय बाघ अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव भी वर्षों से लंबित है।
यह घटना बाघों के संरक्षण की दिशा में नए सवाल खड़े करती है और जंगलों को बचाने के महत्व को रेखांकित करती है। बाघ का सटीक सच चाहे जो भी हो, यह घटना भारत में वन्यजीवों के लिए बेहतर प्रबंधन और समर्पित प्रयास की जरूरत को स्पष्ट करती है।