कांग्रेस ने मंगलवार को देश की राजनीति को एक नया धुरंधर दे दिया। गांधी परिवार से निकलीं प्रियंका गांधी का चुनावी डेब्यू होने जा रहा है, 20 साल से सियासी रूप से सक्रिय चल रहीं कांग्रेस नेता अब वायनाड सीट से उपचुनाव लड़ने वाली है, वही सीट जो राहुल गांधी ने बड़े अंतर से हाल ही में जीती थी। प्रियंका का चुनावी डेब्यू अगर बड़ी खबर है तो राहुल का यूपी की रायबरेली सीट को बचाए रखना भी अहम है। एक ने उत्तर भारत पर निगाह टिकाई तो दूसरे ने दक्षिण में मोर्चा संभाल लिया है।
कांग्रेस के अच्छे दिन वापस!
इसे कांग्रेस का एक सोचा-समझा बैलेंसिंग एक्ट कहा जा सकता है जहां पर मजबूत चल रहे दक्षिण गढ़ को सुरक्षित रखने की कवायद होगी और पस्त हो चुके उत्तर में खुद को फिर जिंदा करने की कोशिश। अब किले को बचाने की चनौती प्रियंका के जिम्मे आई है तो नए किला बनाने का मौका राहुल गांधी को दिया गया है। अगर दोनों अपने प्रयासों में सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस के पुराने दिन वापस आ सकते हैं, वही दिन जब उत्तर में भी हाथ ही मजबूत दिखाई पड़ता था।
बीजेपी की सबसे बड़ी चूक
अब कांग्रेस की यह रणनीति कहीं ना कहीं एक सबक दिखाई पड़ती है। यह सबक उसने हाल के लोकसभा चुनावों से लिया है। बड़ी बात यह है कि सबक अपनी नहीं बल्कि अपने विरोधी बीजेपी की गलती से लिया है। असल में अगर इस बार के लोकसभा चुनाव को ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि बीजेपी ने उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत पर फोकस किया, वो इलाका जहां उसकी दाल कई सालों से गल नहीं पा रही थी। आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि 2024 के रण में बीजेपी ने अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया था।
साउथ पर फोकस, उत्तर फोकस से आउट
वो बदलाव खुद को दक्षिण की पार्टी बनाने का था। बीजेपी सोचकर चल रही थी कि उत्तर भारत में उसकी स्थिति जरूरत से भी ज्यादा मजबूत है, वहां उसे कोई खतरा नहीं रहने वाला है, ऐसे में बोनस के लालच में उसने सारी मेहनत दक्षिण के राज्यों में की। वहां भी तमिलनाडु में तो पीएम मोदी का खासा ध्यान देखने को मिला, कई रैलियां वहां की गईं। लेकिन नतीजे बताते हैं कि तमिलनाडु में खाता नहीं खुला, केरल में एक सीट मिली, कर्नाटक में कुछ सीटों का नुकसान हुआ। राहत सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से आई जहां पार्टी ने अपना कुछ विस्तार किया।
दांव लगाया, लेकिन बीजेपी को ज्यादा नहीं मिला
लेकिन बीजेपी का यह विस्तार उतना नहीं था जितनी वो उम्मीद लगाए बैठी थी। 131 सीटों में से उसे सिर्फ 29 पर जीत हासिल हो पाई। इसके ऊपर उससे ज्यादा नुकसान पार्टी ने खुद को उत्तर प्रदेश में दिया जहां 30 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ, राजस्थान में भी पार्टी का आंकड़ा 20 सीटों से भी नीचे चला गया, मोदी के गढ़ गुजरात में भी एक सीट कांग्रेस के खाते में गई। हरियाणा में भी बराबार की स्थिति बन गई जहां दोनों कांग्रेस और बीजेपी को 5-5 सीटों से संतोष करना पड़ा।
वाराणसी में भी दिखा बीजेपी की गलती का असर
ऐसा परिणाम बीजेपी ने अपने सपने में भी नहीं सोचा था। जिन राज्यों में क्लीन स्वीप कर 300 से ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया जा रहा था, उन्हीं राज्यों ने इस बार बीजेपी को धोखा दिया। वाराणसी जैसी सुरक्षित सीट पर भी पीएम मोदी को इस बार छोटी जीत हासिल हुई, बात 10 लाख वोटों की हो रही थी, सिर्फ एक लाख से कुछ ज्यादा मतों से ही जीत हासिल कर पाए। यह साफ बताता है कि उत्तर भारत से बीजेपी का जैसे ही ध्यान हटा, उसे उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, कीमत बहुमत अपने दम पर हासिल ना करने की, कीमत फिर गठबंधन की डोर में बंधने की।
कांग्रेस ने क्या सबक सीख लिया?
अब कांग्रेस ने उसी बीजेपी की गलती से सबक सीख लिया है। वो चाहती तो सिर्फ उत्तर भारत पर ध्यान केंद्रित कर सकती थी, सिर्फ हिंदी हार्टलैंड में खुद को मजबूत कर देश की राजनीति पर फिर काबिज हो जाती। लेकिन नहीं, उसने उत्तर के साथ दक्षिण को भी साधने का प्लान बनाया है। गांधी परिवार के ही दो सबसे बड़े चेहरे उत्तर से लेकर दक्षिण तक कांग्रेस की रणनीति को धार देने का काम करने वाले हैं। वहां भी उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाला है जहां पर कांग्रेस अपने खोए जनाधार को हासिल करने के लिए खूब पसीना बहा रही है।
यूपी में मोदी से ज्यादा लोकप्रिय हुए राहुल!
पार्टी ने इस बार सभी को हैरान करते हुए 6 सीटें यूपी में जीती हैं। उसका वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। पता तो यह भी चला है कि पार्टी को इस बार दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम समाज का अच्छा खासा वोट मिला है। यह बताने के लिए काफी है कि यूपी में कांग्रेस की वापसी का रास्ता खुल तो गया है। सीएसडीएस लोकनीति का पोस्ट पोल सर्वे तो यह भी बताता है कि पहली बार यूपी में पीएम पद की पहली पसंद राहुल गांधी बने हैं, वे पीएम मोदी से कुछ आगे दिखाई पड़े हैं। यह परिवर्तन ही कांग्रेस को आशा की किरण दे रहा है और राहुल गांधी को आगे करने का मन भी इसी वजह से बना है।
हिंदी हार्टलैंड संभालेंगे राहुल, दक्षिण बचाएंगी प्रियंका
अगर हिंदी हार्टलैंड में राहुल गांधी ने अपने प्रचार, अपने वोटर कनेक्ट से कमाल कर दिया तो बाजी पूरी तरह पलट जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर के बाद सबसे ज्यादा सीटें दक्षिण से निकलती हैं जहां कांग्रेस पहले से मजबूत है। उस मजबूत किले की सुरक्षा भी अब प्रियंका गांधी करने वाली हैं, ऐसे में दोनों जगह मजबूत नेतृत्व, लोकप्रिय चेहरे साथ रहने वाले हैं। वैसे भी समझने वाली बात यह भी है कि बीजेपी कितना भी परिवारवाद के आरोप लगा लगे, जनता अभी भी राहुल और प्रियंका को ही सबसे ज्यादा स्वीकार करती है। हाल के चुनाव परिणामों ने इस बात की पुष्टि फिर कर दी है।