पंजाब में मची रार का असर कांग्रेस आलाकमान पर साफ दिखा। राहुल गांधी राहुल गांधी कांग्रेस मुख्यालय में आए। कन्हैया, जिग्नेश के साथ खड़े भी हुए। अलबत्ता दोनों की प्रेस कॉन्फ्रेंस से दूरी बनाई। उनके रवैये से साफ था कि नवजोत सिद्धू के इस्तीफे पर बोलना नहीं चाहते थे। फिलहाल वह कोई ऐसी टिप्पणी नहीं करना चाहते जिससे स्थिति और बिगड़े। हालांकि, मामले से जुड़े जानकारो का कहना है कि सिद्धू ने जो किया उससे हाईकमान खुद भौचक्का रह गया है।

खास बात है कि कन्हैया और जिग्नेश के पार्टी की सदस्यता गृहण करने से थोड़ा पहले ही नवजोत सिद्धू ने इस्तीफा दिया था। मीडिया की नजरें राहुल गांधी पर टिकी थीं। राहुल प्रेस वार्ता में आते तो उनसे इस पर सवाल जरूर किया जाता।

सूत्रों का कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद कांग्रेस पूरी तरह से सिद्धू के ईर्द गिर्द खड़ी थी, लेकिन पीपीसीसी चीफ ने जिस तरह से इस्तीफा दिया उससे आलाकमान का चौंकना लाजिमी है। माना जा रहा है कि सिद्धू के कहने पर ही अमरिंदर सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया गया। लेकिन सिद्धू ने जो कदम उठाया है उससे चुनाव से पहले कांग्रेस को करारा झटका लगा। उसके पास फिलहाल कहने को कुछ नहीं है। एक कद्दावर नेता सीएम की कुर्सी को छोड़ चुका है तो दूसरा पार्टी को और संकट में डाल गया।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती के अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में की सदस्यता ग्रहण की। इस दौरान कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने भी मौजूद रहे।

वेणुगोपाल ने कहा कि कन्हैया कुमार देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। उनके शामिल होने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। जिग्नेश के भी शामिल होने से पार्टी को मजबूती मिलेगी। भगत चरण दास ने कहा कि कन्हैया और जिग्नेश ने भगत सिंह की जयंती पर ऐतिहासिक निर्णय लिया है। दोनों ने कमजोर और बेसहारा लोगों की आवाज उठाई है। राहुल जी के साथ इन दोनों नेताओं का विचारधारा का मेल भी है। ये दोनों नेता कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण योगदान करेंगे।