आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा से निलंबन के मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राघव चड्ढा पर आरोप है कि उन्होंने पांच सांसदों की सहमति के बिना उनका नाम सेलेक्ट कमेटी के लिए प्रस्तावित किया था। उन्होंने इसके लिए साइन किए थे। अभी तक ये मामला संसद की विशेषाधिकार कमेटी के पास है।

वहीं राघव चड्ढा ने अपने निलंबन को गलत बताया है। अगस्त में ही राघव चड्ढा को राज्यसभा से निलंबित किया गया था। लेकिन कोई राहत न मिलती देख अब आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।

बड़े बंगले के लिए हाई कोर्ट पहुंचे राघव चड्ढा

वहीं अपने बंगले के मामले में राघव चड्ढा ने हाईकोर्ट का रुख किया है। दरअसल ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद राघव चड्ढा नाखुश दिखे और उन्होंने बड़े बंगले के लिए हाई कोर्ट का रुख किया है। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि राघव चड्ढा के पास पंडारा रोड स्थित सरकारी टाइट 7 बंगले पर कब्जा जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है।

यह बांग्ला लुटियंस दिल्ली में आता है। यह बांग्ला उन नेताओं को दिया जाता है जो मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्यपाल के रूप में कार्य कर रहे हैं। ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद राघव चड्ढा हाई कोर्ट पहुंचे हैं। 11 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई होगी।

ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “राघव चड्ढा यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें राज्यसभा सांसद के रूप में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान आवास पर कब्जा जारी रखने का अधिकार है। सरकारी आवास का आवंटन वादी को दिया गया विशेषाधिकार है, और जब यह रद्द हो जाता है तो उसे पर संबंधित व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं रह जाता।”

राघव चड्ढा ने ट्रायल कोर्ट में दलील दी थी कि एक बार किसी सांसद को आवास यदि आवंटित हो जाता है तो उनके पूरे कार्यकाल के दौरान किसी भी परिस्थिति में इसे रद्द नहीं किया जा सकता। चड्ढा ने यह भी कहा था कि सचिवालय जल्दबाजी में काम कर रहा है और कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है।