कनाडा में दो सप्ताह के भीतर दो भारतीयों की हत्या ने सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है। पिछले हफ्ते टोरंटो में एक भारतीय महिला की उसके आवास पर हत्या कर दी गई। दूसरी घटना में टोरंटो विश्वविद्यालय के स्कारबोरो परिसर के पास बीस वर्षीय एक भारतीय शोध छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

इन वारदात के पीछे क्या कारण थे और इसे किसने अंजाम दिया, इसकी जांच पुलिस कर रही है, लेकिन सवाल है कि आखिर कनाडा में भारतीय मूल के लोगों पर हमले क्यों हो रहे हैं? क्या यह नस्लीय नफरत से उपजी कुंठा और आक्रामकता का नतीजा है या फिर किसी सोची-समझी साजिश की कड़ियां, जो लक्षित तरीके से हमलों का जाल बुना जा रहा है!

यही नहीं, कनाडा के एक अस्पताल में हाल में इलाज का इंतजार कर रहे भारतीय मूल के एक व्यक्ति की मौत हो गई। बताया जाता है कि इस व्यक्ति को आठ घंटे से अधिक समय तक इंतजार करने के बाद भी उपचार नहीं मिला और हृदयघात से उसकी जान चली गई। यह घटना न केवल चिकित्सकों की लापरवाही दर्शाती है, बल्कि भारतीय मूल के लोगों के साथ भेदभाव की ओर भी इशारा करती है।

कनाडा में भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों की संख्या अच्छी-खासी

गौरतलब है कि कनाडा में भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों की संख्या अच्छी-खासी है। हर साल बड़े पैमाने पर भारतीय युवा वहां उच्च शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं। नीति आयोग की हाल की एक रपट के मुताबिक, उच्च शिक्षा हासिल करने के मामले में भारतीय विद्यार्थी के लिए कनाडा पहली पसंद है। इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और जर्मनी का स्थान आता है।

पिछले वर्ष कनाडा में सवा चार लाख भारतीय विद्यार्थी अध्ययनरत थे। इसके अलावा कनाडा की नागरिकता लेकर वहां बसे भारतीयों की संख्या पंद्रह लाख से अधिक है। ऐसे में सवाल है कि जो भारतीय पढ़ाई या नौकरी के लिए कनाडा जाते हैं, या जो वहां के स्थायी नागरिक बन गए हैं, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां की सरकार और सुरक्षा एजंसियों की नहीं, तो और किसकी है?

कनाडा में भारतीयों पर हमले की खबरें आए दिन आती रहती हैं

हाल के वर्षों में कनाडा में भारतीयों पर हमले की खबरें आए दिन आती रहती हैं, जिससे वहां की कानून व्यवस्था पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह बात छिपी नहीं है कि कनाडा में भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों तथा उनके धार्मिक प्रतिष्ठानों पर लक्षित तरीके से हमले की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है।

टोरंटो विश्वविद्यालय के शोधार्थी छात्र और उससे पहले एक भारतीय महिला की हत्या को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, टोरंटो के दक्षिण-पूर्वी एडमोंटन स्थित अस्पताल में भारतीय मूल के व्यक्ति को आठ घंटे तक इलाज मुहैया न कराने की घटना प्रथम दृष्टया नस्लीय भेदभाव का मामला ही प्रतीत होता है।

इस तरह की घटनाओं को लेकर समान रूप से यह बात भी सामने आई है कि वहां की सुरक्षा एजंसियां कार्रवाई में उतनी तत्पर नजर नहीं आती, जितनी उनसे अपेक्षा की जाती है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जांच अधिकारी जानबूझकर लापरवाही बरतने का प्रयास करते हैं।

उचित कार्रवाई का दबाव बनाया जाए

ऐसे में भारत सरकार को चाहिए कि इस तरह के मामलों को कूटनीतिक स्तर पर प्रभावी तरीके से उठाया जाए और उचित कार्रवाई का दबाव बनाया जाए। वहीं, कनाडा की सरकार को भी यह बात समझनी होगी कि द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के प्रयास वहां रहे भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित किए बिना सिरे नहीं चढ़ पाएंगे।

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