2018 में, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गनाइजेशन ने जानकारी दी कि भारतीय बाजार में मौजूद कुल जेनेरिक दवाओं में लगभग 4.5 फीसद दवाएं घटिया थीं। गाम्बिया में हाल में 69 बच्चों की मौत के बाद भारतीय दवा कंपनियां फिर से सुर्खियों में आ गई हैं। कई जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को भारत में निर्मित खांसी की दवा दी गई थी। पीने के बाद ही बच्चों की हालत बिगड़ी। इस दवा का निर्माण भारतीय कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने किया था और चार अलग-अलग ब्रांड के तहत इसे अफ्रीकी देश में निर्यात किया गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाई गर्इं चार दवाओं में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से ‘अस्वीकार्य स्तर तक’ ज्यादा पाया गया, जो घातक हुआ।डब्ल्यूएचओ ने कहा कि ये उत्पाद दूषित थे और इन्हें इस्तेमाल करने की वजह से पेट में दर्द, उल्टी, दस्त, पेशाब में परेशानी, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव जैसे वे लक्षण दिखने शुरू हुए जिनसे मौत हो सकती है।
इस पूरे मसले पर मेडन फार्मास्युटिकल्स ने कहा कि वह उत्पादन की प्रक्रिया में स्वास्थ्य अधिकारियों के नियमों की प्रक्रिया का सही तरीके से पालन कर रहा। इस मामले में भारत सरकार ने जांच के लिए विशेष पैनल गठित किया है। फिलहाल, पैनल ने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। हरियाणा सरकार ने भी कार्रवाई की है। इस घटना के बाद से भारतीय दवा उद्योग को लेकर नए सिरे से सवाल उठने लगे हैं। भारत टीकों के निर्माण के मामले में दुनिया का अग्रणी देश है और जेनेरिक दवाओं का भी बड़ा उत्पादक है। जेनेरिक दवाएं कीमत के लिहाज से सस्ती होती हैं।
वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की 20 फीसद आपूर्ति भारत करता है। क्रेडिट रेटिंग एजंसी केयर रेटिंग्स का अनुमान है कि बढ़ती निर्यात हिस्सेदारी के साथ भारत का दवा उद्योग बढ़ता रहेगा और अगले साल तक यह उद्योग लगभग 60.9 अरब डालर मूल्य का हो जाएगा। भारत निर्मित कफ सिरप से जुड़ी गाम्बिया की घटना इस तरह की पहली घटना नहीं है।
दो साल पहले, डिजिटल विजन नामक कंपनी की बनाई दवा के सेवन से जम्मू और कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी। इस घटना की जांच में पाया गया कि दवा में डाइथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा काफी ज्यादा थी। गाम्बिया में हुई मौत के बाद डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी पाया गया कि वहां भेजे गए कफ सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से ‘अस्वीकार्य स्तर तक’ ज्यादा थी।
जम्मू-कश्मीर की घटना के बाद भारत सरकार ने इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी और उन उत्पादों के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया जिनमें ये दो विषैले पदार्थ डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल शामिल नहीं किए जाते।कुछ साल पहले (2016 में), दो भारतीय दवा कंपनियों पर डायबिटीज के नकली दवाओं के निर्यात का आरोप लगा था।
भारत के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने फार्मास्यूटिकल प्राडक्ट आफ इंडिया लिमिटेड और वेनवरी की जांच की। इसमें पाया गया कि इन दोनों के बीच निर्माण और निर्यात को लेकर समझौता था। दोनों कंपनियां डायबिटीज की दवा मेटफार्मिन हाइड्रोक्लोराइड को अवैध रूप से बेच रही थीं और उन्हें बांग्लादेश, ब्राजील, मेक्सिको और पाकिस्तान को निर्यात कर रही थीं।
यह अवैध गतिविधि कई वर्षों से चल रही थी।
वर्ष 2013 में रैनबैक्सी लैबोरेटरीज नामक कंपनी को मिलावटी दवाओं के निर्माण और वितरण के लिए दोषी ठहराया गया था। अमेरिकी न्याय विभाग के साथ एक समझौते के तहत कंपनी 50 करोड़ डालर की जुर्माना राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुई।
घटिया दवाएं
कोरोना विषाणु से जूझने के दौरान काफी संख्या में रेमडेसिविर की नकली शीशियां ज्यादा कीमतों पर बाजार में बेचने की कई खबरें सामने आई थीं। यूएसटीआर की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय बाजार में बिकने वाले सभी दवा उत्पादों में से 20 फीसद नकली हैं। वर्ष 2007 और 2020 के बीच, भारत के मात्र तीन राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए नमूने में से 7500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गईं।
2018 में, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आॅर्गनाइजेशन ने जानकारी दी कि भारतीय बाजार में मौजूद कुल जेनेरिक दवाओं में 4.5 फीसद दवाएं घटिया थीं। इसके अलावा, भारत में मौजूद 12,000 से अधिक विनिर्माण इकाइयों में से महज एक चौथाई ही डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक कार्य करती हैं।