अमेरिका में रहने वाले सिख और प्रवासी वहां की सरकार से बेहद नाराज हैं। नाराजगी की वजह यह है कि तीन दशक से भी ज्यादा वक्त तक इस मुल्क में रहने वालीं बुजुर्ग हरजीत कौर को अमेरिका ने भारत डिपोर्ट कर दिया है। भारत के प्रवासी समुदाय ने इस कार्रवाई को बेहद क्रूर और गैर जरूरी बताया है। 73 साल की हरजीत कौर 23 सितंबर को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरीं।

हरजीत कौर के वकील दीपक अहलूवालिया ने इंस्टाग्राम पोस्ट में इस बारे में बताया। दिया। अमेरिका प्रवासन एवं कस्टम विभाग (ICE) ने हरजीत कौर को रविवार रात को अचानक बेकर्सफील्ड से लॉस एंजिल्स ले गया और एक चार्टर्ड फ्लाइट में बैठाकर नई दिल्ली भेज दिया।

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बेड़ियों में जकड़ा, कंक्रीट की कोठरी में रखा

अहलूवालिया ने दावा किया कि इस सफर के दौरान हरजीत कौर के साथ बेहद अमानवीय व्यवहार किया गया। उन्हें बेड़ियों में जकड़ा गया, हवालात में रखा गया और अपने परिवार को गुड बाय कहने और अपना सामान ले जाने की भी इजाजत नहीं दी गई।

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हरजीत कौर के परिवार ने अमेरिकी अफसरों से अनुरोध किया था कि उन्हें कॉमर्शियल फ्लाइट से भेजा जाए और कुछ घंटे परिवार से मिलने की इजाजत दी जाए लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई।

सिख कोएलिशन ने कहा है कि इस घटना को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर ऐसी बुजुर्ग महिला के साथ जो हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से जूझ रही है।

हरजीत कौर को 8 सितंबर को उस वक्त हिरासत में ले लिया गया, जब वह सेन फ्रांसिस्को स्थित ICE कार्यालय में चेक-इन के लिए गई थीं लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें फ्रेस्नो व बेकर्सफ़ील्ड के डिटेंशन सेंटर में रखा गया।

1992 में अमेरिका गई थीं हरजीत कौर

हरजीत कौर 1992 में अमेरिका गई थीं। वहां उन्होंने साड़ी की दुकान में सिलाई का काम किया, सरकार को टैक्स दिया और गुरुद्वारों में सेवा की। 2005 में उनका डिपोर्टेशन आर्डर जारी हुआ था लेकिन उन्होंने हमेशा ICE प्रोटोकॉल का पालन किया और वर्क परमिट को रिन्यू भी कराया। तब वह भारतीय वाणिज्य दूतावास से अपनी यात्रा के डॉक्यूमेंट का इंतजार कर रही थीं।

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‘हरजीत कौर यहीं की हैं’

हरजीत कौर के साफ-सुथरे रिकॉर्ड के बावजूद उन्हें इस तरीके से डिपोर्ट किए जाने के खिलाफ बड़ी संख्या में लोग कैलिफोर्निया में सड़क पर उतर आए। वहां लोगों ने ‘हमारी दादी को मत छुओ’ और ‘हरजीत कौर यहीं की हैं’ के नारे लगाए।

ICE ने अपनी इस कार्रवाई का बचाव किया है। ICE ने BBC को बताया, “कौर ने नौवीं सर्किट कोर्ट ऑफ़ अपील्स तक कई अपील दायर की और हर बार हार गईं। अब जब उन्होंने सभी कानूनी विकल्प आजमा लिए हैं तो ICE अमेरिकी कानून और जज के आदेशों को लागू कर रहा है; वह अब अमेरिकी टैक्स का और पैसा बर्बाद नहीं करेंगी।”

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह मामला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान डिपोर्टेशन को लेकर बनाई गई नीतियों को उजागर करता है।

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