पुणे का पोर्श दुर्घटना मामला एक बार फिर चर्चा में आया है। स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने मामले में छह आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध किया है। जिसमें पोर्श गाड़ी चला रहे नाबालिग के माता-पिता, ससून अस्पताल के दो डॉक्टर और दो और लोग शामिल हैं। जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर शिशिर हीरे ने मामले की सुनवाई कर रही शहर की अदालत के सामने तर्क दिया कि आरोपियों ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ करके न्यायिक प्रणाली के साथ खिलवाड़ किया है।
स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने क्या कहा?
स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर शिशिर हीरे ने अदालत को यह भी बताया कि जब एयरबैग सक्रिय हुए तो पोर्श कार के स्पीडोमीटर पर रीडिंग 110 किलोमीटर प्रति घंटा थी, जिसका मतलब है कि दुर्घटना इससे तेज गति से हुई होगी।
19 मई को सुबह 2.30 बजे के आसपास पुणे के कल्याणी नगर जंक्शन पर आईटी इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा को कथित रूप से नशे में धुत 17 वर्षीय एक लड़के द्वारा चलाई जा रही तेज रफ्तार पोर्श ने टक्कर मार दी थी।
काफी चर्चित रहा है यह मामला
पुणे का पोर्श दुर्घटना मामला काफी चर्चा में रहा है। इसकी एक खास वजह नाबालिग आरोपी को दी गई सजा थी। जिसमें उसे सिर्फ एक निबंध लिखने को कहा गया था। बाद में काफी आलोचना हुई थी। इस मामले में नाबालिग के पिता, माता, दादा समेत दो डॉक्टर भी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस केस में ब्लड सैंपल बदलने का मामला भी सामने आया था जिसमें ससुन अस्पताल के डॉक्टर भी शामिल थे। हालांकि नाबालिग की मां ने कहा था कि उन्हे यह सलाह गिरफ्तार डॉक्टर ने ही दी थी। पुणे सिटी पुलिस ने 26 जुलाई को लड़के के 50 वर्षीय पिता और 49 वर्षीय मां सहित सात आरोपियों के खिलाफ 900 से अधिक पृष्ठों की प्रारंभिक चार्जशीट दायर की थी।
अन्य आरोपियों में सरकारी ससून अस्पताल के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के तत्कालीन प्रमुख डॉ. अजय टावरे, उस समय के कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) डॉ. श्रीहरि हलनोर, मुर्दाघर के कर्मचारी अतुल घाटकांबले, अश्पक बाशा मकानदार और अमर गायकवाड़ शामिल हैं।