Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस के एक कांस्टेबल से जुड़े 20 साल पुराने मामले पर फैसला सुनाया है, जिसे सैनिकों के वेतन के लिए रखी गई नकदी चोरी करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि जब कोई रक्षक चोर बन जाता है, तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फोर्स के सभी सदस्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे बेशर्म आचरण के लिए जीरो टालरेंस है और ऐसे व्यक्ति को सेवा में बने रहने का अधिकार नहीं है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा, ‘प्रतिवादी को अपने कर्तव्यों का पालन करना और कैश बॉक्स की सुरक्षा पूरी निष्ठा, ईमानदारी, प्रतिबद्धता और अनुशासन के साथ करनी थी। हालांकि, अपने वरिष्ठों द्वारा उस पर जताए गए विश्वास और भरोसे के बिल्कुल उलट उसने कैश बॉक्स को तोड़ दिया। इसलिए, उसने उस नकदी राशि की लूट की है, जिसकी सुरक्षा के लिए उसे रखा गया था। पुलिस फोर्स के सभी सदस्यों को ध्यान देना चाहिए कि इस तरह के बेशर्मी भरे कदाचार के लिए जीरो टॉलरेंस है, जहां कैश बॉक्स का संरक्षक ही उसका लुटेरा बन गया। प्रतिवादी के खिलाफ साबित हुआ कदाचार इतना गंभीर और चिंताजनक है कि सेवा से बर्खास्तगी से कम कोई भी सजा होगी।’
क्या था पूरा मामला?
अब पूरे मामले पर गौर किया जाए तो जागेश्वर सिंह 30 नवंबर 1990 को आईटीबीपी में शामिल हुए थे। 2005 की रात को वह संतरी के तौर पर ड्यूटी कर रहे थे और लाखों रुपए से भरे कैश बॉक्स की रखवाली कर रहा थे। इसे कर्मियों को बांटा जाना था। कथित तौर पर उसने कैश बॉक्स का ताला तोड़ दिया, नकदी ले ली और अपनी पोस्ट से भाग गया।
कमांडर ने बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को इसकी जानकारी दी और 6 जुलाई 2005 को सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ने उन्हें दोषी पाया। गिरफ्तारी के बाद सिंह ने अपना अपराध मान लिया। 14 नवंबर 2005 को उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में उसने अपनी बर्खास्तगी को हाई कोर्ट में चुनौती दी और दावा किया कि उसने दबाव में आकर यह बात कबूल की। हाई कोर्ट ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया, लेकिन आईटीबीपी को बर्खास्तगी पर पुनर्विचार करने को कहा। अब सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए इसे खारिज कर दिया है। राज्यपाल के किसी बिल को रिजर्व रखने पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी