शुरू में ही स्पष्ट कर दूं कि नरेंद्र मोदी की इस अमेरिका यात्रा से मुझे बहुत खुशी हुई है। इसलिए कि अच्छा लगा उनको संयुक्त राष्ट्र के बाग में योग करते देख कर। अच्छा लगा उनका धूमधाम से वाशिंगटन में स्वागत देख कर और बहुत अच्छा लगा यह देख कर कि अब हमारी सेना को अति-आधुनिक हथियार मिलने की संभावना है। मेरे पिता सेना में ब्रिगेडियर थे, तो अमेरिकी हथियारों का मैं निजी तौर पर खास स्वागत करती हूं।
मेरा बचपन गुजरा था भारतीय सेना की छावनियों में, जहां हमेशा शिकायतें सुनने को मिलती थीं सोवियत संघ के रद्दी हथियारों की। यूक्रेन पर हमला करके व्लादिमीर पुतिन ने सारी दुनिया को दिखा दिया है कि रूस घटिया किस्म के हथियार बनाता है। तो, हमको बहुत खुश होना चाहिए कि आखिरकार हमको एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जिसकी आंखें खुल गई हैं और अमेरिका से आधुनिक हथियार खरीदने की कोशिश कर रहे हैं।
इंदिरा गांधी के जमाने में सोवियत संघ को माना गया था दोस्त
निजी तौर पर अमेरिका से बढ़ती दोस्ती को देख कर इसलिए भी खुशी होती है, क्योंकि मेरी आधी उम्र बीती उस दौर में जब इंदिरा गांधी के कहने पर हमने मान लिया था कि हमारा एक ही असली विदेशी दोस्त है और वह है सोवियत संघ। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू शायद एक बार अपने जीवन में सोवियत संघ गए थे और इतने प्रभावित हुए उस देश को देख कर कि भारत को बिल्कुल वैसा देश बनाने में लग गए। इतने सफल हुए पंडितजी कि मैं जब पहली और आखिरी बार सोवियत संघ गई तो साफ दिखा कि उस देश की नकल करके भारत ने कितनी बड़ी गलती की थी।
बात 1990 की है, जब दुनिया जानने लगी थी कि जिस देश को हम महाशक्ति मानते थे, अंदर से बिल्कुल खोखला है। मास्को अब शानदार महानगर बन गया है, जिसमें खूबसूरत इमारतें, दुकानें और होटल हैं, लेकिन 1990 में हम जिस होटल रोसिया में ठहरे थे, एक जेल जैसा दिखता था। सोवियत संघ के राजनेताओं ने अपना सारा पैसा लगा दिया था हथियार बनाने पर और अंतरिक्ष में पहुंचने पर, सो आम सोवियत नागरिक के जीवन में बुनियादी चीजों का सख्त अभाव था। बिल्कुल वही हाल उस समय भारत का था, लेकिन फर्क यह जरूर था कि हमारे देश में लोकतंत्र था, हमारे लोगों को बोलने की आजादी थी, जो उस समय सोवियत संघ में बिल्कुल नहीं थी।
मोदी ठीक कहते हैं कि अमेरिका और भारत के बीच दोस्ती स्वाभाविक है, इसलिए कि दोनों देशों में लोकतंत्र है। बात आ ही गई है लोकतंत्र की, तो यह कहना भी जरूरी है कि अब अपने प्रिय प्रधानमंत्री को लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की इतनी छूट नहीं होगी, क्योंकि हमारे नए दोस्त की नजरें हमारे ऊपर टिकी रहेंगी। मोदी जब न्यूयार्क में थे, तो उनके विरोध करने के लिए बड़े-बड़े ट्रक घूम रहे थे, जिन पर उन पत्रकारों और मानव अधिकार वालों की तस्वीरें थीं, जो सिर्फ इसलिए महीनों से जेलों में बंद हैं, क्योंकि उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों का विरोध किया है।
अमरीका का संविधान बोलने, लिखने, विरोध करने की देता है पूरी इजाजत
अमेरिका में हिसाब उल्टा है। उस देश के संविधान का पहला संशोधन बोलने, लिखने, विरोध करने की पूरी इजाजत देता है। यहां तक कि जेल में वे लोग होते हैं जो इस ‘फर्स्ट अमेंडमेंट’ का उल्लंघन करने की कोशिश करते हैं। भारत में देश के पहले प्रधानमंत्री ने संविधान में पहला संशोधन कराया था बोलने की आजादी को रोकने के लिए। इस संशोधन का खूब लाभ उठाया है मोदी ने। जेएनयू छात्र उमर खालिद को जेल में एक हजार दिन से ज्यादा हो गए हैं, बिना उन पर कोई आरोप अदालत में साबित किए। कश्मीर घाटी में तो यह हाल है कि लोग बंद होने के बाद ऐसे गायब हो जाते हैं कि उनके रिश्तेदार भी नहीं जानते हैं कि वे कहां गए हैं।
प्रधानमंत्री बड़े गर्व से कहते हैं कि भारत ने ही लोकतंत्र को जन्म दिया है। इस बात को अगर वे मनवाना चाहते हैं दुनियावालों से, तो उनको लोकतांत्रिक सिद्धांतों को सुरक्षित रखने का काम करना होगा, न कि उनका उल्लंघन। जब उनका कोई विरोधी जेल में बंद कर दिया जाता है तो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। जब किसी छोटे-मोटे डिजिटल अखबार पर छापे मारे जाते हैं तो इस बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन होता है। जब मोदी के मुख्यमंत्री तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए कानून बनाते हैं, तो लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। जब भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकारें गोरक्षकों को खुली छूट देती हैं मुसलमान किसानों, पशु पालकों की खुलेआम हत्याएं करने की, तो लोकतंत्र के एक और उसूल का उल्लंघन होता है और वह है धर्म-मजहब की आजादी कायम रखना।
देश के अंदर अगर आम भारतीयों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता इतनी है कि उनको विश्व का सबसे लोकप्रिय राजनेता माना जाता है, तो उसका एक अहम कारण यह है कि अपने देशवासियों को अच्छा लगता है जब प्रधानमंत्री का स्वागत इतने शान से होता है, जैसे अमेरिका में हुआ है। इससे उनको लगता है कि प्रधानमंत्री ने देश की शान बढ़ाई है। यह शान और भी होती अगर मोदी पर लोकतंत्र को कमजोर करने का कलंक न लगा होता। अमेरिका में उन्होंने पिछले नौ सालों में पहली बार पत्रकार सम्मेलन में जो बाइडेन के साथ शामिल होने का फैसला किया।
यह बहुत अच्छी बात है। और भी अच्छी बात होगी अगर वे अब घर लौटने के बाद अपनी पहली पत्रकार वार्ता बुलाएं। लोकतंत्र में एक बुनियादी सिद्धांत यह भी है कि मीडिया लोकतंत्र को सलामत रखने का चौथा खंभा है। इस खंभे को कमजोर किया गया है मोदी के शासनकाल में और इसका नुकसान उस खंभे को कम और प्रधानमंत्री को ज्यादा हुआ है।