दुनिया भर में 2020 में समय से पहले जन्म संबंधी जटिलताओं के कारण हर 40 सेकंड में एक बच्चे की मौत हो गई। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर के अधिक होने का प्रमुख कारण समय से पहले जन्म है। दुनिया के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या काफी अधिक है। दुनिया के लगभग 80 फीसद ऐसे मामले कम और मध्यम आय वाले देशों में ही होते हैं।

इस मामले में अफ्रीकी महाद्वीप के मलावी, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और बोत्सवाना जैसे देशों की हालत ज्यादा खराब है, जहां जहां समयपूर्व जन्मे शिशुओं की संख्या काफी अधिक देखी गई है। इथियोपिया में 2020 में 12.9 फीसद बच्चे समय से पहले पैदा हुए। वहीं, नाइजीरिया में यह आंकड़ा 9.9 फीसद था।

जब कोई बच्चा 37 सप्ताह के गर्भ से पहले पैदा होता है, तो उसे समयपूर्व जन्मे शिशु की श्रेणी में रखा जाता है। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में गंभीर न्यूरोलाजिकल समस्याओं, जैसे सेरेब्रल पाल्सी, खराब फेफड़ों की कार्यप्रणाली और उनकी आंतों की दीर्घकालिक समस्याओं का खतरा अधिक होता है।

‘इंटरनेशनल फेडरेशन आफ गायनेकोलाजी एंड आब्स्टेट्रिक्स’ (एफआइजीओ) ने शिशुओं का जीवन बचाने के लिए ज्ञात कुछ उपाय बताए हैं। इनमें प्रमुख है – बच्चे के जन्म से पहले मां को स्टेरायड की खुराकों का एक कोर्स देना। इससे गर्भ में बच्चे के फेफड़ों में बदलाव आता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अगर मां को स्टेरायड दिया जाए तो हर साल 3,70,000 शिशुओं को बचाया जा सकता है।

दूसरे, प्रसव से तुरंत पहले मां को मैग्नीशियम सल्फेट भी दिया जा सकता है। यह शिशु में कोशिका झिल्ली को स्थिर करने के लिए जाना जाता है। यह न्यूरान्स की रक्षा करता है और मस्तिष्क क्षति को कम करता है। तीसरा, प्रसव के बाद कम से कम एक मिनट के लिए कार्ड क्लैम्पिंग में देरी। जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी गर्भनाल को दबाया जाता है और फिर काट दिया जाता है। क्लैम्पिंग से पहले लगभग एक मिनट की देरी नवजात की मृत्यु में कमी से जुड़ी है।

चौथा, प्रसव के एक घंटे के भीतर मां को स्तनपान कराने के लिए प्रोत्साहित करना। पांचवां, बच्चे के जन्म के बाद तत्काल प्रभाव से कंगारू की तरह उसकी देखभाल को दृढ़तापूर्वक प्रोत्साहित करना। कंगारू देखभाल में एक बच्चे को उसकी मां या परिवार के किसी अन्य सदस्य की छाती पर लंबे समय तक रखा जाता है – दिन में कम से कम आठ घंटे।