बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ‘नए बिहार’ के अपने एक्शन प्लान को लेकर चर्चा में हैं।  खबर है कि पीके, नीतीश और बीजेपी विरोध में नया गठबंधन बनाना चाह रहे हैं। प्रशांत किशोर की टीम मोदी में साल 2011 में एंट्री हुई थी, तब वो 33 साल के थे और यूएन में हेल्थ प्रोफेशनल के तौर पर अफ्रीकी देश चाड में काम कर रहे थे।

बिहार में जन्मे और पले-बढ़े प्रशांत किशोर ने बाद में यूपी में भी रहकर पढ़ाई की। यूएन में काम करते हुए पीके ने गुजरात में कुपोषण पर एक पेपर प्रकाशित कराया था, तभी से उनपर गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की नजर गई थी लेकिन मोदी से उनकी मुलाकात साल 2011 में हुई। इसके बाद पीके साल 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए काम करने लगे। धीरे-धीरे वो नरेंद्र मोदी के और करीब हो गए।

पीके से जुड़े एक करीबी सूत्र ने बताया कि साल 2012 में उनके बारे में इतना लोगों को पता नहीं था। उस समय अहमदाबाद के एक अंग्रेजी दैनिक ने प्रशांत किशोर पर ‘बिना किसी तस्वीर’ के एक खबर की थी। वो खबर किसी अन्य के पास नहीं थी। साल 2014 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तब प्रशांत किशोर ने दिल्ली में अपनी टीम के साथ बीजेपी के लिए वॉर रूम बनाया और अच्छे दिन आने वाले हैं, जैसे नारे गढ़े।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद पीके पीएमओ में एंट्री करना चाहते थे। 2014 के बाद पीके ने नीतीश कुमार से हाथ मिला लिया। उस समय ही उनकी पॉलिटिकल कंसल्टेंस फर्म I-PAC या इंडियन पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म पहली बार पूरी तरह से लोगों की नजर में आई।

पीके की कंपनी I-PAC के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, प्रशांत किशोर सरकार में लैटरल एंट्री के बड़े पक्षधर थे। उन्होंने ही पीएम मोदी को इसका आइडिया दिया था। सूत्रों ने बताया कि किशोर चाहते थे कि उनके और उनकी टीम के नेतृत्व में पेशेवरों की एक टीम पीएमओ के साथ काम करे। लेकिन उनकी योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। हालांकि, पीएम मोदी ने शुरुआत में इस योजना को लेकर काफी रूचि दिखाई थी।

गुजरात के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने प्रशांत किशोर को अति महत्वाकांक्षी और बड़ा अवसरवादी करार दिया है। उन्होंने कहा, “2011 में मुंबई में एक बड़े रियल एस्टेट कारोबारी ने जब नरेंद्र भाई से उसकी मुलाकात कराई थी, तब उन्हें इस बात की भनक भी नहीं लग पाई थी कि राजनीति पीके की महत्वाकांक्षा का अभिन्न अंग है। वह कई सालों तक लोगों से एक चुनावी कंसल्टेंट और प्रोफेशनल कंपनी चलाने वाले के तौर पर ही मिलते रहे। उनके लिए कोई नीति-सिद्धांत नहीं है, वो सिर्फ अवसरवादी हैं।”

2015 के बिहार में जब जदयू ने बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में मिलकर चुनाव लड़ा था उस समय प्रशांत किशोर ने ही जदयू के प्रचार अभियान की कमान संभाली थी। वह प्रशांत किशोर की काबिलियत ही थी कि कैसे गठबंधन एक मजबूत ताकत के रूप में सामने आया। उनके समर्थक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कैसे उन्होंने लालू के भरोसे को जीत लिया।