दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का मानना था कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से ही कांग्रेस का पॉलिटिकल फोकस खत्म हो गया था। उनकी जन्म जयंती पर प्रकाशित उनके संस्करण में जानकारों के हवाले से यह भी कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी यूपीए के गठबंधन को बचाने में लगे थे, जिसका असर शासन प्रशासन पर भी पड़ रहा था।
मुखर्जी के मुताबिक कांग्रेस के कई नेता मानते थे कि 2004 में अगर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाता तो 2014 में कांग्रेस की जो ‘दुर्दशा’ हुई, वह न होती। उनके संस्मरण के एक अंश के मुताबिक नरेंद्र मोदी का रवैया तानाशाही है।
पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी किताब में लिखा, ‘कांग्रेस के कई नेता मानते थे कि अगर 2004 में मैं प्रधानमंत्री बनता तो 2014 में होने वाले बड़े नुकसान को टाला जा सकता था। हालांकि मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस का राजनीति से ध्यान ही भटक गया। सोनिया गांधी पार्टी के मामलों को हैंडल करने में सक्षम नहीं थीं और डॉ. सिंह लंबे समय तक सदन से नदारद रहते थे। वे व्यक्तिगत रूप से सांसदों के संपर्क में रहते थे।’
प्रणव मुखर्जी का 31 अगस्त को 84 साल की उम्र में निधन हो गया था। रूपा ने इस संस्मरण को प्रकाशित किया है और अगले महीने यह मार्केट में आ सकता है। यह उनके संस्मरण का तीसरा संस्करण है। मुखर्जी ने यह भी खुलासा किया कि वह 2012 में भी प्रधानमंत्री हो सकते थे।
उन्होंने लिखा है कि 2 जून 2012 को सोनिया गांधी ने उनसे कहा था कि आप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं लेकिन यूपीए सरकार को चलाने में उनकी भूमिका को कभी भुलाया नहीं जाएगा। उन्होंने प्रणब मुखर्जी से राष्ट्रपति पद के लिए किसी दूसरे नाम पर सलाह भी मांगी थी। किताब में मुखर्जी ने कहा, ‘मीटिंग खत्म होने के बाद मैं वापस आया और मुझे लगा कि डॉ. मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। मुझे लगा कि अगर डॉ. सिंह राष्ट्रपति बनते हैं तो मुझे प्रधानमंत्री पद के लिए चुना जा सकता है। मैंने अफवाह सुनी थी कि सोनिया गांधी ने पहले भी ऐसे ही बातें की थीं।’