बिहार में चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच सीएम नीतीश कुमार के अप्रत्याशित कदम से राजनीतिक अटकलबाजियां तेज होती जा रही हैं। बीजेपी को छोड़कर आरजेडी के साथ जाने और फिर कुछ महीनों के बाद ही आरजेडी से दूरी बनाकर फिर से बीजेपी का साथ पकड़ने की कोशिश से नीतीश कुमार को लेकर नई बहस शुरू हो गई है। पिछली बार जब अगस्त 2022 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा था तो बीजेपी पर उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को “बांटने और खत्म” करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। उन्होंने पाला बदलकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई थी। तब उन्होंने यह जताया कि एक समाजवादी नेता को उनकी विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए। तीन महीने बाद नीतीश ने कहा कि राजद के डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव 2025 में महागठबंधन के विधानसभा चुनाव अभियान का नेतृत्व करेंगे।

इधर, 26 जनवरी 2024 को नीतीश और तेजस्वी ने पटना में गणतंत्र दिवस समारोह में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर से अपने सहयोगियों को छोड़ने और पक्ष बदलने की अटकलें चल रहीं हैं।

डेढ़ साल पहले अगस्त 2022 में नीतीश ने NDA क्यों छोड़ा?

एक समय बिहार में एनडीए का वरिष्ठ साथी जेडीयू खुद को सिकुड़ता हुआ और छोटे सहयोगी बीजेपी से पीछे होता हुआ पाया। तब नीतीश बीजेपी से नाराज थे, क्योंकि विधानसभा में उनकी पार्टी की सीटें 2015 में 71 से घटकर 2020 के चुनावों में 43 सीटों पर आ गईं, जबकि बीजेपी की सीटों की संख्या 53 से बढ़कर 74 हो गई, जो राजद के 75 से एक सीट कम थी।

पिछले चुनाव में चिराग पासवान भी थे BJP से दूरी की वजह

अपनी पार्टी के सहयोगियों के साथ निजी बातचीत में, जिन क्षेत्रों में जेडीयू मुकाबले में थी, लगभग उन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता चिराग पासवान को अपने उम्मीदवार खड़ा करने के लिए नीतीश ने बीजेपी को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। जेडीयू का मानना ​​था कि चिराग ने उनकी पार्टी के वोट काटने और उनके उम्मीदवारों को हराने के लिए बीजेपी के प्रॉक्सी के रूप में काम किया था। भले ही एलजेपी ने सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र जीता हो, लेकिन इसने नीतीश के आधार वोट में गंभीर रूप से सेंध लगाई थी।

JDU को आशंका थी कि आसीपी सिंह के माध्यम से पार्टी तोड़ी जा रही है

यह भी कहा जाता है कि डिप्टी सीएम रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर नीतीश कुमार सहज महसूस नहीं करते थे। इन दोनों नेताओं के साथ उनका संबंध उतना अच्छा नहीं रहा, जितना अच्छा सुशील कुमार मोदी के साथ था, जो 13 साल तक डिप्टी सीएम रहे। जेपी आंदोलन के दिनों से ही दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध थे। जेडीयू इस आशंका से भी परेशान थी कि तत्कालीन पार्टी नेता आरसीपी सिंह, जो उस समय केंद्रीय मंत्री थे, का उपयोग करके बीजेपी इसे बांटने की कोशिश कर रही है।

आखिर क्यों एनडीए में वापस आना चाह रहे हैं नीतीश?

जेडीयू के अंदरूनी सूत्र कांग्रेस, आरजेडी और आईएनडीआईए गुट के प्रति नीतीश के बढ़ते मोहभंग के कई कारण बताते हैं। इसका मुख्य कारण उन्हें मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में असहजता महसूस होना बताया जा रहा है।

कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू के कम से कम सात सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं। ये सांसद 2019 में एनडीए के सामाजिक संयोजन के कारण जीते थे और उन्हें आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन में ऐसे नतीजे आने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं। साथ ही पूर्व पार्टी प्रमुख राजीव रंजन सिंह को छोड़कर जेडीयू के अधिकतर शीर्ष वरिष्ठ नेता बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे। नीतीश को शायद यह अहसास हो गया था कि यदि उन्होंने कार्रवाई नहीं की तो पार्टी में विभाजन हो सकता है। पिछले महीने उन्होंने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ललन सिंह की जगह ली, जिनकी लालू प्रसाद और तेजस्वी के साथ बढ़ती निकटता सीएम को पसंद नहीं थी।

जेडीयू ने 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के हिस्से के रूप में लड़ी गई 17 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की। आंतरिक सर्वेक्षणों में उत्साहजनक नतीजे नहीं आने के कारण नीतीश ने संभवतः यह अनुमान लगाया कि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी जीत की संभावनाएं बेहतर कर सकेगी। जेडीयू को संभवतः यह महसूस हुआ कि अयोध्या राम मंदिर का उद्घाटन, मोदी की लोकप्रियता और उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं जीत के फॉर्मूले का हिस्सा है।